गणतंत्र

गणतंत्र

आज घर लौटते हुए शालिनी बहुत थकान महसूस कर रही थी। अगले दिन २६ जनवरी थी, इसलिए वो स्कूल में होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह के लिए बच्चों को तैयार कर रही थी। पांचवी कक्षा की क्लास टीचर होने के साथ साथ उस पर स्कूल में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी जिम्मेदारी थी। शालिनी का मन किया कि थोड़ी देर रास्ते में आने वाले पार्क में बैठकर सुस्ता ले, घर पहुंचकर तो फिर से काम में लगना ही था। वो पार्क में एक बेंच पर जा कर बैठी ही थी कि ८-१० साल का लड़का हाथ में कई सारे कागज के छोटे छोटे तिरंगे झंडे लेकर उसके पास आया और उससे झंडा लेने कि मनुहार करने लगा।

“ले लो मैडम जी, सिर्फ १० रुपये का है।”

“नहीं बेटा, मुझे नहीं चाहिए।” शालिनी ने उसे टालने की कोशिश की।

“आप १५ के २ ले लो !” बच्चे ने सीखा सिखाया वाक्य दोहराया तो शालिनी मुस्कुरा दी।

“अच्छा ले लूंगी, पहले ये बताओ कि ये है क्या?” शिक्षिका होने के कारण उसे बच्चों से प्रश्न करने की आदत हो गई थी।

“देश का झंडा है मैडम जी। २६ जनवरी आ रही है न। लोग अपनी गाड़ी पर लगाते हैं। मामा ने कहा था सारे बेच कर आना।” बच्चा एक सांस में बोल गया।

“कितने बेच लिए सुबह से?” शालिनी ने पूछा।

“ज्यादा नहीं बिके” बच्चे का मुहं उतर गया। “मामा गुस्सा करेगा, ले लो न मैडम जी।”

शालिनी का मन पसीज गया। स्कूल के समारोह के बारे में सोचते हुए बोली, “मुझे सारे झंडे खरीदने हैं, कितने के दोगे?”

“क्या सच?” लड़के का चेहरा खिल गया। उसकी मुस्कान देखकर शालिनी की सारी थकान गायब हो गयी। घर जाने का समय हो रहा था पर शालिनी को उससे बात करना अच्छा लग रहा था।

“अच्छा नाम क्या है तुम्हारा?”

“नाम तो सूरज है, पर मामा भीखू कहकर बुलाता है।”

“और तुम्हारे माँ -बाप?”

“बापू पिछले साल पेड़ से लटक कर मर गया। माँ गाँव के चौधरी के यहाँ काम करती है। कहती है बहुत कर्जा है उसका हम पर। दो छोटी बहने भीं है मेरी। मैं अकेला मर्द हूँ अब घर में इसलिए मामा मुझे शहर ले आया कमाने के लिए।” उसकी आवाज में रौब आ गया।

पर शालिनी को उस मासूम की पीठ पर जिम्मेदारी का बोझ दिख रहा था।

“स्कूल गए हो कभी ?” उसने फिर पूछा।

“हाँ, गाँव में बड़े बरगद के नीचे स्कूल चलता था हमारा। शहर से रश्मि दीदी आती थी पढ़ाने। एक दिन खेत में उनकी लाश मिली तो स्कूल बंद हो गया।”

शालिनी अंदर तक सिहर उठी। फिर खुद को सँभालते हुए बात बदलने के लिए बोली, “अच्छा क्या तुम जानते हो कि २६ जनवरी को क्या हुआ था?”

“देश आज़ाद हुआ था।” लड़के ने पूरे विश्वास से जवाब दिया।

“ग़लत! देश १५ अगस्त को आज़ाद हुआ था। २६ जनवरी के दिन तो भारत को गणतंत्र घोषित किया गया था।”

“मतलब?”

“मतलब जनता के लिए जनता की सरकार!”

“जनता कौन?” लड़के को बातों में मज़ा आने लगा था।

“जनता यानि तुम और मैं!” शालिनी ने समझाने की कोशिश की।

“आप भी? पर मैं और आप एक से थोड़े ही हैं!”

शालिनी समझ गई कि लड़का दिमाग से तेज़ है। उसकी इस बात का जवाब देना मुश्किल था सो वो खड़ी हो गई।

“मुझे देर हो रही है, जल्दी से जोड़ कर बताओ, सारे झंडों के कितने पैसे हुए।”

“२५० रुपये “, लड़का तुरंत बोला। उसने पहले ही हिसाब लगा रखा था।

शालिनी ने पैसे लड़के को देकर सारे झंडे ले लिए। “२६ जनवरी के बाद क्या काम करोगे ?” उसने जाते जाते एक और प्रश्न किया।

“रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचूंगा।”

“अच्छा! तुम्हे कौन से रंग का गुब्बारा पसंद है?”

“जो जल्दी बिक जाए!” कहकर लड़का भाग खड़ा हुआ।

शालिनी तिरंगे झंडे हाथ में लिए घर की ओर चल पड़ी। लड़के की सारी बातें अब भी उसके कानों में गूँज रहीं थीं। वो सोचने लगी, क्या सचमुच भारत में सबको सम्मान से जीने का अधिकार है? जिस देश का भविष्य इस हाल में है क्या उसे गणतंत्र कहना ठीक है?”

स्वीटी सिंघल ‘सखी’
बैंगलोर, कर्नाटक

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