बूढ़ी काकी

बूढ़ी काकी

हिंदी कहानी विधा में मुंशी प्रेमचंद का नाम सर्वोपरि है | मानव समाज की अनुभूतियों संवेदनाओं, एवं व्यवहार का यथार्थ चित्रण करती हुई प्रेमचंद जी की रचनाएं पाठक के हृदय को सीधे स्पर्श करती हैं | पाठक स्वयं को कहानी का एक पात्र समझकर उन कहानियों में खो सा जाता है | आगे क्या होगा यह जिज्ञासा उसे बनी रहती है | वैसे तो प्रेमचंद जी की सभी रचनाएं उत्कृष्ट हैं, परंतु वृद्धजन की समस्या को लेकर लिखी गई सर्व साधारण से जुड़ी “बूढ़ी काकी” मुझे बहुत पसंद आई| वृद्ध-समस्या एक ज्वलंत समस्या है | आज भी कितने वृद्ध अपनों से ही छले जा रहे हैं | अपने बुढ़ापे से तंग हुए कष्ट भोग रहे हैं | यह कहानी आज भी उतनी ही सार्थक और प्रभावशाली है, जितनी प्रेमचंद जी के समय में थी | ऐसी कालजयी रचना के विषय में कहानी के अंगों के अनुसार कुछ विचार कर लेना भी उचित होगा |
कथानक
“बूढ़ी काकी” कहानी का कथानक सामाजिक समस्या और स्वार्थ को केंद्र में लेकर चला है | इसका कथानक अत्यंत मार्मिक, जिज्ञासा पूर्ण, करुणामय, हृदय को झकझोर देने वाला है | बूढ़ी काकी के पति देव स्वर्ग सिधार चुके थे । बेटे तरुण हो-होकर चल बसे थे। उनका अपना कहने को केवल एक भतीजा ही है , जिसके साथ वह रहती है | उसी भतीजे ने बड़े- बड़े वादे करके सारी संपत्ति अपने नाम लिख वाली | बूढ़ी काकी का भतीजा पंडित बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा बूढ़ी काकी के साथ अत्यंत शर्मनाक व्यवहार करते हैं | वे उन्हें भोजन तक नहीं देते | उनके बेटे के तिलक के अवसर पर जब पूरी बिरादरी ने भरपेट भोजन किया, वहीं बूढ़ी काकी भूख से तड़पती रहीं और उनके क्रोध का भाजन भी बनीं | अंत में ब्राह्मणी होते हुए भी बूढ़ी काकी अपनी भूख मिटाने के लिए झूठी पत्तलों को चाटने लगीं, तब उनकी बहू रूपा को अपने किये की ग्लानि हुई | उसे ईश्वर से डर लगने लगा | उसने क्षमा मांगी | बूढ़ी काकी को सम्मान से भोजन कराया | बड़ा ही मनोवैज्ञानिक चित्रण है |
पात्र चरित्र चित्रण- मुंशी प्रेमचंद जी की इस कहानी में पात्र चरित्र चित्रण अत्यंत सजीव स्वाभाविक एवं समाज की यथार्थ स्थिति के अनुरूप है | बूढ़ी काकी – कहानी की मुख्य पात्र बूढ़ी काकी हैं, जिनके इर्दगिर्द पूरी कहानी घूमती है | वृद्धावस्था में भोजन के प्रति उनका आकर्षण होना, पोते के तिलक में सबके साथ बैठने, गीत गाने की इच्छा होना सब कुछ बड़ा स्वाभाविक है |
बुद्धिराम- बूढ़ी काकी का भतीजा अत्यंत तेज, चालक, धन का लोभी है | जो बूढ़ी काकी से सारी संपत्ति अपने नाम करवाकर बूढ़ी काकी को प्रताड़ित करता है |
रूपा – बुद्धिराम की पत्नी के स्वभाव में तीखापन है | वह बूढ़ी काकी के प्रति आग उगलती रहती है | पर वह ईश्वर से डरती है |
लाड़ली एवं दो पुत्र – बुद्धिराम की पुत्री लाड़ली बूढ़ी काकी के प्रति सहृदय है | वह उनका ध्यान रखती है | दोनों पुत्र बूढ़ी काकी का मजाक उड़ते हैं |
कथोपकथन – कथोपकथन की दृष्टि से भी यह कहानी अत्यंत हृदय स्पर्शी है | बूढ़ी काकी मन ही मन बात कर अपनी व्यथा को दर्शाती है | उस वृद्धा की सुनने वाला कोई नहीं है | दूसरी और बुद्धिराम और रूपा के तीखे संवाद हैं | रूपा बूढ़ी काकी को डांटते हुए कहती है |
“ऐसे पेट में आग लगे, पेट है या भाड़? कोठरी में बैठते हुए क्या दम घुटता था? अभी मेहमानों ने नहीं खाया, भगवान को भोग नहीं लगा, तब तक धैर्य न हो सका?”
लाड़ली और बूढ़ी काकी के संवादों में सहज स्नेह है |
देशकाल और वातावरण- देशकाल और वातावरण के वर्णन की दृष्टि से भी मुझे यह कहानी बहुत प्रिय है | रात के समय बेटे के तिलक का कार्यक्रम है | उस समय गीत गाना, खाना बनना, लोगों का घर आना उस पर बूढ़ी काकी का कोठरी में पड़े रहना सब कुछ बड़ा स्वाभाविक है और चित्रात्मक है | आज भी कितने घरों में यही होता है |
भाषा शैली – वर्णनात्मक एवं चित्रात्मक शैली में लिखी यह कहानी देशकाल और पात्रों के अनुकूल है | सरल, सहज, बोधगम्य भाषा के प्रयोग ने कहानी का आकर्षण और भी बढ़ा दिया है | लोकोक्ति और मुहावरों के प्रयोग से भाषा में चार चाँद लग गए हैं |
उद्देश्य – बूढ़ी काकी कहानी वृद्धावस्था की समस्या और उसके निराकरण पर खरी उतरी है | जहाँ कथाकार ने रूपा को भगवान का डर दिखाकर यह बताया है कि वृद्धों से दुर्व्यवहार करनेवालों भगवान से तो डरो, वहीं वृद्धों को भी अप्रत्यक्ष रूप से यह शिक्षा दी है कि चाहें कोई कितने भी सब्ज बाग क्यों न दिखाए पर अपनी संपत्ति अपने जीवन काल में अपने पास ही रखो | प्रेमचंद जी ने बुद्धिराम और रूपा जैसे स्वार्थी, लोभी लोगों को बता दिया है कि ऐसे लोगों को समाज में सम्मान नहीं मिलता और उनकी स्वयं की आत्मा भी उन्हें कचोटती रहती है |कहानी अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल हुई है |
हर दृष्टिकोण से मुझे यह कहानी बहुत प्रिय है |

सुनीता माहेश्वरी

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