डाॅ उमा सिंह किसलय की कविताएं

डाॅ उमा सिंह किसलय की कविताएं १.मैं धार हूँ नदिया की मैं धार हूं नदिया की रंग तरंग में बहती हूं संग संग दो किनारों के मैं बीच में बहती हूं है जटिल बहुत पथ ये अवरोध कई पग में धारा टकराती है हर संकट से मग में नदिया की सनक यही सागर से मिलना…

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रचना उनियाल की कविताएं

रचना उनियाल की कविताएं १.संकल्पों की निष्ठाओं के भू नंदनवन के सौरभ से ,सकल जगत महकायेंगे। संकल्पों की निष्ठाओं के ,पुष्प धरा खिल जायेंगे।। विगत काल की रेखाओं पर ,हम नव रेखा खींचेंगे। सदियों के माता गौरव को ,कण कण में अब सीचेंगे।। शाश्वत संस्कारों की जय को ,जन मन तक पहुँचायेंगे। संकल्पों की निष्ठाओं…

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अनु बाफना की कविताएं 

  अनु बाफना की कविताएं  1.मशाल सी कलम प्रखर हो सूर्य किरणों-सा,तपिश से लोह भी पिघले । करे जो सत्य-आराधन,खरा सोना सदा उगले । दिखे जब राष्ट्र खतरे में, कि तीरों की करे वर्षा । बहे जब लेखनी ऐसी,सितारा देश का उजले । रचा साहित्य ऐसा था,लगे वनराज की गर्जन। जगाये ओज तन-मन में, उफन…

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डॉ जसबीर कौर की कविताएं

डॉ जसबीर कौर की कविताएं 1.नारियां मानवता का गौरव, वात्सल्य प्रेम सौरभ, सृजन की मृदुल परिभाषा हैं ये नारियां सहिष्णुता को निहित कर, शक्ति पराकाष्ठा बन अद्भुत करूणाकलित अभिलाषा हैं ये नारियां। मानवता का गौरव…..   जीवन सुरभित करें , प्रेम सानिध्य बन पीयूष शक्ति सी ,जग उत्थान करें नारियां ईश की ये प्रतिध्वनि, धर…

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डॉ जया आनंद की कविताएं 

डॉ जया आनंद की कविताएं  1.धरती धरती नेह से लरजती है संवरती है उपजाती है सरस जीवन , सहन करती है बोझ उपेक्षा का, घृणा का और अति होने पर कम्पित हो जता देती है अपना आक्रोश नहीं ..अब और नहीं 2.लड़कियां लड़कियां सहेज लेती हैं घर परिवार रिश्ते-नाते ,मित्र और अपना अस्तित्व लड़कियां द्वार…

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अरुण कुमार जैन की कविताएं 

अरुण कुमार जैन की कविताएं  प्रकृति के साथ पत्थरों और पहाड़ों से कौन सर फोड़ना चाहता है बस पहाड़ों के नाम से हर कोई मुंह मोड़ना चाहता है मगर कभी देखो जाकर उन पहाड़ों की तस्वीर समझो कभी उनकी तासीर मौसम बदलते रंग और नजारे पहाड़ों के साए में बहती नदी उनके ऊपर से बहते…

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रीता रानी की कविताएं

रीता रानी की कविताएं 1.अनुपात – समानुपात किसी भी शोक को सभी ने अपने-अपने पाव में नापा , प्रविष्ट हुए सब अपनी- अपनी खोह में , दुख की कालिमा को देखने के लिए । थोड़ी देर के लिए शोक समानुपातिक हो गया , इस तरह व्यक्तिगत होकर भी वह सार्वजनीन हो गया ।   समाज…

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डाॅ रजनी झा की कविताएं

डाॅ रजनी झा की कविताएं 1.प्रेम (सीता) सीता चकित हो गयी थी विवश व्यथित हो गयी थी सजल नयन लक्षमण को देख खता अपनी पुछ रही थी। आर्यपुत्र ने क्यों सजा दिया अपने से क्यों दूजा किया चौदह वर्ष वन मे संग रखा अब क्यों अपने से दूर किया? निरूत्तर लक्षमण सर झुका खड़े रहे…

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डॉ श्रीमती कमल वर्मा की कविताएं 

डॉ श्रीमती कमल वर्मा की कविताएं  १.राष्ट्रीय चेतना और जागृति  भारत मांँ पर जो कुर्बान,उनके जज्बों को प्रणाम, भारत मांँ के वो सपूत,भारत मांँ की वो है शान| भारत मांँ पर जो कुर्बान,उनके जज्बों को प्रणाम॥ कहाँ गये वो माँ के बेटे,माँ पर करते जां कुर्बान, एक हाथ में गीता रहती, दुजे में पकडे कुरान।…

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विद्या भंडारी की कविताएं

विद्या भंडारी की कविताएं 1.अनबोला लड़की जब तब्दील होती है स्त्री में जाने कहाँ खो जाता है समय । निगल लिए जाते हैं जुबान पर आए शब्द । गुम हो जाती हैं परिंदो सी खिलती आवाजें ।। उड़ते पंख बदल जाते है फड़फड़ाते पंखों में । आंखो में अनचाहे ख्वाब लगते है तैरने । ऐसे…

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