रंगभूमि

रंगभूमि

प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत आदर्शात्मक रुझान से की थी। प्रेमचंद अपने संक्षिप्त रचना काल में कई मार्गों पर चले और कुछ दूर चलकर अगर उन्हें खटका होता था तो राह बदल लेते थे। सुधार वाद ,आदर्शवाद ,गांधीवाद और साम्यवाद यह सभी उनके मार्ग रहे। हिंदी कथा साहित्य को जीवन की यथार्थता और आदर्शवादी प्रेरणा से समृद्ध करने का उनका योगदान सराहनीय रहा ।जीवन का व्यापक चित्रण सामाजिक समस्याओं की यथार्थ अभिव्यक्ति ,मानवीय संवेदनाओं से बने स्वाभाविक और विश्वसनीय कथानक, विभिन्न वर्गों और पेशों के अनेक पात्रों का सजीव चित्रण, पात्र के अनुकूल भाषा शैली, जीवन की स्वस्थ प्रेरणाओं और आदर्शों की अभिप्राय के रूप में अभिव्यक्ति प्रेमचंद के कला सूत्र है।
इनके द्वारा रचित कई रचनाएं मैंने पढ़ी है। जिनमें ‘रंगभूमि’ उपन्यास मेरा प्रिय है। इसका क्षेत्र बहुत ही व्यापक और विस्तृत है।इसमें हिंदू,मुसलमान, ईसाई ,नागरिक, ग्रामीण के साथ विभिन्न वर्गों और स्थितियों की संयोजन है। गांव तथा नगरों के परिवारों का वर्णन किया गया है। इसके लिखे जाने के समय गांधीजी का सत्याग्रह आंदोलन पराकाष्ठा पर था। गांधीजी के सामाजिक ,राजनीतिक तथा आदर्शमूलक विचारों से प्रभावित यह उपन्यास जनमानस के लिए काफी उपयोगी है। इस उपन्यास का मुख्य पात्र सूरदास अंधा भारतीय ग्रामीण जीवन का प्रतीक है। इसका चरित्र,कथ्य, विचार गांधीवादिता में पगा हुआ है ।वह अंधा और निर्बल होने के बाद भी निष्ठावान है। अपनी संस्कृति और सभ्यता का मूल्य भली भांति जानता है।विनय, सोफिया और प्रभु सेवक आदि के चित्रण में भी गांधीवादी जीवन दृष्टि का प्रभाव मूल रूप में दिखाई पड़ती है। सूरदास परतंत्र किंतु स्वाधीनताकामी भारतीय जीवन का प्रतिनिधि के रूप में है। भारतीय निर्बलता और साधनहीनता के साथ ही गांधी जी द्वारा प्रतिष्ठित आशावादी और अजेयता भी सूरदास के जीवन में निहित है। इस तरह उसके जीवन में विरोधी परिस्थितियों और गुणों का मिश्रण पाठकों को प्रभावित करता है। यह उपन्यास गांधीवादी उपन्यास भी कहा जाता है । क्योंकि यह गांधीजी की राजनीतिक चेतना से अनुप्राणित है। रंगभूमि प्रेमचंद की उपन्यास कला का एक विकसित सोपान है ।चरित्रों की विविधता, बहुलता और तत्कालीन जीवन की व्यापकता इसकी विशेषता है।
उन दिनों देश सेवा की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही थी। रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से पूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊंचा उठाता है। देश की नवीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निजी आवश्यकताओं और वासनाओं से ऊपर उठकर निस्वार्थ भाव से देश सेवा की उत्कंठा राष्ट्रीयता को प्रश्रय देती है। रंगभूमि का नायक सूरदास का पूरा जीवन क्रम यहां तक कि उसकी मृत्यु भी राष्ट्र नायक की छवि लगती है ।पूरी कथा गांधी दर्शन ,निष्काम कर्म और सत्य के अलंबन को ही दृष्टिगत करती है ।यह उपन्यास संग्रहणीय है ।कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है ।इसमें स्वतंत्रता आंदोलन की संघर्ष की, अपने कर्तव्यों के प्रति जागरण की उद्घोषणा है।
पूरा उपन्यास भारत के आम जनमानस की गाथा है ।इस उपन्यास को पढ़ते समय हम स्वत: एक पात्र के रूप में स्थापित हो जाते हैं।विषय मानवीय भावना और समय के अनंत विस्तार तक जाती है ।यह उपन्यास इतिहास की सीमाओं को तोड़ती हुई कालजयी है ।नौकरशाह तथा पूंजीवाद के साथ जन संघर्ष का तांडव, सत्य ,निष्ठा, अहिंसा के प्रति ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र इसमें अंकित है । इसमें परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक रूप का बेजोड़ निरूपण किया गया है। हर दृष्टिकोण से मुझे यह उपन्यास अधिक लुभाती है। एक स्वस्थ समाज में रहने के लिए जिन भावनाओं का आग्रह या अपेक्षा हम करते हैं। उन सभी का नमूना उपन्यास में मौजूद है।

निशा भास्कर
शिक्षा-एम.ए(हिन्दी) बी.एड
प्रकाशित पुस्तकें-परिवर्तन(साझा कथा संग्रह) धरती, स्पंदन, स्पंदन-2(साझा काव्य संग्रह)
विद्यालयी पत्रिका: शिक्षा ज्योति
पत्रिका-अरण्य वाणी, शब्दों की आत्मा में (आलेख लेखन),सुवासित (नारी विशेषांक) में काव्य।
दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक अखबार बोलती खबरें एवं रीवा, मध्यप्रदेश से प्रकाशित विंध्य टुडे में कहानी, लघुकथा एवं कविताएं प्रकाशित।

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