जाड़े में जनतंत्र

जाड़े में जनतंत्र

 

गठरी बांधे धूप की, जाड़े में जनतंत्र ।

शीतलहर में फूँकता,कुहरा जन में मंत्र।।

 

रैन निहारे बस्तियाँ, बंद घरों में योग।

हाड़ कँपाती ठंड में, धूप कुतरते लोग।।

 

धुआँ रात रचता रहा,स्याही-स्याही रूप।

शीत लहर में बैठकर,कुहरा बांचे धूप।।

 

शैल शिखर को चूम कर,लेकर हिम रैवार।

मधुर मदिर मकरंद मय,सुरभित चली बयार।।

 

लोकतंत्र में तंत्र का,जलने लगा अलाव।

धूप कुहासा बेंचता,शीत लहर के भाव ।।

 

धुआँ लहर में रच रहा,स्याही-स्याही रूप।

सघन कुहासा ओढ़कर,लाज बचाती धूप।।

 

जाड़ा बारिश शीत हिम,मौसम के अनुरूप।

सूरज लेकर घूमता, गठरी-गठरी धूप ।।

 

दिन में डेरा डाल कर,सोया तान वितान ।

जैसे कुहरे से हुआ,अनुबंधित दिनमान ।।

 

कब तक कुहरे में रहें, शीत लहर में जान।

गठरी लेकर धूप की,आ जाओ दिनमान।।

 

आया सीना तान कर, सूरज एक महान।

चूर-चूर होने लगा, कुहरे का अरमान ।।

 

शिव मोहन सिंह

देहरादून ,भारत

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