बड़े भाईसाहब
प्रेमचंद जी की लिखी हुई यूं तो बहुत सी कहानियाँ हैं जो मुझे पसंद हैं जैसे ईदगाह, बड़े घर की बेटी, दो बैल, हार की जीत, बड़े भाईसाहब, पूस की रात, गरीब की हाय आदि। पर आज मैं “बड़े भाईसाहब” के बारे में यहाँ बताना चाहूंगी। “बड़े भाईसाहब”, कहानी दो भाइयों के बीच के संबंध, उनके समय के साथ बदलते विचार, उनके आपस के प्यार की कहानी है। मानवीय सम्बन्धों को बड़े ही सरलता से पाठकों को दर्शाती है। कहानी में दो भाई हैं और दोनों के बीच पाँच। दोनों साथ पढ़ना शुरू करते हैं पर भाईसाहब एक ही दर्जे में एक या दो और कभी तीन साल कर के निकलते हैं ।
उस समय में भाई के प्रेम, अधिकार और आदर भाव को दर्शाया है, यदि आज के समय में देखा जाये तो यह भाव, हम कम ही देखते है। पर उस समय बड़े भाई का आदर, सम्मान, अधिकार था की छोटे भाई को डांट सके, उस पर बंदिश लगा सके।
कहानी में छोटा भाई पढ़ाई की अलावा खेल खुद करता है, शरारतें करता है, घूमता है पर बड़े भाईसाहब सिर्फ पढ़ाई और किताबों के बीच घिरे रहते हैं और समय समय पर छोटे भाई को पढ़ाई ना करने पर, अन्य चीज़ें करने पर डांटते भी हैं। जहां छोटा भाई, बच्चों के भावों को दर्शाता है, कैसे बाल मन कभी तितली पकड़ने को भागता है, कभी नदी में यूं ही कंकर डालने को, कभी यूं ही आकाश को तांकने को करता है, तो कभी शरारतों को मचलता है, वहीं दूसरी ओर बड़े भाई साहब ज़िम्मेदारी को दिखाते हुए दर्शाये गए हैं। कहानी में बड़े भाई की छोटे भाई को लेकर फिक्र दिखाई गयी है , बड़े भाई चाहता है की छोटा उसे देख कर सबक ले और वो गलती ना करे। समय व्यर्थ ना करे खेल में, तमाशे में, पढ़ाई करे और पिता द्वारा किए जा रहे पढ़ाई के व्यय को सार्थक करे।
आगे बड़े भाईसाहब फिर उसी कक्षा में रह जाते हैं और छोटा भाई अव्वल आता है। उस समय छोटे भाई का थोड़ा साहस बढ़ना और बड़े भाई को बिना कहे अपने व्यवहार से जाताना की मैंने खेल कूद की फिर भी अव्वल आया, बहुत ही सुंदर तरीके से बताया गया है। पर बड़े भाई साहब तुरंत अपने को सही बताते हुये ये कह देते हैं की बड़ी मुश्किल पढ़ाई है, छोटे भाई जैसी आसान कहाँ? और पुनः उसे डांटते हैं के क्यों नहीं वह समझता? पढ़ाई मे मन लगाने की सलाह देते हैं, ये किरदार सच में, यथार्थ हो उठता है कहानी के संवादों से। छोटा बात बड़े भाई की बातें सुन निराश भी हो जाता है, पर जैसा की बाल मन होता है, दूसरे ही पल निराशा को छोड़, फिर से दूसरी बातों में रम जाता है। छोटे भाई का बड़े भाई की बात सुन टाइम-टेबिल बनाना जैसा की हम सबसे किया है बचपन में, पर हर बार बस टाइम टेबिल बनता है, लागू नहीं किया जाता, वही, इस कहानी में भी होता है।
यही प्रेमचंद जी की कहानियों की खूबसूरती थी कि वे हर छोटी छोटी बात को, बारीकियों, को अपनी कहानी में कहते थे, जिससे हर बात, हर परिस्थिति अपनी सी लगती और जीवंत हो उठती। पाठक उनकी कहानी से खुद आत्मसात कर पाता।
“फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच में भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकडा रहता है, मैं फटकार और घुडकियां खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता।” छोटे भाई द्वारा सोची गयी यह पंक्ति सहज है, और गहरी भी। मुंशी जी ने मृत्यु में भी मोह में बंधे मानव की स्थिति को कितनी सरलता से यहा कह दिया फटकार के बाद भी खेल खूद में मन लगाने से तुलना करते हुये।
पुनः बड़े भाई का फ़ेल हो जाना और छोटे भाई का अव्वल आना दो साल तक बताया गया है। छोटे भाई के मन में एक भाव आना कि इस बार भी भाई साहब न पास हुए तो हम दोनों एक ही कक्षा में होंगे और फिर मैं उनका रोब ना सहूँगा, पर दूसरे ही पल भाई पर दया आना, सरल शब्दों में दिखाया गया है। पर जैसा की उनकी हर कहानी के अंत में होता है, इस कहानी में भी यह उजागर होता है कि बड़े भाई का भी मन करता है खेलने को पर यदि वो ऐसा करे तो छोटे भाई को कैसे रोके। इसीलिए ज़िम्मेदारी निभाते हुये वे खुद को खेल कूद, अन्य मौज मस्ती से दूर रखते हैं ताकि छोटे भाई पर गलत प्रभाव न पड़े और वो गलत मार्ग ना चल पड़े। और छोटे भाई को पुनः बड़े भाई का आदर करते हुये कहानी की पंक्तियाँ पाठक के मन को एक बार नम देती हैं।
जीवन की गूढ़ बातों को सरल और सहज भाव से अपनी प्यारी सी कहानी में बुनकर कह पाना प्रेम चंद जी की कर सकते हैं।
अंकिता बाहेती
दोहा, क़तर
संप्रति – लेखिका, कवियत्री, चित्रकार, शिक्षिका
लेखन विधा -छंदमुक्त तुकांत/ अतुकांत कविता, हाइकु, सेदोका, वर्गम, वार्णिक छंद, लघुकथा, गद्य।
आविष्कृत लेखन विधा -वर्गम कविता।
प्रकाशित पुस्तकें (साझा संग्रह) – मीमांसा, स्त्रोतम्, काव्य वाणी 1, Women we know, Audacity of blank pages, Psithurism, Inquest: Ambers of life.
प्राप्त सम्मान -2018 में अंतरराष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी में पुरस्कृत, प्रशस्ति पत्र।
अनेकों मंच द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित।