तैयारी परीक्षा की
आज केे इस प्रतिस्पर्धात्मक और महत्वकांक्षी
युग में परीक्षा का महत्व और दबाव इस प्रकार बढ गया है कि बच्चे ही नहीं बल्कि पूरा घर परिवार भी परीक्षा की तैयारी में जुट जाता है। अगर बोर्ड की परीक्षा हो तब तो मानो पूरे घर मे ही कर्फ्यू लग जाती है। माँ पापा अपने जॉब तक से छुट्टी लेने में परहेज़ नहीं करते। टी वी बन्द, घूमना फिरना बन्द, साइलेंट मोड पर छुपा कर रखा गया मोबाईल। रिश्तेदारों और मेहमानों को भी ये खबर रहती है कि परीक्षा के मौसम में परीक्षा देने वाले बच्चे के घर जाना वर्जित है।
परीक्षार्थी की स्थिति ये होती है कि उसका खाना पीना, सोना, हँसना बोलना सब नदारद। रात दिन पूरे सिलेबस को दिमाग में तह पे तह करके रखते जाने के बावजूद डर और घबराहट के मारे कभी सिर दर्द, कभी चक्कर, कभी उल्टी तो कभी पेट दर्द हो रहा है। उस पर से पूरे घर वालों की नसीहत अलग से। कम मार्क्स आने पर भविष्य अंधकारमय है, इसका डर तो बचपन से ही कूट कूट कर भरा हुआ है।
ये हमारे देश में घर घर की कहानी है। एग्जाम फ़ोबिया नामक इस बीमारी से आजकल काफ़ी बच्चे जूझ रहे हैं ।इन सब कठिनाइयों से जूझ कर भी कोई खास फायदा नहीं होता, बल्कि आत्मविश्वास की कमी, अवसाद, असुरक्षा की भावना जैसी मानसिक व्याधियों से ग्रस्त बच्चे आगे भी अपनी राह और कठिन कर लेते हैं।
परीक्षार्थी की स्थिति ये होती है कि उसका खाना पीना, सोना, हँसना बोलना सब नदारद। रात दिन पूरे सिलेबस को दिमाग में तह पे तह करके रखते जाने के बावजूद डर और घबराहट के मारे कभी सिर दर्द, कभी चक्कर, कभी उल्टी तो कभी पेट दर्द हो रहा है। उस पर से पूरे घर वालों की नसीहत अलग से। कम मार्क्स आने पर भविष्य अंधकारमय है, इसका डर तो बचपन से ही कूट कूट कर भरा हुआ है।
ये हमारे देश में घर घर की कहानी है। एग्जाम फ़ोबिया नामक इस बीमारी से आजकल काफ़ी बच्चे जूझ रहे हैं ।इन सब कठिनाइयों से जूझ कर भी कोई खास फायदा नहीं होता, बल्कि आत्मविश्वास की कमी, अवसाद, असुरक्षा की भावना जैसी मानसिक व्याधियों से ग्रस्त बच्चे आगे भी अपनी राह और कठिन कर लेते हैं।
इन परिस्थितियों से बचने के लिये पेरेंट्स के लिये सुझाव:
बच्चों (परीक्षार्थियों) के लिये सलाह :

डॉ निधि श्रीवास्तव
मनोवैज्ञानिक सह-प्रधानाध्यापिका
विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल