आजादी
क्या??
क्या कहा – ५० रूपये, दिमाग तो सही है तेरा।”
काव्या ने जोर से कहा तो
रिक्शा चालक ने भी कहा-“हाँ ,मैडम! कुछ अधिक नहीं मांग रहा। पचास रूपये बिल्कुल सही है।
मुझे दे दें तो मैं आगे जाऊँ।”
काव्या ने कहा “बिल्कुल नहीं दूंगी।२० रूपये लो।अब निकलो यहाँ से।”
रिक्शे वाले ने कहा -“बहुत परिश्रम से रिक्शा चलाता हूँ।मजबूरी है इसलिए नहीं तो मैं भी कभी आपकी तरह ही था। खैर!इन बातों को आप नहीं समझेंगी।मेरे पैसे दे दीजिये, मैं घर जाऊं , जल्दी है जाना। आवश्यक काम है।”
काव्या ने कहा -२० रूपये लो और निकलो। नहीं तो बुलाती हूँ भाई को।”
रिक्शा वाले ने कहा-“जिसे बुलाना है बुला लें। पैसे पूरे दे दीजिये। मैं चला जाऊंगा।शोर सुन भाई देवेश बाहर आया तो काव्या ने कहा -“देवेश इसे मुझसे बदतमीजी से बात कर रहा है,औकात दिखाओ तो इसे।”
बिना पूरी बात जाने वह रिक्शा वाले को गाली दे धक्का दे दिया।बेचारा गिर पड़ा।काफी चोटें आयी।उसने कहा कि सामन्तवादी सोच गयी नहीं। मेरी माँ बीमार है, मुझे अस्पताल ले जाना है, ५० रूपये से फीस हो जाती।इतने पैसे आपके लिये तो कोई बात नहीं होती।आपने मेरे वाजिब पैसे नहीं दिये बदले में मेरी पिटाई भी की।खैर! ईश्वर सब देख रहा है।”
यह सुन देवेश ने पुनः थप्पड़ मारा। उसके मुख से रक्त बहने लगा।
उसने कहा-“बहुत अच्छा। पराक्रम गरीबों पर ही चलता ।”कह वह बिलखते हुए चला गया।
रिक्शा चालक -” लोग कहते हैं ,देश आजाद हो गया। क्या यही आजादी है। मुझे लगता है विदेशियों से देश आजाद हुआ है न जाने सामंतों से कब होगा?
वास्तव में अमीर का शौर्य निरीह बेबस पर ही चलता।
डॉ रजनी दुर्गेश
हरिद्वार