अमीना का चूल्हा
बंगाल की खाड़ी के तटवर्ती इलाके का एक छोटा सा गांव है गोलाखाली। नारियल, सुपारी और सुंदरी वृक्ष से सजे इस गांव में कुल मिलाकर छत्तिस घर बसा है । यहां के ज्यादातर लोग मछुआरे हैं जो निम्न वित्तीय श्रेणी में आते हैं।
गांव के पश्चिम छोर के अंत में एक झोपड़ी में अमीना अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहती थी। अमीना का पति अब्दुल पिछले साल सावन में एकदिन मछली पकड़ने गया था और घर वापस नहीं लौटा। सुंदरबन क्षेत्र में यह कोई नई बात नहीं थी। यहां के बहुत से मछुआरे इसी तरह हर वर्ष समुद्री तूफान के चपेट मे आकर डूब जाते हैं या फिर बाघ का शिकार हो जाते हैं। यहां के लोगो का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण है।
अमीना किसी तरह केकड़ा पकड़कर और शहद संग्रह करके अपना और बच्चों का पेट पाल रही थी। ज्यादातर वह एक ही समय का खाना जुगाड़ कर पाती और रात को अक्सर भूखे पेट ही सो जाती। कभी-कभी उसको लगता था कि वह भी समंदर में कूदकर अपनी जान दे दें। मगर जब छोटे-छोटे बच्चों को देखती तो सोचती, मैं चली गई तो इनका क्या होगा , इनको कौन देखेगा! बच्चों के मायाभरी नजरों को देखकर वह रो पड़ती , फिर मन को कठोर करते हुए अपने भाग्य को कोसती रहती।
१७ मई २०२० के दिन कुछ लोग ब्लॉक ऑफिस से गांव आए और सब को स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में जाने को कहा, जो कि अमीना के गांव से ५० किलोमीटर की दूरी पर था। क्योंकि दो दिन बाद आंफान तूफान आने का आशंका था, इसलिए सभी गांववालों को चेतावनी दिया जा रहा था कि वह लोग सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाए। इलाके के सारे गांव को खाली कराया जा रहा था ।
सब के साथ अमीना भी अपने बच्चों को लेकर चल पड़ी । घर छोड़ने के समय पीछे मुड़कर देखा तो कुछ टूटे फूटे बर्तन, एक पानी का घड़ा, पुरानी चटाई, कुछ कपड़े और मिट्टी का चूल्हा नजर आया। पुआल और माटी से बने अपने घर को छोड़ते वक्त उसकी आंखें भर आई।
देखते देखते वह दिन आ ही गया जिस दिन आंफान तूफान आने का आशंका किया जा रहा था। दोपहर से ही हल्की हवा के संग टिप टिप बारिश शुरू हो गई। शाम होते-होते बारिश तेज़ी से बरसने लगी, तूफान अपने प्रबल बेग से बह रहा था। धीरे-धीरे उसका गति बढ़ने लगा। सृष्टि जैसे उथल-पुथल सी हो रही थी। सबका दिल बिल्कुल बैठा जा रहा था। किसी ने अपने जीवन में इतनी भयानक तूफान पहले कभी नहीं देखा । अमीना अपने तीनों बच्चों को बाजुओं में जकड कर, सीने से लगाए बैठी रही। तूफान अपना तांडव दिखा रहा था। इस तरह पूरी रात बीत गई।
अगले दिन सुबह सब कुछ शांत होने के बाद चारो तरफ दूर-दूर तक पानी ही पानी नजर आ रहा था। बहुत से बड़े बड़े पेड़ उखड़ गए थे, स्थानीय लोगों का घर उजड़ गया था, विद्यालय की दाहिने हिस्से की दीवार भी टूट चुकी थी। लोग डरे-सहमे से थे, शायद जिंदा होने के अहसास से हैरान थे। इस तरह दो दिन उस स्कूल में बीत गया जहां न तो भोजन का व्यवस्था था न ही पीने का पानी । सरकार कोशिश तो कर रही थी पर वहां तक पहुंचने में दिक्कतें आ रही थी। धीरे धीरे मिलिट्री वाले राहत का सामान लेकर पहुंच रहे थे ।
जब पानी उतर गया तब लोग धीरे-धीरे अपने घर के तरफ बढ़ने लगे। अमीना भी अपने गांव के लोगों के साथ अपने बच्चों को लिए घर के तरफ जाने लगी। मीलों पैदल चलने के बाद जब अपने गांव पहुंची तो उसे उसका घर न दिखा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसका घर आखिर गया कहां ! एक बार के लिए लगा, वह किसी गलत जगह तो नहीं आ गई ! फिर गांव के मुखिया करीम मियां, उसके पहचान वाले शब्बीर चाचा , फरीदा बुआ और कई लोगों ने उससे कहा कि यही उनका गांव है। पर अगर यह उसका गांव है तो उसका घर कहां है? वहां तो घर का कोई नामोनिशान नहीं था। धीरे-धीरे वह पश्चिम दिशा की ओर बढ़ने लगी। कुछ दूर जाने के बाद उसे एक मिट्टी का चूल्हा नजर आया। जब सामने पहुंची तो उसके दिल ने आवाज़ दिया ‘अरे यह तो मेरा ही चूल्हा है ‘ , चूल्हे में हाथ फैलाते फैलाते वह निश्चित हो गई, हां यह उसी का चूल्हा है।
वह फूट-फूट कर रोने लगी। चूल्हे के चारो तरफ उसको अपना एक भी सामान नजर नहीं आ रहा था। तूफान सबकुछ बहा लेे गया था। पता नहीं कैसे यह चूल्हा बच गया ! शायद आग में तपकर वह इतना मजबूत बन गया था कि विध्वंसी तूफ़ान भी उसे हिला न सका। उसके दोनों आंखों से आंसुओं की नदी बह रही थी। अब कैसे वह बच्चों को लेकर रहेगी, क्या खिलाएगी, कैसे गुजारा चलेगा , सोच सोच कर पागल हो रही थी। इतने में शब्बीर चाचा आए और उन्होंने कहा, ” ब्लॉक ऑफिस में हाजरी लगाओ, आंफान से पीड़ित लोगों का नाम रजिस्टर किया जा रहा है, सभी को राहत शिविर में रखा जा रहा है, बच्चों को लेकर तुम वहीं चली जाओ, कुछ दिन का गुजारा हो जाएगा “, शब्बीर चाचा ने और भी कहा ” सरकार ने पीड़ितो को बीस हजार की राशि देने की घोषणा की है “। यह बात सुनकर अमीना को थोड़ी राहत मिली। वह बच्चों के संग राहत शिविर की तरफ जाने लगी। फिर से उस चूल्हे में भात पकाने का सपना आंखो में सजाए धीरे-धीरे अमीना आगे बढ़ने लगी।
पामेला घोष दत्ता
जमशेदपुर