रैली
“चलो, हटो… भागो इंहा से… खत्तम हुआ सब कुछ…. जगह खाली करो।” पुलिस वाले डंडे घुमाते हुए जगह खाली कराने की कोशिश कर रहे थे।
“अरे.. साहब, कहाँ जाएं हमलोग, अभी बस आता होगा… खाली कर देंगे… इंहा जगह भी है अउर धूप भी लग रहा है…” वहां खड़े एक नौजवान ने कहा।
” दादी भूख लगल है..” बगल में ही खड़े नन्हे, जिसकी उम्र लगभग आठ वर्ष होगी, ने अपनी बूढ़ी दादी के कंधे को झिंझोरते हुए कहा।
“रुक न बउआ… अभी बस आता है… राह में कुछ खरीद देंगे।” दादी पोते को ढांढस बंधा रही थी।
” न दादी हमको कल्हे जईसा खाना चाहिए, चलो न उहंई जहां कल्ह रात खाए थे आउ सोए थे, आऽ केतना मोलायम कंबल भी मिला था।” नन्हे के नथुनों में पूरी, सब्जी, जलेबी और मिठाईयों की सुगंध अभी तक विद्यमान थी।
” उहां जाने देगा पुलिस, अब त इंहऊ से भगा रहा है।” दादी ने पोते को समझाने की कोशिश की।
” किंयो नहीं जाने देगा, कल्ह तो जाने दिया था !” नन्हे ने मासूमियत से पूछा।
” कल हमलोग को रैली में जाने के लिए बोलाया था सो इज्जत बात किया, अब रैली खत्तम हमलोग का काम खत्तम।” दादी ने थकी हुई आवाज में कहा।
” अब फेर रैली कब होगा, दादी।”
“अरे बउआ, चल-चल बस आ
गिया। ”
सब लोग बस की तरफ चल पड़े।
ऋचा वर्मा
पटना,बिहार