रत्न बड़े अनमोल-
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औषधि मणि मंत्राणाम्, ग्रह-नक्षत्र तारिका।
भाग्यकाले भवेत् सिद्धिः , अभाग्यं निष्फलं भवेत ।।
अर्थात, औषधि, मणि(रत्न) एवं मन्त्र, ग्रह-नक्षत्र जनित रोगों को दूर करते हैं। यदि समय सही है तो शुभ फल प्राप्त होते है, जबकि विपरीत समय में ये सभी निष्फल हो जाते हैं। हमारे ज्योतिष विज्ञान में रत्नों का वही महत्व है जो मेडिकल साइंस में दवाइयों का है। दरअसल रत्न हमारे शरीर में ग्रहों से आ रही किरणों को सोखकर हमारे शरीर मे ऊर्जा बढाते हैं।उस ग्रह से सम्बंधित शुभ फलों में बढ़ोतरी करते हैं। अतः आपकी कुंडली में जो ग्रह शुभ फलदायी हों मगर निर्बल हों, उनका रत्न धारण करके उन्हें बलशाली बनाया जा सकता है। यही कारण भी है कि अशुभ ग्रहों के रत्न सर्वथा त्याज्य हैं।
अनेक ज्योतिष ग्रंथों में जहाँ इसी प्रकार जातक की कुंडली मे दुःस्थिति के कारण कुफलदायी सूर्य आदि ग्रहों को प्रसन्न के लिए भिन्न भिन्न से सम्बंधित रत्नों के साथ ही अन्य पदार्थों को दान करने का निर्देश दिया है, वहीं शुभ फल की प्राप्ति के लिए रत्न धारण का भी निर्देश दिया गया है। “ज्योतिषतत्व सुधाणव” का यह वाक्य भी स्पष्ट कहता है कि जब सूर्यादि ग्रह कुफलप्रद हो, तब इनकी शांति के लिए क्रमशः माणिक्य,पन्ना,मूँगा, पुखराज, मोती,हीरा, नीलम,गोमेद,और मरकत (लहसुनिया) धारण करने चाहिए :
माणिक्यं विगुणे सूर्ये वैदूर्यम शशलाच्छने।
प्रवालं भूमिपुत्रे च पद्मरागम शशांकजे।।
गुरौ मुक्ताम भृगौ व्रजं इंद्रानीलं शनैश्चरे।
राहो गोमेदकं धार्यं केतौ मर्कतम तथा ।।
इसी प्रकार कश्यप मुनि और श्रीपति भी अशुभ ग्रहों के प्रकोप को शांत करने के लिए इनके अपने अपने रत्न धारण करने का सुझाव देते हैं।
अब सवाल ये उठता है कि रत्न किस प्रकार धारण किये जाएं कि सोई किस्मत जाग उठे। इस सम्बंध में विभिन्न ज्योतिर्विदों के अपने अलग अलग सिद्धांत हैं। कोई भाग्येश का रत्न पहनाता है, तो कोई प्रचलित दशा का रत्न पहनाता है। कोई राशि के स्वामी का रत्न पहनाता है तो कोई सूर्य की सायन राशि के अनुसार रत्न धारण का सुझाव देता है। यहाँ हम आपको उम्र की अवस्था अनुसार किस्मत जगाने वाले रत्नों को धारण करने का सुझाव दे रहे हैं। जिसके लिए हमने जीवन काल को 3 खण्डों में विभाजित किया है।
इसमें पहला खण्ड है प्राथमिक व उच्चशिक्षा का काल खंड। इसमें विभिन्न राशि एवम लग्न वाले व्यक्तियों को निम्नानुसार रत्न पहनना चाहिए—-
प्रथम खण्ड——
लग्न/राशि, रत्न
मेष, माणिक्य
वृषभ, पन्ना
मिथुन, हीरा/ओपल
कर्क, मूँगा
सिंह, पुखराज
कन्या, नीलम
तुला, नीलम
वृश्चिक, पुखराज
धनु, मूँगा
मकर, हीरा
कुम्भ, पन्ना
मीन, मोती।
द्वितीय खण्ड- जब प्रतियोगिता परीक्षा एवम उसके बाद कैरियर में उन्नति का अवसर हो, तब उक्त रत्न के साथ निम्नलिखित रत्न भी धारण करना चाहिए —
लग्न/ राशि रत्न
मेष पुखराज
वृष नीलम
मिथुन नीलम
कर्क पुखराज
सिंह मूँगा
तुला पन्ना
वृश्चिक मोती
धनु माणिक मकर पन्ना
कुम्भ हीरा
मीन मूँगा
तीसरा खण्ड — जीवन के तीसरे खण्ड में उत्तरदायित्व में जब वृद्धि होने लगती है तो प्रायः सभी क्षेत्रो में अनुकूलता की आवश्यकता महसूस होती है। ऐसी स्थिति में उपर्युक्त रत्नों के साथ निम्नलिखित रत्न भी धारण करना चाहिए।
लग्न/राशि रत्न
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मेष मूँगा
वृष हीरा/ओपल
मिथुन पन्ना
कर्क मोती
सिंह माणिक्य
कन्या पन्ना
तुला हीरा/ओपल
वृश्चिक मूँगा
धनु पुखराज
मकर नीलम
कुम्भ नीलम
मीन पुखराज
राहु और केतु आकस्मिक परिणाम देने वाले ग्रह हैं।उनके रत्न भी उनकी दशा/ महादशा में धारण किये जा सकते हैं। राहु का रत्न गोमेद और केतु का रत्न लहसुनिया है। यदि राहु केतु लग्न, द्वितीय, पंचम,नवम, दशम, या एकादश स्थान या भाव में हैं और उनकी दशा चल रही हो तो इन रत्नों को धारण कर आकस्मिक शुभ फलों की प्राप्ति की जा सकती है, और अपनी सोई किस्मत को जगाया जा सकता है।
यहाँ एक बात् महत्वपूर्ण है कि रत्न योग्य ज्योतिषी के दिशानिदेश के अनुसार ही धारण करना चाहिए ,अन्यथा इनका नकारात्मक असर पड़ सकता है। रत्नों को सदैव उनके लिए निर्धारित धातुओं में ही धारण करना चाहिए।
रत्न और धातु-
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माणिक्य को सोना या तांबा, मोती को चाँदी, मूँगा को सोना या तांबा, पन्ना को सोना या त्रिधातु, पुखराज को सोना या चाँदी, हीरा को प्लेटिनम और चाँदी में, नीलम को त्रिलोह,पंचधातु और अष्टधातु में,, गोमेद को पँचधातु या अष्टधातु में और लहसुनिया को भी पँचधातु या अष्टधातु में बनवाना चाहिए।
रत्न और अँगुली– माणिक्य, मोती, मूँगा अनामिका
———————– अँगुली में, पन्ना कनिष्ठिका में, पुखराज को तर्जनी में धारण करना चाहिए। जबकि हीरा, नीलम,गोमेद,लहसुनिया मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। तभी रत्नों का सही असर प्राप्त होता है।
रत्न का वजन– प्रायः रत्न का धारण सवाई ईकाई
———————- में किया जाता है। जैसे- सवा 7 रत्ती, सवा पांच रत्ती आदि। इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि सवाया होने पर वृद्धि होती है। इसी प्रकार से पौना वजन का रत्न नहीं धारण किया जाता। इसके पीछे मान्यता है कि पौना कमतर का प्रतीक है। ध्यान रहे कि सवाया का अर्थ 0.10 से लेकर 0.40 माना जाता है। इसी प्रकार पौना का अर्थ 0.7 से 0.9 तक माना जाता है। इस प्रकार 5.1 से लेकर 5.4 रत्ती तक का रत्न 5.25 रत्ती में माना जाता है।
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ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव
झारखण्ड