रोज डे
लखिया अनमना सा कॉलेज के सामने से गुजर रहा था … दो लडकियो ने हाथ दिया गांधी चौक कहते हुए रिक्शा में बैठ गई | लखिया ने उसी सवारी से सुना आज रोज डे है ,, एक एक लाल गुलाब दोनों के हाथ में थे ,, एक दूसरी से बतिया रही थी ,, आज तो दिन बन गया यार ,, मेरे हाथ में भी गुलाब खिल ही गया इस बार , सच कहूं तो ऐसा सा लगा …. वो गाना है न लता मंगेशकर का गाया हुआ ” आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे ” कहकर खिलखिला दी |
उनकी उन्मुक्त हंसी लखिया ने सुनी… उसे इतना समझ आ चुका था आज लाल गुलाब देकर मनाने का दिन है …सहसा उसे याद आया आज सडक के किनारे सुबह से गुलाब की बहार आई हुई है |…. उन लडकियों की बात सुनकर एकाएक उसके होंठों पर मुस्कान थिरक उठी ,, गांधी चौक के बायीं तरफ वाली गली में उसने सवारी उतारी और चल पड़ा फूल की दुकान की तरफ उसे रह-रहकर रमिया की नम होती आँखें और उतरी हुई शक्ल याद आ रही थी ,, वह खुद को कह उठा .. आज तो गलती तेरी है लखिया ,, कैसे भी कर रमिया को मना , रमिया लखिया की पत्नी , सांवरी रंगत वाले सलोने से चेहरे पर बड़ी बड़ी मुस्कुराती हुई आँखे , उसने कभी लखिया से शिकायत नहीं की …लखिया की माँ और बहन के साथ मिलकर रहती सेवा करती | वो दोनों भी रमिया को खूब प्यार देती लेकिन आज भोर जरा बात पर नाराज हुआ लखिया … यूँ लखिया भी रमिया से नाराज नहीं होता | पर मानुष मन , हो गयी नाराजगी, इसी से आज उसका मन रिक्शे चलाने में भी नहीं लग रहा था |
उसके दिमाग में गुलाब वाली उहापोह में उसने एक गुलाब की कीमत पूछी ,, या तो दुकानदार को दया आ गई या फिर लखिया की किस्मत अच्छी थी ,, कुल पच्चीस रुपए में बिना सौदा किये गुलाब मिल गया ,, उसने तुरंत ही रिक्शा का हैंडल घर की तरफ मोड़ दिया , दस मिनट में वह घर के सामने था … हाथ के फूल को छिपाते हुए वः धीमे से अन्दर घुसा ,, कहीं उसकी बहन की नजर न पड़ जाए अब उसकी आंखें रमिया को ढूंढने लगी ,, रमिया पीछे के चौक में कपड़े फैलाकर भीतर घुसी तो उसका हाथ खींचकर फिर घर के पिछवाड़े ले गया और छिपाया हुआ गुलाब उसके हाथ में रख दिया ,, फूल पाकर रमिया ने लखिया को एक बारगी नजर भर कर देखा फिर… धीमे से नजर झुका ली | उसके फूल पाकर खिले से चेहरे को लखिया ने ऊपर करके देखा , रमिया की आंखे लजाकर नीची हो गयी और होठो पर मुस्कुराहट थिरक उठी |लखिया भी मुस्कुराते हुए वापस रिक्शा की तरफ लौटते हुए फिर मुडकर रमिया को देखा तो उसे अपनी तरफ देखते हुए पाया ..अब उसके अन्तर्मन में भी वही गाना बज उठा ….” आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे ” लखिया मुस्कुराया तेजी से बाहर जाकर रिक्शा लेकर दुगुने जोश से चल पड़ा । लाल गुलाब रमिया के हाथ में ” रोज़ डे ” को सार्थक कर रहा था ।
विजयलक्ष्मी
हरिद्वार