नवरंग
बरसात पर लिखी गई होगी कविता और प्रेमिका के बिछोह के गीत, पर गाँव में तो बरसात बड़ी मुसीबत है। हर तरफ पानी, कीचड़। रास्ते बंद। ना बिजली ना कहीं आना-जाना। तीन किलोमीटर चलकर जाओ तब पक्की सड़क मिलती है। गाँव की कच्ची पगडंडी को पकड़कर उसने तो बारहवीं क्लास तक पढ़ लिया। भैया था न साथ। रोज स्कूल साइकिल पर ले जाता था। बसंती, उर्मिला, मीना सबने तो आठवीं क्लास में ही छोड़ दिया था। सबकी शादियाँ भी हो गईं – पास पास के गाँव में। खेती करने वाले, छोटे साइकिल पंक्चर की दुकान वाले से — अब सपनों का राजकुमार भला इतनी दूर गाँव में कहाँ मिलेगा। लेकिन सब खुश थे — छोटी कमाई, छोटी खुशियाँ। लेकिन ऐसे ही खाली बैठे-बैठे रेखा का मन नहीं लगता था। बारहवीं पास थी, थोड़ी बहुत पेंटिंग करती थी, जिले की एक-दो प्रतियोगिता में पुरस्कार पा चुकी थी। लगता था आसमान छूँ लूँ, लेकिन पंखो में शायद उतना जोश नहीं था।
रेखा का पति बिट्टू थोड़ा पढ़ा लिखा था। शहर जाकर फसल बेचता था। मेरी जोरू घर पर ही रहे, ऐसा नहीं सोचता था। दाल-रोटी के साथ-साथ कुछ और भी मिले तो क्या हर्ज है? रेखा ने बात की उर्मिला से और उसने मीना से। बस ऐसे ही कड़ी जुड़ती गई। फिर तय हुआ एक जगह मिलते हैं। बड़ी तैयारी हुई। साफ साडी, माँग में सिंदूर, बिंदी, सज-धज कर पहुँची सब रेखा के घर। पूरे सात लोग थे। तय हुआ कि वे सब गाँव की मुंगौडी, बड़ियाँ बनाएँगी और बिट्टू बाजार में बेचेगा। अगर बिक गई तो फिर आगे की सोचेंगे।
अगले छह महीने में इनका व्यापार चल निकला। घर के बने मुंगौड़े, बड़ियाँ, तिलौरी की अच्छी माँग थी। दो लोग और जुड़ गए और नवरंग नाम रखा उन्होंने। पैसे का हिसाब रेखा और मीना, और कितना और कौन बनाएगा-उर्मिला और पूनम। सबके सपने सजने लगे – पैसा जमाकर चाँदी के हार, कमरे की मरम्मत और पैसे जमाकर नई रजाइयाँ, कपडे | सबके अलग सपने और अलग चाहत। लेकिन एक चीज सभी में थी- आगे जाने की।
और तभी गाँव में अचानक आ गई बाढ़। कहते हैं बादल फट पड़ा। डिब्बे में जमा किया रुपया ऐसे ही बह गया पानी में। रात का समय था। अफरा-तफरी में डब्बा दिखा ही नहीं घुप्प अंधेरे में। वैसे रेखा ने बहुत कोशिश की ढूँढने की। पूरे तीन हजार थे और हजारों ख्वाहिशें। लगा जैसे सब कुछ मिट गया। किसी तरह से बचते-बचते सड़क पर पहुँचे। गाँव की सबसे ऊँची जगह वही थी।
उर्मिला अपने बच्चे और छोटी पोटली के साथ थी। बाकी तो दूसरे गाँव में थे। क्या हुआ होगा। रेखा को शर्म और ग्लानि थी। दूसरों की कमाई ऐसे ही खो दी उसने। उर्मिला समझाने लगी उसको कि हम नवरंग हैं। ये तकलीफ आई है तो समझो हमें समझदार बनाने के लिए। हमारी नई डगर है, नई उमर है। हुनर है हममें। शक्ति भी है हममें। हम आकाश छू सकते हैं। आकाश में तो सात ही रंग हैं, हम तो नवरंग हैं। रेखा ने सोचा कि बाढ़ खत्म होते ही इसका समाधान निकालेगी। उसके मन को एक नए जोश ने भर लिया- हाँ, हम करेंगे नई शुरूआत।
डॉ. अमिता प्रसाद