मेरा प्रणय निवेदन
सुनो,,
आज फिर से तुम्हें प्रपोज करने को जी चाहता है।
मेरा बजट थोड़ा कम है,
शालिटेयर नहीं है मेरे पास,
दुर्गा माँ की पिण्डी से उठाए
गंगाजल से भीगे,
कुछ सूर्ख लाल अड़हुल के फूल हैं।
तुम स्वीकार तो करोगे ना?
मेरा प्रणय प्रणय निवेदन,,,
तुम पदाधिकारियों का क्या भरोसा?
हमारा प्रपोजल फिर से ठंडे बस्ते मे डाल दो
वैसे भी,
मैं तो तुम्हारे लिए हूँ ही,
सार्वभौमिक स्वीकृत!!
जीवनपर्यंत अस्वीकृत!!
और हाँ ..
इसबार मैं …कुर्सी पर नहीं बैठूंगी
तुम बैठना,
मैं तुम्हारे कदमों मे बैठूंगी,
ठीक वैसे ही जैसे तुम बैठे थे कभी…
मेरी गोदी मे सर रखकर,
और बोल पड़े थे,
इतना सुकून कहीं नहीं है
मोक्ष दो या मृत्यु!!
निर्णय तुम पर छोड़ता हूँ!!
कुमुद “अनुन्जया”
दिल्ली