मुख़्तसर सी बात है … तुमसे प्यार है
चैत के महीने पहाड़ी क्षेत्रों में घुर-घुर का राग अलापती घुघुती विरह का कोई लोकगीत सा गाती सुनाई पड़ती है। घुघुती हमारे उत्तराखंड की बहुत लोकप्रिय पक्षी है। गौरैया की तरह ही इंसानी आवास के आसपास रहना पसंद करती है। थोड़ा आत्मकेंद्रित भी,कि अगर खाने-पीने के लिए पर्याप्त मिलता रहे तो समूह के साथ वरना अकेले भी रह लेती है। जब प्रेम में पड़ने का मौसम आता है तो नर पक्षी बिन कुछ कहे मादा के सामने सिर्फ़ सिर झुका लेता है। मादा पक्षी को भी यदि नर की अदा पसंद आ गई तो दोनों आसमान में एक ऊंची उड़ान भरते हैं, और फिर साथ ही नीचे उतर आते हैं। इस उड़ान के बाद उनकी घर-गृहस्थी बस जाती है। मादा सदा-सदा के लिए अपने प्रिय नर से बंध जाती है, और जीवन भर एक ही साथी से निबाह कर प्रेम के शुद्ध रूप का उदाहरण प्रस्तुत करती है।
घुघते का प्रणय निवेदन मूक है, इसी से शायद प्रेम-कहानियों में इस पक्षी जोड़े का नाम थोड़ा गुमनाम सा लगता है,मगर प्रिय को पाने की आस में विरही चकोर का अंगार खा जाने वाले प्रसंग से ज्यादा घुघुती-घुघते का समझदारी भरा प्यारा साथ सुंदर लगता है।
कसमे-वादे, प्यार-वफ़ा जैसे शब्द भले ही इंसानों ने ईज़ाद किये , मगर इनके मानक और प्रतिमान स्थापित करते हैं घुघुती जैसे मासूम,बेजुबान पक्षी।
नजर में वफ़ा की सही परख़ और क़द्र है तो फिर कुछ कहकर प्यार का इज़हार करने वाली रस्म की ज़रूरत ही क्या !
प्रतिभा नैथानी
देहरादून, उत्तराखंड