दहलीज

‘दहलीज’

लगभग बाइस-तेईस बरस की कमली घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने का काम करती है। पति मजदूर है और सात बरस से कम उम्र के चार बच्चे थे दोनों के। उनमें से दो बड़े बच्चे स्कूल जाते हैं। तीसरी और चौथी बच्चियां अभी बहुत छोटी हैं। उन्हें घर पर अकेला छोड़ना सहज न था इसलिए दोनों बड़े बच्चों के स्कूल जाते ही मां दोनों छोटे बच्चों को गोद में लिये काम पर निकल जाती। घर पर ताला लग जाता तो गली की एक मुंहलगी कुतिया भी उनके पीछे-पीछे चलने लगती। कमली के बच्चों ने प्यार से उसका नाम रखा था ‘रिंकी’।

जिस घर में वह काम करती थी, वहां की मालकिन जरा तंगदिल थी। कमली के बच्चियों को लाने पर उसे ऐतराज़ था ही, रिंकी के उनके आंगन में बैठ जाने से वो और ज्यादा नाक-भौं सिकोड़ लेती। कमली और उसकी बेटियों का तो रोज ही जाना होता मालकिन के घर। लेकिन छह महीनों में एक वक्त ऐसा होता था जब रिंकी उनके पीछे नहीं आती थी। वह चली जाती कमली के छोटे से घर के पास वाले खंडहर में। यह उसके बच्चे जनने का समय होता था। कमली समझ जाती थी और एक मां की तरह उसके लिए दूध रोटी रख जाती।

बरसात का समय था जब रिंकी ने खंडहर में फिर बच्चे जने। रात को बारिश जोरों पर थी। कमली की पुरानी पक्की झोपड़ी का एक हिस्सा ढह गया। जान बचाने की गरज़ से कमली भरी बरसात में पति और बच्चों के साथ बाहर निकल आई। सिर छुपाने की कहीं कोई जगह नहीं थी। सोचा कि जिस घर में बरसों से काम कर रही है वहां कम से कम बरामदे में तो आश्रय मिल ही जाएगा। रात भर के लिए। कमली परिवार सहित मालकिन के घर की ओर चली। इतनी रात में रिंकी ने उन्हें जाते हुए देखा तो बात समझने के लिए वह भी पीछे-पीछे हो ली।

देर रात में गेट खटखटाने पर मालकिन जरा नाराज थी। तब और ज्यादा भड़क गईं जब कमली ने रात भर बरामदे में ठहरने की इच्छा जाहिर की। बोली- ‘नहीं,नहीं यह नहीं हो सकता। छोटे-छोटे बच्चे हैं तुम्हारे साथ और कोढ़ में खाज की तरह यह कुतिया भी साथ लेकर आ गई हो। हमारे बरामदे को गंदा करोगे तुम लोग ?’

कमली अपना-सा मुंह लेकर वापस पलट गई। वापसी में मामला थोड़ा उल्टा हो गया। रिंकी आगे-आगे थी और कमली पीछे-पीछे। बेहाल कमली रिंकी के पीछे इस तरह चल रही थी जैसे अब वही उसे कोई राह दिखाएगी। बहुत जोर से कूं कूं की आवाज करती वह उन्हें अपने खंडहर तक ले गई। कमली ने देखा कि उसका खंडहर कुछ सूखी जगह पर था। कमली और उसके बच्चों को सिर छुपाने के लिए जगह मिल गई जैसे।

खंडहर के एक कोने में कमली का परिवार है तो दूसरे कोने में रिंकी के बच्चे। बड़े आदर से कमली के पैरों में सिर दबाए बैठती है रिंकी। आश्चर्य यह था कि अपने जचगी के दिनों में वह किसी को भी उधर से गुजरने न देती थी। कोई दिखा तो शेरनी की तरह दहाड़ने लगती। कमली को उस पर बहुत दया आती जब रिंकी के सभी छह बच्चे दूध के लिए एक साथ उस पर झपट पड़ते। इधर कमली के बच्चों का भी ऐसा ही हाल था। बुझे मन और भरी आंखों से सोचने लगी वह कि मेरी और रिंकी की स्थिति में अंतर क्या है? उसे समझ आया कि अधिक बच्चे होना उन दोनों मांओं की बेबसी का एक बड़ा कारण है।

कमली का भूखा-प्यासा परिवार बेसुध होकर सोया ही था कि खंडहर में कुछ लोग आए और रिंकी पर जाल डाल उसे खींचकर ले जाने लगे। कमली ने पूछा- ‘कहां ले जा रहे हो इसे इस तरह ?’
‘इंजेक्शन लगवाने।: जवाब दिया उन्होंने।
‘किस बात का इंजेक्शन?’
‘अरे इस बात का कि अब इसके और बच्चे न हों।’

कुछ महीने बीत गए।‌ इस बार रिंकी के पेट पर कोई उभार नजर नहीं आया तो कमली आश्वस्त हो गई। ‌ लेकिन अपने बारे में खटका उसे लगा ही रहता है। उसने अपने पति से बात की तो लापरवाही और गुस्से से वह बोला – :तुम अस्पताल जाओगी तो बच्चों को कौन देखेगा ? नहीं करवाना कोई ऑपरेशन।’

पति से बहस के कारण आज काम पर आने में उसे थोड़ी देर हो गई थी। वहां पहुंचते ही उसकी छोटी बच्ची दूध पीने की जिद करनी लगी। बच्ची को सीने से लगाया ही था कि मालकिन बोली – ‘एक तो इतनी देर से आ रही है काम पर और अब बच्ची को लेकर बैठ गई। हो जाएगा ऐसे में काम ?’
कमली जरा खीझकर बोली- :मालकिन हमेशा तो ना रहेंगे ये दिन। कुछ वक्त में यह दोनों भी स्कूल जाने लगेंगी।’
‘यह स्कूल जाने लगेगी तो क्या इसके पीछे कोई और पैदा ना हो जाएगा ? तुम लोगों का तो भगवान ही मालिक है।’
लज्जा और अपमान से कमली गड़ गई। उस दिन का काम खत्म करके बोली- ‘कुछ दिन का एडवांस दे दीजिए मालकिन। हफ्त़े भर के लिए काम पर नहीं आ पाऊंगी।’
‘क्यों?’
‘कुछ काम है मुझे।’

कमली घर आ गई। अगली सुबह देर से जागी। घर को व्यवस्थित किया। बच्चों के लिए खाना बनाया और उन्हें कुछ समझाने लगी। पति ने पूछा – :आज काम पर नहीं जा रही क्या?’
‘नहीं’।
‘क्यों’?
‘आज अस्पताल जाऊंगी’।
‘तबीयत खराब है’?
‘नहीं।’
‘तब फिर’?
‘आशा दीदी के साथ अपना फैमिली प्लानिंग का ऑपरेशन करवाने जाऊंगी।’ कमली ने सहजता से जवाब दिया।
‘अरे तुम अस्पताल जाओगी तो बच्चे कौन देखेगा’?
‘तुम’
‘मैं कैसे देखूंगा’ ?
‘जैसे मैं देखती हूं हर रोज’

बिना पलटे कमली ने कदम बढ़ा लिए दहलीज के पार

प्रतिभा नैथानी
देहरादून, उत्तराखंड

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