क्या महिलाएँ जानती हैं अपने सुरक्षा कानून..?
अजीब विडंबना है कि हमारे देश में जहां स्त्रियों को देवी का दर्जा दिया जाता है,वहीं स्त्रियों की सुरक्षा दिन प्रतिदिन खतरे में पड़ी दिखाई दे रही है। 21वीं सदी में जब महिलाएँ अपने अधिकारों को पाने की कोशिश में हैं और हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने को तत्पर हैं, तब हर दिन कोई ऐसी घटना घट जाती है कि मानवता शर्मसार होती है।औरतें प्रतिकार भी करती हैं और कई बार न्याय पाने में सफल भी होती हैं परन्तु, अपराधियों के हौसले हैं कि बढ़ते ही जा रहे हैं।सीता से लेकर निर्भया और मनीषा तक न जाने कितनी लड़कियाँ इस जघन्य अपराध का शिकार होती रही हैं।आजाद भारत का अपना संविधान है,जिसके तहत औरतों को पुरुषों के बराबर के अधिकार दिए गए दिए गए हैं, लेकिन, समाज में आए दिन कोई न कोई घटना घट ही जाती है और स्त्री-सुरक्षा पर प्रश्न खड़े हो जाते हैं।स्कूल तथा कॉलेज जाने वाली छात्रायें भय के साये में जी रही हैं।जब भी वे घर से बाहर निकलती हैं तो सिर से लेकर पैर तक ढकने वाले कपडे पहनने को मजबूर हैं। इससे भी अजीब बात तो यह है कि कई जगहों पर ऐसा भी देखा गया है माँ-बाप पैसे के लालच में अपनी ही बेटी को वैश्यावृति के नरक में धकेल देते हैं। राह चलती लड़की पर तेज़ाब फेंकना और शारीरिक संबंध की इच्छा को पूरा करने के लिए किसी का भी अपहरण करना जैसे आम बात हो गई है। आंकड़ो के अनुसार भारत में हर 20 मिनट में एक औरत से बलात्कार होता है।सोचिए, कैसी भयावह स्थिति है।ग्रामीण क्षेत्रों में तो और भी बुरे हालात हैं। बलात्कार के आरोपी कई बार जान पहचान यहाँ तक घर का ही कोई सदस्य निकलता है। दहेज़ के लिए जलाया जाना, सास-ससुर द्वारा पीटा जाना जैसी घटनाएँ तो रोज़ की बात हो गई है। निर्भया सामूहिक बलात्कार केस जिसने पूरे देश को झकझोर के रख दिया उसे कौन भूल सकता है?आये दिन इसी तथ्य को लेकर बस राजनीति होती रहती है और औरतें न्याय से वंचित रह जाती हैं।
महिलाओं की संख्या देश की कुल जनसंख्या की आधी है। इसका मतलब है कि वे देश के विकास में भी आधी भागीदार हैं फिर भी ऐसी घटनाओं का होना हमारी संस्कृति को केवल शर्मसार ही करता है।ऐसा नहीं है कि सरकार ने महिलाओं के सुरक्षा-कानून नहीं बनाए या उनके पालन हेतु कदम नहीं उठा रही परंतु सुरक्षा कानूनों के प्रति हमारी अज्ञानता भी कई बार हमें न्याय पाने से वंचित कर देती है। इसीलिए बहुत जरूरी है कि हर महिला को उसके सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून पता होने चाहिए ताकि वक्त पड़ने पर वह पूरी तरह से न्याय और अधिकार मांगने के लिए आत्मविश्वास के साथ तत्पर हो सके।
महिला सुरक्षा से जुड़े कानून
भारत में महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों की लिस्ट बहुत लंबी है। इसमें चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856, इंडियन पीनल कोड 1860, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1861, फॉरेन मैरिज एक्ट 1969, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969, क्रिस्चियन मैरिज एक्ट 1872, मैरिड वीमेन प्रॉपर्टी एक्ट 1874, मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986, नेशनल कमीशन फॉर वुमन एक्ट 1990, सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ़ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013 आदि हैं।
इसके अलावा 7 मई 2015 को लोक सभा ने और 22 दिसम्बर 2015 को राज्य सभा ने जुवेनाइल जस्टिस बिल में भी बदलाव किया है,जिसके अन्तर्गत यदि कोई 16 से 18 साल का किशोर जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है तो उसे भी कठोर सज़ा का प्रावधान है।विशेषकर,निर्भया जैसे केस में किशोर अपराधी के छूट जाने के बाद ऐसे कानून पर ध्यान दिया गया है क्योंकि आज कम उम्र में अपराध करने की प्रवृत्ति बहुतायत में दिखाई दे रही है।
देश में विभिन्न प्रकार के अपराधो के लिए बहुत से कानून मौजूद हैं और पालन करवाने के लिए हमारे पास न्यायपालिका, प्रशासन व पुलिस है।कानून कहता है कि पुरुष व स्त्री को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले,महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय व स्नानगृहों की व्यवस्था हो,किसी महिला के साथ दास के समान व्यवहार नहीं किया जा सकता,बलात्कार के आशय से किए गए हमले से बचाव हेतु हत्या तक का अधिकार महिला को है,विवाहित हिन्दू स्त्री अपने धन की निरंकुश मालिक है, वह उसे जैसे चाहे खर्च कर सकती है,दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है..वगैरह..वगैरह..।.ऐसे बहुत से एक्ट महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर पारित किए गए हैं और उनका फायदा कुछ हद तक दिखने भी लगा है।वैसे तो कानून की बात सभी करते हैं लेकिन जब असलियत में कानून का उल्लंघन होने पर उसके विरुद्ध आवाज़ उठाने की बात आती है, तो बहुत कम लोग ही आगे आते हैं, खासकर महिलाएँ। कुछ महिलाएँ तो परिवार का नाम खराब होने के डर से या फिर पुलिस वालों के बुरे व्यवहार के डर के कारण आती ही नहीं हैं और परिस्थितियों से समझौता कर लेती हैं।इसके साथ ही एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि भारत देश में अधिकतर महिलाएँ अपने अधिकार व महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों के बारे में सही तरीके से जानती तक नहीं हैं।इसी के अभाव में वे समय पर उचित कदम नहीं उठा पाती हैं। इसलिये,क्यों न आज इस लेख के माध्यम से सभी महिलाएँ अपने लाभ के लिए बने कानूनों तथा उन्हें दिए गए सभी अधिकारों के बारे में अच्छी तरह समझने की कोशिश करें ताकि आने वाले समय में यदि उनके साथ कुछ भी गलत या अत्याचार हो रहा हो, तो वे स्वयं अपनी आवाज उठा सकें।
महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनी अधिकार
नि:शुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
एक महिला होने के नाते सबको यह पता होना चाहिए कि आपको भी हर प्रकार की कानूनी मदद लेने का अधिकार है और आप सरकार से इसकी माँग कर सकती हैं। गोपनीयता का अधिकार
महिलाओं को कानून के तहत अपनी शिकायत गोपनीय तरीके से दर्ज कराने का अधिकार है ताकि लज्जावश शिकायत दर्ज नहीं कराने पर अपराधी छूट न जायें। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोशिजर कोड) की धारा 164 के तहत, बलात्कार की शिकार एक महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कर सकती है और जब मामले की सुनवाई चल रही हो तब किसी अन्य को वहाँ उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है।महिला एक सुविधाजनक स्थान पर केवल एक पुलिस अधिकारी या महिला कांस्टेबल के साथ बयान दर्ज करा सकती है।इसके अतिरिक्त,शिकायत करने के लिए समय की भी कोई पाबंदी नहीं रखी गयी है।बलात्कार किसी भी महिला के लिए एक भयावह घटना है, इसलिए उसका सदमे में जाना और तुरंत इसकी रपट न लिखाना स्वाभाविक है। वह अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा के खोने के कारण भी डर सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी समय बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) की धारा 228- ए के तहत पीड़ित महिला की पहचान के खुलासे को दंडनीय अपराध बताता है। नाम या किसी भी मामले को छापना या प्रकाशित करना, जिससे उक्त महिला की पहचान हो सके, वह दंडनीय है।
गिरफ्तार नहीं होने और पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन न बुलाने का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि पुलिस को महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है। यदि महिला ने कोई गंभीर अपराध किया है तो पुलिस को मजिस्ट्रेट से यह लिखित में लेना होगा कि रात के दौरान उक्त महिला की गिरफ्तारी क्यों जरूरी है। साथ ही, सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) की धारा 160 के तहत पूछताछ के लिए महिलाओं को पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जा सकता है।
जीरो एफआईआर का अधिकार
एक बलात्कार पीड़िता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश किए गए जीरो एफआईआर के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन से अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता है कि फलां क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता है।इसके अतिरिक्त,सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा निर्देश के अनुसार, सार्वजनिक और निजी हर तरह के फर्म के लिए यौन उत्पीड़न के मामलों को हल करने के लिए एक समिति को स्थापित करना अनिवार्य है।यह भी आवश्यक है कि समिति का नेतृत्व एक महिला करे और सदस्यों के तौर पर पचास फीसद महिलाएँ ही शामिल हों। साथ ही, सदस्यों में से एक महिला कल्याण समूह से भी हो। यदि आप एक इंटर्न हैं, एक पार्ट- टाइम कर्मचारी, एक आगंतुक या कोई व्यक्ति जो कार्यालय में साक्षात्कार के लिए आया है और उसका उत्पीड़न किया गया है तो वह भी शिकायत दर्ज कर सकता है।यदि आपको कभी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तो आप तीन महीने के भीतर अपनी कंपनी की आंतरिक शिकायत समिति (इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी) को लिखित शिकायत दे सकती हैं।
विवाहिता के साथ दुव्यर्वहार नहीं
आईपीसी की धारा 498- ए दहेज संबंधित हत्या की आक्रामक रूप से निंदा करती है। इसके अलावा, दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 न केवल दहेज देने या लेने के बल्कि दहेज मांगने के लिए भी इसमें दंड का प्रावधान है। एक बार दर्ज की गयी एफआईआर इसे गैर- जमानती अपराध बना देता है ताकि महिला की सुरक्षा को सवालों के घेरे में न रखा जाए और आगे भी उसे किसी प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाया जा सके।किसी भी तरह का दुव्यर्वहार चाहे वह शाररिक, मौखिक, आर्थिक या यौन हो, धारा 498- एक के तहत आता है। आईपीसी के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 (डीवी एक्ट) आपको संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है, जो उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह में मदद कर सकता है।दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में ‘दहेज निषेध अधिनियम’ बनाकर क्रियान्वित किया गया। वर्ष 1986 में इसे भी संशोधित कर समयानुकूल बनाया गया।दहेज, महिलाओं का स्त्री धन होता है। यदि दहेज का सामान ससुराल पक्ष के लोग दुर्भावनावश अपने कब्जे में रखते हैं तो धारा 405-406 भा.द.वि. का अपराध होगा। विवाह के पूर्व या बाद में दबाव या धमकी देकर दहेज प्राप्त करने का प्रयास धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अतिरिक्त धारा 506 भा.द.वि. का भी अपराध होगा। यदि धमकी लिखित में दी गई हो तो धारा 507 भा.द.वि. का अपराध बनता है। दहेज लेना तथा देना दोनों अपराध हैं।स्त्री धन में वैधानिक तौर पर विवाह से पूर्व दिए गए उपहार, विवाह में प्राप्त उपहार, प्रेमोपहार चाहे वे वर पक्ष से मिले हों या वधू पक्ष से तथा पिता, माता, भ्राता, अन्य रिश्तेदार और मित्र द्वारा दिए गए उपहार स्वीकृत किए गए हैं।विवाहित हिन्दू स्त्री अपने धन की निरंकुश मालिक होती है। वह अपने धन को खर्च कर सकती है। सौदा कर सकती है या किसी को दे सकती है। इसके लिए उसे अपने पति, सास, ससुर या अन्य किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है। बीमारी या कोई प्राकृतिक आपदा को छोड़कर स्त्री का पति भी उसके धन को खर्च करने का कोई अधिकार नहीं रखता। इन परिस्थितियों में खर्च किए गए स्त्री धन को वापस करना ससुराल पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी होगी। परिवार का अन्य सदस्य किसी भी स्थिति में स्त्री धन खर्च नहीं कर सकता। उच्चतम न्यायालय ने एक प्रकरण में कहा है कि स्त्री द्वारा माँग किए जाने पर इस प्रकार के न्यासधारी उसे लौटाने के लिए बाध्य होंगे। अन्यथा धारा 405/406 भा.द.वि के अपराध के दोषी होंगे।
तलाकशुदा के अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत पत्नी को मौलिक अधिकार है कि वह अपने विवाह के टूट जाने के बावजूद विवाहित नाम का प्रयोग कर सकती है। पूर्व पति के उपनाम का उपयोग करने से तभी रोका जा सकता है, जब वह इसका उपयोग बड़े पैमाने पर धोखा देने के लिए कर रही हो। एकल माँ अपने बच्चे को अपना उपनाम दे सकती है।
सहमति के बिना तस्वीर या वीडियो अपलोड करना अपराध
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66 ई गोपनीयता के उल्लंघन के लिए सजा से निपटने और स्पष्ट रूप से सहमति के बिना किसी भी व्यक्ति के निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने से मना करता है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354 सी जिसे वॉयरिज्म सेक्शन के तौर पर भी जाना जाता है, किसी महिला की निजी तस्वीरें को कैप्चर या शेयर करने को अपराध मानता है।इसके अतिरिक्त,निर्भया केस के बाद के कई मामलों में स्टॉकिंग को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 354 डी के तहत अपराध के तौर पर जोड़ दिया गया है। यदि आपका पीछा किया जा रहा है तो आप राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) को एक ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से अपराध की रिपोर्ट दर्ज करा सकती हैं। एक बार जब एनसीडब्ल्यू को इसके बारे में पता चलता है तो वह इस मामले को पुलिस के समक्ष उठाती है।
समान वेतन,मातृत्व,चिकित्सा,रोजगार संबंधित अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला श्रमिक दोनों को समान पारिश्रमिक से भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती और सेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 प्रसव से पहले और बाद में निश्चित अवधि के लिए प्रतिष्ठानों में महिलाओं के रोजगार को नियंत्रित करता है और मातृत्व लाभ एवं अन्य लाभों के लिए प्रदान करता है।
महिलाओं को पुरुषों के समतुल्य समान कार्य के लिए समान वेतन देने के लिए ‘समान पारिश्रमिक अधिनियम’ 1976 पारित किया गया, लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी अनेक महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिलता।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 मानविकी और चिकित्सा आधशर पर पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा गर्भ धारण की समाप्ति के लिए अधिकार प्रदान करता है। पूर्व गर्भाधान और प्री नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम 1994, गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है और कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग निर्धारण के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकता है।गर्भावस्था में ही मादा भ्रूण को नष्ट करने के उद्देश्य से लिंग परीक्षण को रोकने हेतु प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 निर्मित कर क्रियान्वित किया गया। इसका उल्लंघन करने वालों को 10-15 हजार रुपए का जुर्माना तथा 3-5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
विभिन्न संस्थाओं में कार्यरत महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रसूति अवकाश की विशेष व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 42 के अनुकूल करने के लिए 1961 में प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत पूर्व में 90 दिनों का प्रसूति अवकाश मिलता था। अब 135 दिनों का अवकाश मिलने लगा है।
संपत्ति का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 पुरुषों के साथ समान रूप से पैतृक संपत्ति विरासत में महिलाओं के अधिकार की मान्यता देता है।
संविधान में लिखित अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 14 में कानूनी समानता, अनुच्छेद 15 (3) में जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव न करना, अनुच्छेद 16 (1) में लोक सेवाओं में बिना भेदभाव के अवसर की समानता, अनुच्छेद 19 (1) में समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 में स्त्री एवं पुरुष दोनों को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना, अनुच्छेद 23-24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार समान रूप से प्राप्त, अनुच्छेद 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता दोनों को समान रूप से प्रदत्त, अनुच्छेद 29-30 में शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार, अनुच्छेद 39 (घ) में पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, अनुच्छेद 40 में पंचायती राज्य संस्थाओं में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 41 में बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और अन्य अभाव की दशा में सहायता पाने का अधिकार, अनुच्छेद 42 में महिलाओं हेतु प्रसूति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था, अनुच्छेद 47 में पोषाहार, जीवन स्तर एवं लोक स्वास्थ्य में सुधार करना सरकार का दायित्व है, अनुच्छेद 51 (क) (ड) में भारत के सभी लोग ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हों, अनुच्छेद 33 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 332 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।शासन ने ‘अंतरराज्यिक प्रवासी कर्मकार अधिनियम’ 1979 पारित करके विशेष नियोजनों में महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय एवं स्नानगृहों की व्यवस्था करना अनिवार्य किया है। इसी प्रकार ‘ठेका श्रम अधिनियम’ 1970 द्वारा यह प्रावधान रखा गया है कि महिलाओं से एक दिन में मात्र 9 घंटे में ही कार्य लिया जाए।
भारतीय दंड संहिता कानून
भारतीय दंड संहिता महिलाओं को एक सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करता है ताकि समाज में घटित होने वाले विभिन्न अपराधों से वे सुरक्षित रह सकें। भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या हेतु प्रेरण, दहेज मृत्यु, बलात्कार, अपहरण एवं व्यपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ्तारी एवं न्यायिक दंड व्यवस्था का उल्लेख इसमें किया गया है।दंड संहिता की धारा 294 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान पर बुरी-बुरी गालियाँ देना एवं अश्लील गाने आदि गाना जो कि सुनने पर बुरे लगें, धारा 304 बी के अंतर्गत किसी महिला की मृत्यु उसका विवाह होने की दिनांक से 7 वर्ष की अवधि के अंदर उसके पति या पति के संबंधियों द्वारा दहेज संबंधी माँग के कारण क्रूरता या प्रताड़ना के फलस्वरूप सामान्य परिस्थितियों के अलावा हुई हो, धारा 306 के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य (दुष्प्रेरण) के फलस्वरूप की गई आत्महत्या, धारा 313 के अंतर्गत महिला की इच्छा के विरुद्ध गर्भपात करवाना, धारा 314 के अंतर्गत गर्भपात करने के उद्देश्य से किए गए कृत्य द्वारा महिला की मृत्यु हो जाना, धारा 315 के अंतर्गत शिशु जन्म को रोकना या जन्म के पश्चात उसकी मृत्यु के उद्देश्य से किया गया ऐसा कार्य जिससे मृत्यु संभव हो, धारा 316 के अंतर्गत सजीव, नवजात बच्चे को मारना, धारा 318 के अंतर्गत किसी नवजात शिशु के जन्म को छुपाने के उद्देश्य से उसके मृत शरीर को गाड़ना अथवा किसी अन्य प्रकार से निराकरण, धारा 354 के अंतर्गत महिला की लज्जाशीलता भंग करने के लिए उसके साथ बल का प्रयोग करना, धारा 363 के अंतर्गत विधिपूर्ण संरक्षण से महिला का अपहरण करना, धारा 364 के अंतर्गत हत्या करने के उद्देश्य से महिला का अपहरण करना, धारा 366 के अंतर्गत किसी महिला को विवाह करने के लिए विवश करना या उसे भ्रष्ट करने के लिए अपहरण करना, धारा 371 के अंतर्गत किसी महिला के साथ दास के समान व्यवहार, धारा 372 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को बेचना या भाड़े पर देना।धारा 373 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति आदि के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को खरीदना, धारा 376 के अंतर्गत किसी महिला से कोई अन्य पुरुष उसकी इच्छा एवं सहमति के बिना या भयभीत कर सहमति प्राप्त कर अथवा उसका पति बनकर या उसकी मानसिक स्थिति का लाभ उठाकर या 16 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ उसकी सहमति से दैहिक संबंध करना या 15 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ उसके पति द्वारा संभोग, कोई पुलिस अधिकारी, सिविल अधिकारी, प्रबंधन अधिकारी, अस्पताल के स्टाफ का कोई व्यक्ति गर्भवती महिला, 12 वर्ष से कम आयु की लड़की जो उनके अभिरक्षण में हो, अकेले या सामूहिक रूप से बलात्कार करता है, इसे विशिष्ट श्रेणी का अपराध माना जाकर विधान में इस धारा के अंतर्गत कम से कम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है।ऐसे प्रकरणों का निवारण न्यायालय द्वारा बंद कमरे में धारा 372 (2) द.प्र.सं. के अंतर्गत किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि ‘बलात्कार करने के आशय से किए गए हमले से बचाव हेतु हमलावर की मृत्यु तक कर देने का अधिकार महिला को है’ (धारा 100 भा.द.वि. के अनुसार),दूसरी बात साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ए) के अनुसार बलात्कार के प्रकरण में न्यायालय के समक्ष पीड़ित महिला यदि यह कथन देती है कि संभोग के लिए उसने सहमति नहीं दी थी, तब न्यायालय यह मानेगा कि उसने सहमति नहीं दी थी। इस तथ्य को नकारने का भार आरोपी पर होगा।दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था है। अतः महिलाओं को गवाही के लिए थाने बुलाना, अपराध घटित होने पर उन्हें गिरफ्तार करना, महिला की तलाशी लेना और उसके घर की तलाशी लेना आदि पुलिस प्रक्रियाओं को इस संहिता में वर्णित किया गया है। इन्हीं वर्णित प्रावधानों के तहत न्यायालय भी महिलाओं से संबंधित अपराधों का निवारण करता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के कई प्रावधान भी उत्पीड़ित महिलाओं के हितार्थ हैं। दहेज हत्या, आत्महत्या या अन्य प्रकार के अपराधों में महिला के ‘मरणासन्न कथन’ दर्ज किए जाते हैं। यह प्रावधान महिला को उत्पीड़ित करने वाले को दंडित करने हेतु अत्यधिक उपयोगी है।
धारा 363 में व्यपहरण के अपराध के लिए दंड देने पर 7 साल का कारावास और धारा 363 क में भीख माँगने के प्रयोजन से किसी महिला का अपहरण या विकलांगीकरण करने पर 10 साल का कारावास और जुर्माना, धारा 365 में किसी व्यक्ति (स्त्री) का गुप्त रूप से अपहरण या व्यपहरणकरने पर 7 वर्ष का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों, धारा 366 में किसी स्त्री को विवाह आदि के लिए विवश करने के लिए अपहृत करने अथवा उत्प्रेरित करने पर 10 वर्ष का कारावास तथा जुर्माने के प्रावधान हैं। धारा 372 में वैश्यावृत्ति के लिए किसी स्त्री को खरीदने पर10 वर्ष का कारावास तथा जुर्माना, धारा 373 में वैश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए महिला को खरीदने पर 10 वर्ष का कारावास, जुर्माना एवं बलात्कार से संबंधित दंड आजीवन कारावास या दस वर्ष का कारावास और जुर्माना, धारा 376 क में पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान संभोग करने पर 2 वर्ष का कारावास अथवा सजा या दोनों निर्धारित है।
धारा 376 ख में लोक सेवक द्वारा उसकी अभिरक्षा में स्थित स्त्री से संभोग करने पर 5 वर्ष तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों, धारा 376 ग में कारागार या सुधार गृह के अधीक्षक द्वारा संभोग करने पर 5 वर्ष तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।
धारा 32 (1) में मरे हुए व्यक्ति (स्त्री) के मरणासन्न कथनों को न्यायालय सुसंगत रूप से स्वीकार करता है बशर्ते ऐसे कथन मृत व्यक्ति (स्त्री) द्वारा अपनी मृत्यु के बारे में या उस संव्यवहार अथवा उसकी किसी परिस्थिति के बारे में किए गए हों, जिसके कारण उसकी मृत्यु हुई हो। धारा 113 ए में यदि किसी स्त्री का पति अथवा उसके रिश्तेदार के द्वारा स्त्री के प्रति किए गए उत्पीड़न, अत्याचार जो कि मौलिक तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित हो जाते हैं, तो स्त्री द्वारा की गई आत्महत्या को न्यायालय दुष्प्रेरित की गई आत्महत्या की उपधारणा कर सकेगा। धारा 113बी में यदि भौतिक एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्यों द्वारा यह प्रमाणित हो जाता है कि स्त्री की अस्वाभाविक मृत्यु के पूर्व मृत स्त्री के पति या उसके रिश्तेदार दहेज प्राप्त करने के लिए मृत स्त्री को प्रताड़ित करते, उत्पीड़ित करते, सताते या अत्याचार करते थे तो न्यायालय स्त्री की अस्वाभाविक मृत्यु की उपधारणा कर सकेगा अर्थात दहेज मृत्यु मान सकेगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 41 (सी) के अंतर्गत संज्ञेय अपराध, वे अपराध हैं जिनमें पुलिस को प्रत्यक्ष रूप से बयान देने व बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार है। इसके विपरीत जिन प्रकरणों में प्रत्यक्ष रूप से पुलिस को संज्ञान लेने व बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है, असंज्ञेय अपराध कहलाते हैं। धारा 47 (ए) के अंतर्गत गिरफ्तारी से बचने के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी मकान में छिपता है या प्रवेश करता है तो गिरफ्तार करने वाला व्यक्ति या पुलिस अधिकारी विहित नियमों के अनुसार मकान में प्रवेश कर सकता है और उस मकानकी तलाशी भी ले सकता है, परंतु धारा 47 (बी) के अंतर्गत यदि उस मकान में या उसके किसी भाग में ऐसी महिला का निवास है जिसकी गिरफ्तारी नहीं की जानी हो तो गिरफ्तार करने वाला अधिकारी, उस महिला से, उस मकान या स्थान से हट जाने के लिए आग्रह करेगा या उसे जाने देगा।
धारा 51 (1) (2) के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की तलाशी विहित नियमों द्वारा ली जा सकेगी किंतु यदि गिरफ्तार व्यक्ति महिला है तो पूरी शिष्टता के साथ किसी अन्य महिला द्वारा ही तलाशी ली जा सकेगी, धारा 53 (2) के अंतर्गत पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर किसी स्त्री अभियुक्त का शारीरिक परीक्षण किसी महिला चिकित्सा व्यवसायी द्वारा किया जा सकेगा। धारा 98 के अंतर्गत किसी स्त्री या 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को विधि विरुद्ध प्रयोजन के लिए रखे जाने या निरुद्ध रखे जाने पर और शपथ पर ऐसा परिवाद किए जाने पर, जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट विधि विहित नियमों में उसे स्वतंत्र करने का आदेश दे सकता है। धारा 100 (3) के अंतर्गत यदि कोई महिला अपने पास कोई चीज छिपाती है तथा उसकी जामा तलाशी करना है तो उसकी तलाशी पूरी शिष्टता के साथ अन्य कोई महिला द्वारा ही की जाना चाहिए।
पिछले दशक से महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कानूनी कवच दिया गया है, वह नई चुनौतियों के आगे अपने को लाचार पा रहा है। ये कानून ठीक तरह से लागू हों, इसके लिए सजग रहना होगा। लेकिन आने वाली सदी में महिलाओं की जगह क्या हो, इस बारे में एक समग्रदृष्टि विकसित करनी होगी। आज आवश्यकता जरूरत से ज्यादा कानूनों के थोड़े से पालन की नहीं, बल्कि थोड़े से कानून के अच्छी तरह पालन करने की है।
महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कर रही हैं। जमीन से लेकर आसमान में ही नहीं अंतरिक्ष में भी उनके कदमों की छाप मौजूद है। जिस तरह से उनका कद बढ़ा है, तो अब वे अपने हक और उससे जुड़े कानूनों के बारे में भी जानना चाहती हैं और यह एक सकारात्मक कदम है।
महिलाओं के प्रति हम सबकी सोच और नजरिये में पिछले कुछ दशकों में गजब का सकारात्मक बदलाव आया है। पर इन बदलावों का मलतब यह नहीं है कि पुरुष और महिलाएँ बराबरी पर पहुँच चुके हैं। समानता की यह लड़ाई अभी काफी लंबी चलनी है। दुनिया के कई देशों में आज भी महिलाएँ अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं। इनमें अपना देश भारत भी शामिल है। इससे बड़ा दुख तो यह है कि आज भी अधिकांश महिलाएँ अपने अधिकार और हक के बारे में सही तरीके से जानती तक नहीं हैं, जबकि होना तो यह चाहिए कि महिलाओं को अपने
अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी रहनी चाहिए।
उचित जानकारी का होना औरतों के लिए अत्यावश्यक है। एक माँ, पत्नी, बेटी, कर्मचारी और एक महिला के रूप में महिला को अपनी सुरक्षा के लिए निर्धारित अधिकारों के बारे में जानना और जागरूक होना चाहिए।जब वे अपने अधिकारों के बारे में अच्छी तरह से जानेंगी,तभी वे घर, कार्यस्थल , या समाज में आपके साथ हुए किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकेंगी।
पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो जाना था। लेकिन पुरुषप्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। आज हालात ये हैं कि किसी भी कानून का पूरी तरह से पालन होने के स्थान पर ढेर सारे कानूनों का थोड़ा-सा पालन हो रहा है। भारत में महिलाओं की रक्षा हेतु कानूनों की कमी नहीं है। भारतीय संविधान के कई प्रावधान विशेषकर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। इस बात की जानकारी महिलाओं को अवश्य होना चाहिए।साथ ही, इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कुछ महिलाएँ इन कानूनों का दुरुपयोग कर अपने परिवार, दोस्त या समाज के अन्य लोगों को परेशान कर अपना स्वार्थ भी पूरा करती रहतीं हैं।हम आये दिन ऐसी घटनाएँ भी देख रहे हैं और हाल के कुछ दिनों में ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी होती हुई भी देखी जा रही है।ऐसी महिलाओं की वजह से ही सामान्य महिलाओं की समस्याएँ भी कई बार शंका के घेरे में आ जाती हैं, जो सही नहीं है।कुछ महिलाओं की ऐसी प्रवृति आगे चलकर महिला-वर्ग के अधिकारों और सुरक्षा के क्षेत्र में घातक सिद्ध हो सकती है।अतः ऐसी महिलाओं का प्रतिकार और उनके खिलाफ कदम उठाना भी आवश्यक है।कुल मिलाकर देखा जाए तो हर महिला के लिए जरुरी है कि वह अपनी सुरक्षा और अपने अधिकारों से संबंधित कानूनों को जाने,समझे ओर समय आने पर उनका प्रयोग कर अपने और महिला-वर्ग की सुरक्षा निश्चित करे।इसके अलावा बदलते समाज और बदलती परिस्थिति में कानून में क्या बदलाव आने चाहिए, यह भी सरकार को जानकारी देती रहे।धर्म विशेष के कानून के हिसाब से महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा के लिए कानूनों की व्यवस्था भी भारतीय वैधिक व्यवस्था में बखूबी निर्धारित है ताकि किसी धर्म विशेष के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को रोका जा सके।बस,जरूरत है महिलाओं का जागरूक होना और समय पर निर्भरता के साथ आगे आना।
शक्ति-स्वरूपा स्त्रियों को अब स्वयं ही आगे आना होगा..
समाज के महिषासुर का शीश अपने कदमों में लाना होगा..
अर्चना अनुप्रिया
अधिवक्ता, शिक्षिका, लेखिका
दिल्ली