सरिता सुराणा की कविताएं
१.आओ अमृत महोत्सव मनाएं
आओ अमृत महोत्सव मनाएं
आजादी की गौरव गाथा गाएं।
याद करें आजादी के रणबांकुरों को
गुमनामी के अंधेरों में खोए उन वीर शहीदों को
श्रद्धानत हम शीश नवाएं।
आओ अमृत महोत्सव मनाएं।।
न भूलें बाल, पाल और लाल के साहस को
भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदानों को
सुभाष, पटेल और शास्त्री की दूरदर्शिता को
नमन वीर सावरकर, लालाजी और खुदीराम बोस को
गीत उनके सम्मान में हम गाएं
आओ अमृत महोत्सव मनाएं।।
याद करें रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा को
दुर्गा भाभी की व्यूह रचना और समर्पण को
भीकाजी कामा और रामराजी के अद्भुत साहस को
रामादेवी के अनूठे नमक सत्याग्रह को
जिन सबने मिलकर क्रान्ति की मशाल जलाई।
आजादी के समरांगण में रणचण्डी बन हुंकार लगाई।
उनके नाम का एक-एक दीपक जलाएं।
आओ अमृत महोत्सव मनाएं।।
कैसे भूल सकते हैं जलियांवाला बाग
हत्याकांड के वीर शहीदों को
जनरल डायर और कर्नल राॅबर्ट की बर्बरता को
एक हज़ार खोपड़ियों वाले बरगद के उस पेड़ को
तेलंगाना के शहीद रामजी गोंड और साथियों के बलिदान को
जिन्होंने आजादी हित अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
उनको समुचित सम्मान दिलाएं।
आओ अमृत महोत्सव मनाएं।।
आज़ादी की गौरव गाथा गाएं।।
२.हौसले अटूट हैं मेरे
टूटकर बिखर जाना, मेरी नियति नहीं
हौसले अटूट हैं मेरे चट्टान की तरह।।
तेज हवाओं से डरकर, फड़फड़ाकर बुझ जाना
मंजूर नहीं मुझे, तूफ़ानों से टकराना मेरी आदत है।।
भूख और मुफलिसी को तुम क्या जानो साहब?
मुझे तो सदा इन दोनों ने मिलकर पाला है।।
मैं भी जीना चाहता हूं तुम्हारी तरह
भीख मांग कर जीना भी, क्या जीना है?
वक्त किसी का हमेशा एक-सा नहीं रहता
कालचक्र का पहिया निरन्तर गतिमान है।।
सरिता सुराणा
हैदराबाद, भारत
हौसले अटूट मेरे …बहुत सुंदर रचना