प्रेम का गुलमोहर रौप दूँ

प्रेम का गुलमोहर रौप दूँ

सुनो!!
तुम और तुम्हारे ख्याल
अब कली से गुलाब बन खिलने लगें हैं

प्रियवर
हवायें तुम्हारे आने का संकेत दे रहीं हैं
चारों और मंद बयार में
इश्किया खुशबू है
मेरे मन की बगिया प्रफुल्लित है !!

मैं लिख देती हूं एक नज्म़
ऊंगली से जो शून्य में
और तुम उसे __
हवाओं पर पढ़ लेते हो !;

देख भी नहीं पाती जो स्वप्न
और तुम हो
शिवा__
कि__
उन्हें ही गढ़ देते हो!!!

हैरान ना हो
यह जो खुशबू है
तुम्हारे बदन की
पता है
मेरे ही तन के गुलाबों से
हुई है !!

शब्दों के फूलों की जयमाल लिए
इंतजार में !!

तुम्हारी देह पर
आओ
प्रेम का गुलमोहर रौप दूं
सांसों की गर्माहट से
नेह की धूप से
मुहब्बत के अश्कों से
उगेंगे नेह के गुलाबी फूल़ !!

सुनो
उन्हीं फूलों की
जयमाल पहनाने
एक बार
आना जरूर
आज़ गुलाब दिवस पर यही
मनुहार
बारम्बार !!!!;

सोनिया अक्स़
पटियाला

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