“पर्यावरण संरक्षण “
धरती कहे पुकार के
जरा देख मुझे संतान मेरे
अपने ह्रदय के प्यार से
अपनी चक्षु की नमी से
कब समझोगे मेरा प्रेम
जो सदा है समर्पित
तुम्हारे लिए सदियों से
और तुम लुटते हो
मेरा सौन्दर्य
मेरी मुस्कान
चीर देते हो मुझे
मेरी ये पीड़ा
जो समझोगे कभी
मैं हूँ इंतजार में
तुम्हारे सत्य
पहल के लिए
पर्यावरण संरक्षण
का तुम्हारा संकल्प
दूषित होती
तुम्हारे लिए ही
कल कल बहती नदियाँ
मिटाने को प्यास
सागर की गहराईयाँ
भूल जाओगे
मंद समीर के झोंके
विकृत होती दिशाएं
फीके सौन्दर्य पुष्प
तुम्हारी आगे की पीढ़ी
कोसेगी तुम्हे
अरे चेतो मेरे
मानव पुत्र पुत्रियाँ
प्रगति के जुनून में
सबकुछ गवाँ ना देना
मैं वेदना से व्याकुल
शैलाब कब तक
रहूँ दबाए …
डॉ आशा गुप्ता “श्रेया”
गायनेकोलॉजिस्ट्स और साहित्यकार