चीखती खामोशियाँ

चीखती खामोशियाँ

उतारो ” साली”के सारे कपड़े और पूरी तरह निर्वस्त्र करके पेड़ पर बांध कर कोड़े से मारो , पंच परमेश्वर में से एक ने ये राय दी , ….तभी दूसरे ने कहा नही इसके मुँह काला करके पूरे गाँव मे घुमाया जाय , इसी तरह जिसके जो मन मे आया फैसला सुना रहे थे ।
और वो इस जेठ के महीने में भी” बर्फ़” सी जमी हुई खड़ी थी उसके चेहरे पर कोई भाव नही दिख रहे थे .. सब कुछ बड़ी शांति से सुन रही थी , …तभी वहाँ एक सूट बूट पहने हुए ,सज्जन आते है और उस महिला को झिझोड़ कर बोलते है,तुम कुछ बोलती क्यों नही हो …”.सुभागी” इतने गम्भीर ,और घिनौना आरोप लगाया जा रहा है तुझ पर और तुम्हारी खामोशी तुम्हारे गुनाहों की गवाही दे रही है यूँ चुप ना रहो बोलो की तुम निर्दोष हो ….. …. तब सुहागी बोली किससे बोलूँ, क्या बोलूँ यहाँ सीता को अग्नि परीक्षा के बाद भी त्याग दिया जाता है , पाँच पतियों वाली द्रौपदी को उनके पतियों के सामने ही निर्वस्त्र करने का प्रयास किया जाता है गलती चाहे किसकी भी हो पत्थर तो अहिल्या को ही बनना पड़ता है।
, ये वो समाज है इंजीनियर साहब जहाँ लोग पाप तो अपना धोते है पर मैली “गंगा “को कहते है .समय कितना भी बदल जाए पर महिलाओं के प्रति समाज के सभ्य और आधुनिक कहे जाने वालों की सोच भी इतनी तंग हैं कि अब तक पूरी तरह से नारी स्वातंत्र्य को स्वीकार नहीं कर पाएं हैं पहले की अपेक्षा अब और भी जादा हिंसा, बलात्कार और दहेज प्रताड़ना की शिकार हो रही। और मैं इनसे न्याय की भीख मांगू नही , कभी नही……


तभी ग्राम प्रमुख ने दाँत पिसते हुए कहा आप कौन होते हो हमारे गाँव के मामले में पड़ने वाले , आप नही जानते इस “कलंकिनी ” को ड़ेढ साल से विधवा है और अपने पेट मे 4 महीने का पाप लेकर घूम रही है निर्लज्ज इसकी वजह से हमारे गाँव की “आबो हवा”खराब हो रही है …तभी वो सूट बूट वाले सज्जन बोले मैं ही अच्छी तरह जानता हूँ कि सुभागी निर्दोष है ..क्योंकि आज से 2 साल पहले जब इस गांव में सड़क निर्माण का काम चल रहा था तब मेरी डियूटी यही थी ।मैं सिविल इंजीनियर हूँ एक बार कार्य निरीक्षण के लिए आया था तो मेरी नजर भी सुभागी के खूबसूरती पर पड़ी थी , मैं संयम खो बैठा ,और अपनी काम वासना के वसीभूत होकर इसके घर चला गया,और प्रस्ताव दिया कि अपनी “कुछ राते” मेरे नाम कर दे तो मैं तुम्हारे “टी बी” के बीमारी से जूझ रहे पति का ईलाज करवा दूँगा ,,,तब यही सुभागी नागिन सी फुंफकारती हुई कुल्हाड़ी ले कर दौड़ी थी ,….तो फिर अब तो इसके पास खोने के लिए कुछ भी नही है ये ऐसा गुनाह कैसे कर सकती है। ऐ जरूर किसी अपने या का या फ़िर दबंग कहे जाने वाले किसी बूजदिल के हवस का शिकार हुई होगी। इंजीनियर की बातें सुनकर सब हैरान थे ।
इंजीनियर हाथ जोड़ कर बोले इसे मेरे हवाले कर दीजिए ग्राम प्रधान जी . …
,और उन्होंने हामी में सिर हिला कर अनुमति दे दी …..
अचानक तालियों की गड़गड़ाहट से सुभागी अपने वर्तमान में लौट आई एक विशाल जन समुह उनके स्वागत के लिए आतुर थी हर कोई उसकी एक झलक पाने के लिए प्रयत्नशील दिखाई दे रहा था हो भी क्यूँ ना “सुभागी “अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली से “”नारी उत्थान”” का पुरस्कार लेकर लौटी है उसी के सम्मान समारोह में आज भब्य आयोजन रखा गया था ….सुभागी को यह पुरस्कार ,विधवा परित्यक्ता, निराश्रित और बलात्कार पीड़ित, महिलाओं के लिये जन जागरण और आत्मनिर्भर बनाने तथा अनेक लाभकारी योजना से जोड़ने के कारण मिला था। आज भी सुभागी के चेहरे पर कोई भाव नही था पर आत्मसम्मान से भरा हुआ उसका चेहरा चाँद की तरह दमक रहा था …..

ये सिर्फ एक कहानी नही है आज भी सुदूर आदिवासी, और वनवासी क्षेत्रों की महिलाएं इस तरह की परस्थिति से दो चार होते रहती है ……..शहर में होने वाली घटनाएं सुर्खियां बनती है मीडिया की , पर हजारों हिर्दय विदारक घटनाएं रोज दम तोड़ देती है गाँव मे …अक्सर…..

अनिता वर्मा

0
0 0 votes
Article Rating
833 Comments
Inline Feedbacks
View all comments