काश यूँ भी कभी
काश….. यूँ भी कभी सोचती हूँ काश मैं भी सांता बन पाती । हर जीवन में प्रेम अमृत की गंगा मैं बहाती । रोतें बच्चों के आँखों से सारे आसूँ छीन लाती उनके कोमल अधरों पर गीत बन गुनगुनाती।। जीनव धूप में थके किसान पिता की चिंता मैं मिटाती धरती माँ की आँखों से दर्द…