रचना उनियाल की कविताएं

रचना उनियाल की कविताएं

१.संकल्पों की निष्ठाओं के

भू नंदनवन के सौरभ से ,सकल जगत महकायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

विगत काल की रेखाओं पर ,हम नव रेखा खींचेंगे।
सदियों के माता गौरव को ,कण कण में अब सीचेंगे।।
शाश्वत संस्कारों की जय को ,जन मन तक पहुँचायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

मंदिर अभिनव संस्कृतियों का ,भारत में पूजा जाता।
मिलजुल कर वसुधा में रहते ,नभ में ऋषि जोड़ें नाता ।।
अनुरागित पावन आराधन,आवृत्तियाँ दोहरायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

भावों की अचला है जननी ,अटल अचल बंधन पाला।
राघव मर्यादा के पालक ,माधव गीता मतवाला ।।
युग के पृष्ठों की किरणों से ,दीपक ज्ञान जलायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

कनक धरा का अभिनंदन कर ,नगपति से बहती धारा ।
दिया निराश्रित को भी आश्रय, रचा तूलिका ने सारा।।
विलग- विलग धर्मों की निर्झर, सरिता विमल बहायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

कोटिकोटि हस्तों के श्रम का ,परचम नभ को चूमेगा।
वंदनीय है भूमि हमारी, शंखनाद भू गूँजेगा।।
जागृत उन्नति का धरणी मिल , गीत धरा पर गायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

मातृभूमि यह चेतनता की,सज्जनता की शाला है ।
पितृभूमि बन शिव शंकर को ,तन कंकर जप माला है ।।
गगन दामिनी चमके जितनी ,दिवस सनातन आयेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

शशि, मंगल ग्रह नभमंडल के ,अन्वेषण की शाला हो।
चंद्रयान का दक्षिण टुकड़ा,खनिज लवण जल पाला हो।।
वैदिक ज्ञानी बोधायन के, दिवस धरा लौटायेंगे।
संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।।

२-यक्ष प्रश्न
यक्ष के उस प्रश्न को अब,बन युधिष्ठिर जान।
जन्म है तो मृत्यु निश्चित ,प्राण तू पहचान।।

डोलता है झूमता है, गंध पाकर फूल।
आदि का सौरभ कराता,पुष्प से हर भूल।
अंक में भर ले मिले जो, साधनों संधान।
लोक के भौतिक जगत में,बन रहा नादान।।
कोष में केवल परम हो,अर्थ ले संज्ञान।।
जन्म है तो मृत्यु निश्चित ,प्राण तू पहचान।।

तीव्र गति से चल रहा मन,मोल उसका तोल।
देह की चिंता चिता है, द्वार उसके खोल।।
दान ही यश को दिलाता,काय कर संतोष।
सुख यहाँ है दुख यहाँ है,तन करे क्यों रोष।।
धर्म केवल ही दया हो,तज सदा अभिमान।
जन्म है तो मृत्यु निश्चित ,प्राण तू पहचान।।

वासना को त्याग देना, लालची पा दंड।
मित्र उसके ही रहेंगे ,तोड़ मद का खंड।।
सम रहे हर भाव में जो ,क्रोध रहता सुप्त।
हित करे जो प्राणियों का,धीर वाणी मुक्त।।
बोल मीठे सोच बोले,साधु उर श्रीमान।
जन्म है तो मृत्यु निश्चित ,प्राण तू पहचान।।

हो निरोगी तन धरा पर,कर्म का वह स्त्रोत।
हैं पिता ऊँचे गगन से ,मात धरती जोत।।

कर मनन जो इन गुणों को,देह बनती बुद्ध।
क्षुब्ध रहकर लब्ध रहता ,तो कहें क्यों शुद्ध।।
दक्ष ज्ञानी यक्ष प्रश्नों , आत्म कर जयगान जन्म है तो मृत्यु निश्चित ,प्राण तू पहचान।।

रचना उनियाल
केरल, भारत

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