The Wintertime Lover

The Wintertime Lover Skipping through the surface of pond, your smile greets me with solemn pride, a relentless poker-faced killer. nonchalant and composed. The four- leaf clover sprang up from the earth, longing for your gentle touch. Alas, you turned away in disdain for such a young love in bud. A flicker of hope came…

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I Am Woman

“I Am Woman” Here I stand whole and complete in majestic beauty with Grace and Mercy about my loins and feet! I am gentle as a breeze blowing through the trees; A pillar of strength in times of difficulty and adversity! A well of emotions and passions are suckled from my breasts while the tears…

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मन के मोड़

मन के मोड़ कहते हैं राह तो सीधी होती है, मोड़ तो सारे मन के हैं। पहाड़ों के मोड़ों पर लिखा होता है कि मोड़ तीखे हैं, हार्न बजाएँ। जिंदगी में शायद कोई नहीं बताता कि आगे मोड़ है, यहाँ से निकलना मुश्किल होगा और आगे ना बढ़ें। मालती खिड़की से बाहर देखती हुई सोच…

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दसवें दिन ‘माँ दुर्गा’ क्यों नहीं ??

दसवें दिन ‘माँ दुर्गा’ क्यों नहीं ?? हर बार नवरात्र समाप्त होते ही दसवें दिन ‘श्रीराम’ एक नायक के रूप में उभरकर सामने आते हैं, और ‘रावण’ खलनायक के रूप में पेश किया जाता है। विजयादशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी देखा जाता है। मैंने शायद एक-दो बार ही रावण…

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गुजरात की नवरात्रि

गुजरात की नवरात्रि गुजरात की नवरात्रि का सबसे प्रमुख आकर्षण होता है गरबा नृत्य या डाँडिया नृत्य। भारत के अधिकतर राज्यों में मूर्ति पूजा का चलन है लेकिन गुजरात में मूर्ति पूजा की जगह खुले आसमान के नीचे माँ की तस्वीर लगा कर उसकी चारों तरफ झूम कर गरबा नृत्य करके नवरात्रि मनाने की परंपरा…

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दशहरा : भक्ति की विरासत

दशहरा : भक्ति की विरासत शिवरात्रि, होली, दीपावली, छठ – फिर बीच में तीज, सत्तुआनी, जितिया, भैया दूज – ये वर्ष के त्यौहार हैं बिहार के। कहने को तो बिहार एक भौगोलिक इकाई है लेकिन उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में बहुत फर्क है। कहते हैं ना, चार कोस पर बदले वाणी, ढाई कोस पर पानी…

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काया की माया

काया की माया रामबाण से घायल होकर पड़ा भूमि पर जब दशकंधर, लक्ष्मण से बोले तब रघुवीर , शिक्षा लो रावण से जाकर रावण के समीप जा लक्ष्मण, रहा प्रतीक्षा करता कुछ क्षण , फिर रघुवर से जाकर बोला, वह तो कुछ भी नहीं बोलता, कहा राम ने खड़े थे कहाँ बोला सिर के पास…

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सृष्टि करती कुछ सवाल

सृष्टि करती कुछ सवाल….. क्या होता गर बच जाती उसकी जान… आ जाती लौट कर घर,वह बेटी लहूलुहान। स्वीकार कर पाते तुम उसको….? देते उसको उसका स्थान…..? या भोगती वह ,अपने ही ऊपर हुए जुल्म की सज़ा दिन-रात? अनन्त तक खिंच जाती वेदना -व्यथा की रेखाएँ…. जब देखती वह माँ का करुण विलाप.. दिशाओं को…

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