अरे! जरा संभल कर
अरे! जरा संभल कर अँधेरी गलियों के स्याह- घुप्प अंधकार में, आशंकित- भयभीत ह्रदय ढूँढेगा तुम्हारा हाथ, पकड़ जिसे मैं चुभते पत्थरों पर, चलने में लड़खड़ाने पर, गिरफ्त को और महसूस करूँ कसता हुआ, इन शब्दों के साथ,”अरे! जरा संभल कर।” जब कोरों से झाँकते बूँदों को, तुम संभाल लो अपनी हथेलियों में, फिर बना…