लौ बन कर मैं जलती हूँ 

लौ बन कर मैं जलती हूँ 

 

 

दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ

दो हज़ार बाईस बस था जैसा भी था जैसे तैसे बीत गया

कुछ अच्छा होने की आशा में ना जाने क्या क्या रीत गया

पाँव पखारूँ अश्रू के गंगाजल से ,लो अब मैं चलती हूँ

दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ

 

सारी उम्र लगा दी प्रेम से सबके हृदय को भरने में

रख लेना सब लगन मेरी अपने मन के छोटे से कोने में,

प्रेम हवन से उपजी उस भस्म को क्षितिज पर मैं मलती हूँ

दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ

 

 

जीवन-गति माँगे समर्पण ,सुंदर अतीत का तर्पण कर दूँ

बीती यादों को थाली में सजाकर उनका अर्पण कर दूँ

दो अनुमति मुझको दोस्तों अब अगले संवत में मिलती हूँ

दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ

 

लिखी जो कहानी अपनी पुरानी सारे किरदार क्यों रुलाने लगे

मेरी गाथा को अतीत से निकाल भविष्य की और ले जाने लगे

मौसम बदले तो नए आशियाने में चिड़िया बनकर मैं मिलती हूँ

दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ

 

इंदु अग्रवाल 

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