मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं उनका कथा संसार इतना समृद्ध है कि यदि कोई साहित्य सरिता मे डूबना चाहे तो उसका रोम रोम अमृत मय हो जाए।गोदान गबन सेवा सदन निर्मला जैसी ऐसी कई कालजयी कृतियाँ मुंशी प्रेमचंद ने भारतीय साहित्य को दिए हैं जिसके लिए हिन्दुस्तानी साहित्य उनका ऋणि रहेगी हिन्दी साहित्य की जगह हिन्दुस्तानी साहित्य शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि प्रेमचंद ने उर्दू मे भी लिखा है।ऐसी कई विशेष विशेषताएं हैं जो उनको दूसरे साहित्यकारों से अलग करता है।प्रेमचंद ने अपने साहित्य मे लोक को जोड़ा है।जो हासिए पर थे दबे कुचले उन्हीं को पात्र भी बनाया कथानक के समीप भी रखा और अपने साहित्य को भाषा को थोड़ा सरल किया जिसका परिणाम यह हुआ कि साहित्य का सरोकार सर्वहारा समाज तक हूआ 1918 से 1936 तक का काल प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है।गौर से देखा जाए तो यह स्वतंत्रता आन्दोलनों का कालखण्ड रहा है मुंशी प्रेमचंद ने अपने रचनाओं के माध्यम से स्वेशी के भाव और परतंत्रता के विरोध स्वर का भी सृजन किया है।वैसे तो मुंशी प्रेमचंद की सभी कहानियां अदभुत हैं किन्तु मेरी पसंदीदा कहानियों मे प्रेमचंद की कहानी है।

ईदगाह एक ऐसी कहानी जो हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए मुफीद है ऐक सशक्त कथानक के साथ इस कहानी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह समाज के किसी वर्ग विशेष को साधकर नहीं लिखी गई है। बालक के कोमल मन और और दादी के प्रति उसके स्नेह को दर्शाता है मानवता क्या है दूसरे के दुख से द्रवित होना छद्म सहानुभूति नही सच्ची सहायता करना जो कि हामिद ने किया यह मेरा निजी विचार है कि सच्चा साहित्य वह है जो मानव मूल्यों से सरोकार रखे इस कसौटी पर ईदगाह बिलकुल खरी उतरती है।

कुमुद ‘अनुन्जया’
भागलपुर, बिहार

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