पर्यावरण दिवस
सूखी नदियाँ,सूखी धरती
सिसक उठी करती चित्कार,
मैली कितनी अब होऊँगी
अब सब मिलो, करो विचार।
बहा दिया तुम नाली कीचड़
नदी पवित्र इस गंगा में
अपने जन से रक्तपात कर
रक्त बहाया दंगा में।
जंगल काटे,काटे पौधे
काट दिए तुम पर्वत को,
अपने सुख में मानव तूँ ने
बढ़ा दिया है नफरत को।
की है हत्या तुम पशुओं की
दिया रौंद हर प्राणी को,
जल श्रोतों का नाश किया है
तरस रहे अब पानी को।
निर्मम हत्या की, वन प्राणी की
मनुष्य नहीं तुम दानव हो,
ह्रदय नहीं जब तेरे तन में
तुम कहाँ फिर, मानव हो?
डॉ अरुण सज्जन