प्रेमचंद की कहानी”बड़े भाईसाहब”- एक विश्लेषण

प्रेमचंद की कहानी”बड़े भाईसाहब”- एक विश्लेषण

कहानी का सार…
प्रेमचंद जी की सभी सशक्त और जीवंत रचनाओं में मुझे “बड़े भाई साहब” नामक कहानी अत्यंत ही आकर्षित करती है। इस कहानी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह पाठकों का मनोरंजन करती हुई आज भी उतनी ही प्रासंगिक है और शिक्षा प्रणाली पर चोट करती हुई प्रतीत होती है। 
बड़े भाई साहब दो भाइयों के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने की कहानी है,जिसमें बड़े भाई तीन कक्षा आगे होते हुए अभिभावक की भूमिका निभाते हैं ।वह स्वयं को खेलकूद से अलग रखकर छोटे भाई को अक्सर खेलकूद से दूर होकर  पढ़ाई-लिखाई के उपदेश देते रहते हैं।अपने बड़े भाई के ठीक विपरीत,छोटे भाई का मन खेलकूद में ज्यादा लगता है और वह चंचल प्रवृत्ति का है।लेकिन,जब परीक्षा का परिणाम आता है तब छोटा भाई अपनी कक्षा में अव्वल आता है, जबकि दिन-रात पढ़ाई करने के बावजूद बड़े भाईसाहब फेल हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, उन दोनों के बीच का फासला तीन दर्जे की जगह एक दर्जा ही रह जाता है।बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई की चंचलता और खेलक्कड़पने को ललकाराते हुए अपने बड़े और अनुभवी होने की धौंस जमाते हैं और व्यवहारिक ज्ञान की जरूरत पर उपदेश भी देते हैं।अंततः वह रटंत विद्या की से हुई अपनी असफलता को मन में स्वीकारते हैं और मन की दबी इच्छाओं को आजाद करते हैं ।साथ ही,खेलकूद के महत्व को स्वीकारते हुए अपने मन को भी उन्मुक्त कर देते हैं।कहानी के अंत में वह छोटे भाई के साथ कनकौए लेकर दौड़ते और मजे लेकर खेलते हुए दिखाई देते हैं।

विश्लेषण..
इस कहानी के मुख्य पात्र बड़े भाईसाहब ही हैं।घर से दूर छात्रावास में रहते हुए और बड़े होने के नाते छोटे भाई का ध्यान रखने की जिम्मेदारी निभाते हुए वह जिस तरह छोटे भाई को अँग्रेजी,इतिहास, अलजेबरा आदि विषयों की भव्यता समझाते हैं,उससे  पाठकों का बड़ा मनोरंजन होता है।जरूरत पड़ने पर तरह-तरह के उपदेशों और विभिन्न प्रकार के उदाहरणों से वह जिस तरह छोटे भाई को अनुशासित रहने की हिदायतें देते हैं,उससे पाठकों में कहानी के प्रति रूचि दोगुनी हो जाती है। छोटा भाई चंचल और प्रतिभावान है परंतु बड़े भाई साहब की हर बात को सिर झुकाकर सुनता है,थोड़ी देर के लिए डरता भी है लेकिन,खेलकूद के मैदान में आते ही सबकुछ भूल जाता है।इस दृश्य को समझाने के लिए कहानीकार ने जिस तरह के  शब्दों को बुना है,वे कहानी को अत्यंत रोचक बना देते हैं।ज्यादा रुचि खेलकूद में होते हुए भी छोटे भाई का लगातार अव्वल आना पढ़ाई में उन्मुक्त मन की जरूरत बताता है।मन को मारकर जबरन पढ़ते रहने से सफलता हाथ नहीं आती,न ही कोई ज्ञान बढ़ता है,इस बात को कहानीकार ने बखूबी उजागर किया है।यह बताकर कि बड़े भाई साहब  दिन-रात पढ़ाई करते रहने के बावजूद एक ही कक्षा में बार-बार फेल हो जाते हैं, कहानीकार ने रटंत विद्या पर भी सवाल उठाने की कोशिश की है।छोटा भाई ज्यादा खेलकूद में रहता है परन्तु, ध्यानपूर्वक पढ़ता है और हमेशा परिणाम अच्छा ही लाता है, जबकि बड़े भाई साहब किताबी कीड़ा हैं,हर वक्त पढ़ाई में लगे रहते हैं फिर भी,फेल हो जाते हैं। कहानीकार ने बड़े भाई साहब के माध्यम से हमारी शिक्षा पद्धति की कमियाँ बताने की कोशिश की है।उन्होंने एक तरफ तो रटी-रटाई शिक्षा की असफलता दर्शायी है, तो दूसरी तरफ यह भी दिखाने का प्रयास किया है कि अच्छा और पढ़ाकू दिखने के प्रयास में कैसे हम अपनी स्वाभाविक इच्छाओं को दबा देते हैं, जिससे जीवन में गतिरोध पैदा होता है और सफलता के मार्ग में बाधक बनता है..”मैं कनकौए उड़ाने को मना नहीं करता,लेकिन करूँ क्या,खुद बेराह चलूँ तो,तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ?यह कर्तव्य भी तो मेरे सिर है!” इस उक्ति से कहानीकार ने बड़े भाई के कर्तव्य को दर्शाते हुए यह बताने की भी कोशिश की है कि जिस बात के लिए आप दूसरों को शिक्षा देते हैं, वह आचरण सबसे पहले स्वयं के व्यक्तित्व में उतारना जरूरी है।इसके अतिरिक्त,कहानीकार ने शिक्षा के साथ स्वास्थ्य और प्रसन्न मन के महत्व को भी इंगित करने की कोशिश की है।खेलकूद और पढ़ाई साथ-साथ चलें तभी स्वस्थ व्यक्तित्व का विकास संभव है। इच्छाओं को दबाकर पढ़ाई करने की  शिक्षा पद्धति व्यक्तित्व के विकास में बाधक हो सकती है और कुंठा पैदा कर सकती है। उस दौर में लिखी उनकी यह कहानी आज की शिक्षा पद्धति के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक सिद्ध होती है।आज हम सब भी पढ़ाई के साथ खेलकूद और अच्छे स्वास्थ्य तथा प्रसन्न मन की बात कर रहे हैं और शारीरिक व्यायाम पर जोर दे रहे हैं।साथ ही,इस तरह की जरूरत को  अपने बच्चों की शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा मान रहे हैं।इस कहानी में शिक्षा पद्धति के उन दोषों का भी वर्णन किया गया है, जो बच्चों को किताबी कीड़ा बनाते हैं और जीवन के व्यवहारिक ज्ञान से अलग रखते हैं। बड़े भाई साहब तोता-रटन्त पढ़ाई करने की वजह से ही बुद्धि का विकास नहीं कर सके थे। एक अच्छी शिक्षा पद्धति में पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी महत्व होना चाहिए ताकि स्वस्थ शरीर में प्रसन्न मन को संजोया जा सके और पढ़ाई का व्यवहारिक सदुपयोग हो। कहानी के अंत में यह बताकर कि… “भाईसाहब लम्बे हैं ही,..उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा हॉस्टल की तरफ दौड़े”..कहानीकार ने खेल को भी व्यक्ति के विकास के लिए पढ़ाई के साथ महत्वपूर्ण साबित किया है।’बुद्धि के साथ व्यक्तित्व का विकास भी आवश्यक है’- यह विचार आज के दिनों में भी उतना ही जरूरी और प्रासंगिक है। इस कहानी की लेखन-शैली व्यंगात्मक और अत्यधिक मनोरंजक  है।छोटे, आसान और मनोरंजक शब्दों से बुनी यह कहानी ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ हमारी संस्कृति और  हमारे समाज की शिक्षा-पद्धति को सकारात्मक दिशा दिखाती है।

अर्चना अनुप्रिया
दिल्ली, भारत

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