रोबोट
इस आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने बच्चों को रोबोट बना दिया हैं।नन्हें-नन्हे कंधों पर भारी बस्तें और स्कूल से आते ही कोंचिग जाने की तैयारी,वहां से आकर होमवर्क के बाद जल्दी सुलाने की कवायद।
अपने छोटे से पोते-पोती की दिनचर्या देखकर सविता मन ही मन कुढ़ती और बच्चों पर बेहद तरस आता। लेकिन कुछ कह नहीं सकती क्योंकि इन सब मामलों में बोलने के लिए उन्हें सख्त मनाही थी।
इस लाॅकडाउन में अलमारी से लूड़ो कैरम खोजे गए,शाम को छत पर बैडमिंटन खेलते हँसते खिलखिलाते बच्चों को देखकर सविता उनसे भी ज्यादा खुश हो जाती। रात को सविता के पास आकर बच्चे कहानी सुनते और सुनते-सुनते उनकी बाँहों में सो जाते । सविता को यह एक वरदान की भाँति लगता। वह सोचती इस आधुनिक शिक्षा प्रणाली का दूषित ढाँचा अवश्य बदलना चाहिए। पढ़ाई सिर्फ स्कूल तक ही सीमित रहनी चाहिए।भारी बस्तों के साथ सारे दिन की व्यस्तता का बोझ बच्चे एक बेहोशी में बीताते हैं।
लाॅकडाउन का समापन होते ही सड़के बाजार अवश्य गुलजार हो जायेंगे।लेकिन बच्चे फिर से रोबोट बन जायेंगे यह सोच कर सविता मन ही मन उदास हो गई।
त्रिलोचना कौर
वरिष्ठ साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश