मैं गुलाब नही
मैं गुलाब नही
मैं गुलाब नही बन सकती,
अपने रोम रोम बिखेर नही सकती।
मैं गुलाब नही————-।
पंखुड़ियों के निकलने से फिर मेरा वजूद ही क्या?
खुद को मिटा दुसरों को खुशबू नही दे सकती,
मैं गुलाब नही बन सकती।
सरिता सिंह
जीवन गुलाब
गुलाब और मानव में है कुछ समानता
मानव में गुण-अवगुण, गुलाब में काँटा
जैसे गुलाब संग काँटा, है जाता स्वीकारा
काश ,इंसान भी कमी संग जाता स्वीकारा
पुष्पांजलि मिश्रा