शराबी

शराबी

“चलो – चलो, जल्दी -जल्दी लादो… कंबल सब लदा गया न, और खाने का पैकेट….”
वार्ड पार्षद के प्रत्याशी गाड़ी में सामान लदवा रहे थे । गाड़ी के ऊपर चिपके हुए पोस्टर, पेंट किये हुए चुनाव चिन्ह और लटकाए हुए बैनर ने गाड़ी के आकार, ढ़ांचे और रंग को उसी तरह से ढ़ंक रखा था, जिस तरह से उस आवारा, अनपढ़ और गुंडे सरीखे नेताजी को वार्ड पार्षद बनने की महत्वाकांक्षा ने सदाशयता, दयालुता और गरीबों के प्रति अनन्य सहानुभूति रखने वाले मसीहे की छवि ने ढ़ंक रखा था।
“अरे केवल खाने का सामान लादे और पीने का….”, नेताजी शरारत भरे अंदाज में अपने सबसे नजदीकी सहयोगी चंदन से पूछ ही रहे थे कि रामदीन पीने का सामान कूट के बने बॉक्स में लिए वहां प्रगट हो गया।
“लो.. अरे सीधा गाड़ी में लादना चाहिए था…देह में दम नहीं है का रे.. ”
रामदीन को बॉक्स जमीन पर रखते हुए देखकर नेताजी चिल्लाए, पर उनकी बात खत्म होने के पहले ही रामदीन जमीन पर गिर गया।
“अब लो फिर इसे चक्कर आ गया कितनी बार कहा कि ढंग से खाया पिया करो..” , कहते हुए चंदन उसको उठाने की गरज से आगे बढ़ा ही था कि नेताजी ने कड़क कर कहा,
” छोड़ो उसे, मार लिया होगा एकाध बोतल, पड़े रहने दो, तुम सब गाड़ी में बैठो।”
थोड़ी देर बाद नेताजी और उनके आदमी हाथ जोड़ कर वार्ड के निवासियों को सामान बांट रहे थे और बदले में उनसे वोट देने की अपील कर रहे थे।

ऋचा वर्मा
साहित्यकार
पटना,बिहार

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