निर्मला

निर्मला

आदरणीय प्रेमचंद जी एक महान साहित्यकार थे। उनकी सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं परंतु उन सब में मुझे उनका ‘निर्मला’ उपन्यास सबसे अधिक पसंद है। ‘निर्मला’ बेमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला अपने से बड़ी उम्र के व्यक्ति से विवाह होने के बावजूद हालात से समझौता कर लेती है। और अपनी सभी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे से निभाती है। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है। पति परायणता और अपनी सभी जिम्मेदारियां अच्छे से निभाने के बावजूद निर्मला को पति के शक और समाज में अनादर और अवहेलना का शिकार होना पड़ता है।

नारी होने के नाते मुझ पर मनोवैज्ञानिक रूप से भी इस उपन्यास का अधिक असर हुआ। अकसर दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने के या परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने पर महिला को अपशगुन कहे जाना या बिना वजह के शौक से दी जाने वाली मानसिक प्रताड़ना इस तरह के कई किस्से हम सुनते हैं। प्रेमचंद जी द्वारा अपनी लेखनी से समाज की इन बुराइयों को रोकने के लिए शिक्षा दी गई है। इस इस पाठ में एक लेखक होने के नाते मुझे भी प्रेरित किया है। इसके अलावा इस कथा का सुग्रांधित और संगठित होना, कथानक की कसावट, सामाजिक कुरीतियो का वास्तविक चित्रण ने मुझे बहुत प्रभावित किया। संपूर्ण उपन्यास शुरू से लेकर अंत तक पाठक को बांधे रखता है। नारी विकास के एनजीओ से जुड़े होने के कारण इस तरह के किस्से मैने आज भी समाज में नजदीक रूप से देखे हैं।

इस उपन्यास को लिखे कई वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इतने वर्षों में भी समाज में नारी की स्थिति में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है इस प्रश्न ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।
मेरा मानना है कि जब तक इस तरह की सामाजिक कुप्रथाएं बनी रहेंगी तब तक निर्मला जैसे उपन्यासों की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी।
स्वयं एक लेखिका होने की वजह से, इस उपन्यास में प्रेमचंद जी ने जो कलात्मकता जोड़ी है वह मैं स्वयं की लेखन मे आत्मसाध करना चाहती हूं।

स्मिता माहेश्वरी
पुने, महाराष्ट्र
शिक्षा – चार्टर्ड अकाउंटेंट,एम.कॉम
लेखन की विधाएं – कविता, लघु कथा, कहानी, लेख
YouTube channel – “सौगात by स्मिता माहेश्वरी”

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