मेरी माँ

मेरी माँ ऐसी मेरी माँ , ऐसी मेरी माँ नहीं किसी के जैसी मेरी माँ गुणों की खदान, मेरे परिवार की पहचान, जीवन के मूल्यों का पाठ पढ़ाती, शिक्षक होने का सही अर्थ दर्शाती ऐसी मेरी माँ, ऐसी मेरी माँ नहीं किसी के जैसी मेरी माँ।। इसका जीवन संघर्षों की कहानी, हँस हँस कर सुनाती,…

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माँ तुम कितना झूठ बोलती हो

माँ तुम कितना झूठ बोलती हो माँ तुम कितना झूठ बोलती हो , हाँ माँ तुम कितना झूठ बोलती हो बुखार में तपती भी होती हो , पर फिर भी काम करती रहती हो कहाँ है बुखार कहके हमसे , माँ तुम कितना झूठ बोलती हो परदे बंद करके रोशनी ढक के , हमें आराम…

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माँ

माँ सब रिश्तों में सबसे छोटा शब्द पर भावनाएँ असीमित हैं। एक अथाह सा सागर है पर सम्भावनाएँ असीमित हैं । अन्जान दुनिया में जन्म लेकर बहुत डरी हुई थी मैं । जब गोद में लिया तूने महफूज़ , सँभली हुई थी मैं। याद है हर वो पल जब तूने दिया सहारा मुसीबतों के सागर…

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माँ

माँ माँ सहनशक्ति की अनुपम मिसाल है, उसका हर रूप बच्चों हेतु बेमिसाल है। वह सृजनकर्ता है,नित प्राण रक्षक है, बच्चों पर आँच आ जाये तो बनती भक्षक है। वह अन्नपूर्णा है घर की संचालिका है, वह जो न हो घर मे तो घर का नही कोई मालिक है। वह हिम्मत है,वह ताकत है, वह…

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मातृदेवो भव

मातृदेवो भव दुनिया की हर चीज झूठी हो सकती है, हर चीज में खोट हो सकता है पर माँ की ममता में कोई खोट नहीं होता है। यूँ तो यह माना जाता है कि किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है, अपने भाव को व्यक्त, किया जा सकता है और अमूमन ऐसा होता भी…

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बिन पानी सब सून

बिन पानी सब सून (जल संचय: एक परिचर्चा) “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’- पानी रोमांस भी है, रोमांच भी है। पानी के बिना जीवन की कोई कहानी संभव नही है। मंगल ग्रह पर जीवन ढूँढ़ने निकले वैज्ञानिक भी पानी की ही तलाश कर रहे हैं। पानी यानि जीवन की अमूल्य धरोहर और जीवन…

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पर्यावरण

पर्यावरण हे मानव! अब क्यूँ करता है क्रन्दन? पर्यावरण दूषित करने का तू ही तो है कारण, मैं पेड़… क्या कसूर था मेरा? मैने तो दिए फल और सदा ही छाँह। और बच्चों के झूले की खातिर फैला दी अपनी बाँह। पर तुमने? काट कर मेरी शाखाएं अपंग मुझको कर दिया। घोंसलों को तरसे पंछी,…

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आदित्यपुर में बदलता पर्यावरण और हम

आदित्यपुर में बदलता पर्यावरण और हम झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड में आदित्यपुर क्षेत्र आता है l बीसवीं सदी तक आदित्यपुर में गाँव का वजूद मौजूद था l पेड़-पौधे थे, हरियाली थी और साफ-सुथरे जल स्त्रोत मौजूद थेl वर्तमान समय में आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण की अंधी दौड़ में यह सब कुछ धूमिल…

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Fast Forward To Our Ancient Vedic Past: ‘Developing Environmental Conscience’

Fast Forward To Our Ancient Vedic Past:‘Developing Environmental Conscience’ – Past, Present and Future Anyone who has been on this planet even for a few decades has seen devastating natural disasters; eruptions of volcanoes, tsunamis, hurricanes, earthquakes, glacier avalanches, flash floods and forest fires. Every time any of these happens, we watch helplessly as living…

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पर्यावरण और त्योहार

“पर्यावरण और त्योहार “ डरे सहमे से पेड़-पौधे जा पहुंचे मानव के पास दीपावली करीब आ गई तो उनकी थीं शिकायतें खास.. पत्ते, शाखाएं, फूल और कलियाँ सबके सब कुछ घबराए थे नन्ही घास,बेलें, लताएँ, फल मुँह बनाए और गुस्साए थे-.. “हर तरफ दीवाली की खुशियाँ हैं पर हम सब सहमे से खड़े हैं अजीब…

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