गृह दाह
हिंदी साहित्य के एक आधार स्तभं और अभिन्न अंग के रूप में मुंशी प्रेमचंद की ख्याति केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व भर में फैली है। अपने सरल, सहज और स्वाभाविक लेखन से उन्होंने जनमानस के हृदय पर भारत के समाज ,उसके संस्कार , रिवाजों , आदर्शों के साथ – साथ भावपूर्ण कथाओं में समाज के मर्म और वास्तविक रूप का भी भली-भाँति परिचय दिया। उनकी कहानियों से जुड़ना उनकी भाषा और सरलता के कारण अति सहजता से संभव होता है।
प्रेमचंद जी द्वारा लिखित लघु कथा ‘गृह दाह’ एक ऐसी कहानी है जिसने मर्म को छुआ और ये भी अदृश्य रूप में बोध कराया कि कर्मों का भुगतान इसी जन्म में मनुष्य को करना पड़ता है। सौतेली माता का आगमन और बालमन का कौतुहल। बहुत ही सजीव रूप में उभरकर आते हैं। अकसर सुनी जाने वाली विमाता की कथाओं से इतर इस कथा में हर पात्र के विचारों का मंथन और समय एवं परिस्थिति विशेष में उसका आचरण सभी को अत्यंत सूक्ष्म रूप से शब्दों में पिरोया है।
कथा रोचक है क्योंकि सभी भावों का समावेश इसमें है। देवप्रकाश (पिता ) निर्मला (माता) के गंगास्नान वाले प्रसंग से परिवार में खुशहाली और आपसी प्रेम का ज्ञान होता है। सत्यप्रकाश (बालक) में माता को खोने के पश्चात होने वाले बदलाव भी बड़ी ही सुन्दरता से प्रस्तुत किये गए हैं। उसके बाद कहानी में उद्धृत सभी दृश्य और उनसे उत्पन्न परिस्थियाँ समाज में घट रही असल घटनाओं का क्रमवार चित्रण है।
प्रेमचंद जी के लेखन की विशेषता ही है कि सभी पात्र और घटनाएं आपके आस-पास सजीव हो उठते हैं। देवप्रिया (विमाता) और ज्ञानप्रकाश (अनुज) सभी पात्र कहानी को सशक्त और सन्देश को स्पष्ट करते हैं। जैसी करनी -वैसी भरनी के भाव लिए ये कहानी बहुत साफ़ सन्देश देती है कि हमारा उठया एक भी कदम हमारे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। हमारा व्यवहार,सोच और कर्म हमारे भविष्य के निर्माता हैं।देवप्रिया का बालकों के प्रति प्रेम में अंतर और उसका दोनों के जीवन में प्रभाव और उससे स्वयं देवप्रिया के जीवन की अपूर्ण क्षति जीवन के गूढ़ ज्ञान को उजागर करती है। देवप्रकाश ने अपने कर्मों को भोगा और दुर्गति को प्राप्त हुआ।
सौतेली माता के आगमन पर बालक की उपेक्षा और पिता का उसके प्रति बदला रवैया किस प्रकार बालमन को ठेस पंहुचाता और आहत करता है। इस कहानी में माता-पिता के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष व्यहवार का बच्चे के आगामी जीवन की रूप-रेखा की नीवं रखने में पड़ने वाले प्रभाव को उजागर किया है।सत्यप्रकाश के जीवन से आत्मविश्वास का लुप्त हो जाना और ज्ञानप्रकाश के जीवन में समस्त सुविधाओं के होते हुए उनसे विमुख हो जाने के लिए वो ही दोनों पात्र जिम्मेदार हैं।
प्रेमचंद जी की मार्मिक और जन-सामान्य के जीवन से जुड़ी कथाएं हर व्यक्ति के दिल में गहरी उतरती हैं। उनकी लेखनी का प्रभाव मेरी प्रस्तुत कहानी पर देखा जा सकता है।
रंजना बंसल
रीवा (म.प्र.)
शिक्षा – स्नातकोत्तर (अंग्रेजी और शिक्षाशास्त्र ) B.Ed
प्रकाशित पुस्तकें – 6 हिंदी कविता संग्रह (इश्क़ -ए – वतन ,आभासी दुनिया के अनोखे रिश्ते ,स्त्रोतम ,मीमांसा ,मानवत, खट्टी-मीठी बतियाँ )
दो अंग्रेजी कविता संग्रह (Psithurism , She Rose )
एक लघु कथा (आभासी VS तिलिस्म )
एक एकल e -book ( जज़्बातों की खुराफातें ,जज़्बातों की करामतें )
विधा-कविता , कहानी , लेख।