प्यार

प्यार प्रेम प्यार इश्क़ उल्फत शब्द अनेक , मतलब एक, अनुभूति एक, अभिव्यक्ति अनेक। ईश्वर से प्यार, एहसास ए उल्फत खुदा से, देता है सुकून महफ़ूज़ रहने का अहसास। एक माँ का प्यार, दुलार, ममत्व, वात्सल्य से भरे आँखों से कर देता है व्यक्त, शब्दों का नहीं है मोहताज। एक शिशु का प्यार, अस्फुट ,…

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बसंत बहार

बसंत बहार पीली सरसों पीले खेत बसन्ती छटा में रंगा धरती का परिवेश पवन सुगन्धित मन आह्लादित बसंत बहार सुनाये रे… पतंग रंगा, नीला आकाश “वो काटा” से गूंजा जाए अमराई बौरें झूम झूम डोलें मन मयूर बहका जाए रे… सरस्वती पूजन मन्त्रोच्चारण, कानों में शहद सा घुलता जाए हिय हुलसै,मन उडे बचपन की गलियों…

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महकता बसंत

महकता बसंत महक रहा है हलका – हलका , बालों में गूँथा जो गजरा । बहक रहा है छलका – छलका , नयनन में हँसता वो कजरा । बिजुरिया सम दमके बिंदिया आँचल में मुखड़ा रही छिपाय । सजी धजी थिरके है सजनी , आस दीप नैन में चमकाय ! 2 बोल रही है बहकी…

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वट वृक्ष

वट वृक्ष स्नेह बीज विशाल वट वृक्ष सा बोया गया प्रथम मिलन में हृदय की जमीं पर सिंचित स्नेह रस से पल पल लेता खाद नयनों की भाषा से अधरों से दुलार प्रस्फुटित अंकुर नन्ही सी कोंपल ताके टुकुर टुकुर कोमल अहसास हाथों में हुई सिहरन छूने को आतुर नेह का प्रतिबिंब लेता आकार पल…

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वेलेंटाइन डे

वेलेंटाइन डे सफर के दौरान मिले दो शख्स ट्रेन में बैठे उदय…ने सामने सीट पर बैठी लड़की से पूछा…”कहाँ जा रही हो?” गुस्से में लाल चेहरे से तमतमाती लड़की ने जवाब दिया,”पता नहीं “। “टिकेट कहाँ की कटाई हो?” “जहाँ ट्रेन रूकेगी, मेरी किस्मत मुझे जहाँ ले जाए”।लगता है बहुत परेशान हो…? उचित समझो तो…

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बसंत

बसंत पतझड़ से शोभाहीन हुई, प्रकृति के नव शृंगार को। पिछले बरस की नीरसता हटा, आस के फूल पल्लवित करने को। वन उपवन को पुनर्जीवन देने, है एक और बसंत आने को। अंतर्मन में कहीं सुप्त पड़ी, मानवता झकझोरने को। एहसासों को अंकुरित कर, रिश्तों को नई तरंग देने को। काश, इस बार बसंत आए…

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आरज़ू तुम ज़िंदगी की

आरज़ू तुम ज़िंदगी की राज तुमको गर बता दूँँ क्या कहोगे, हाल दिल का मैं सुना दूँ क्या कहोगे। नाज़ है हमदम तुम्हारे उल्फ़त करम पर नर्म पलकों पर बिठा लूँ क्या कहोगे। इश्क़ में हो इम्तिहां क्या सब्र की भी, हर सितम हँस के उठा लूँ क्या कहोगे। चाँद तारों की तमन्ना है कहाँ…

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परदेशी

परदेशी प्यास के मारे राजन का गला सूखा जा रहा था। दूर-दूर तक देखा किसी मनुष्य की छाया तक नजर नहीं आ रही थी और ना ही आसपास कहीं पानी का अता पता था। वह थककर बैठ गया पर बैठने से भी आखिर कब तक काम चलने वाला था। उठकर फिर चलना शुरू किया पर…

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प्रेम बंधन

प्रेम बंधन तुमने कम समझा है मुझे या शायद समझने की जरूरत ही नहीं समझी चलो जाने दो इस नासमझी पर भी मुझे तो प्यार ही आया सदा अब तुम समझो, न समझो ये तुम्हारी समझ और तुम्हें समय भी कहाँ समझने समझाने का पर देख लेना, एक दिन अपने दुपट्टे के कोने से बांध…

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