नवगीत की सशक्त हस्ताक्षर- शांति सुमन

नवगीत की सशक्त हस्ताक्षर- शांति सुमन जिनका व्यक्तित्व सुगंधित फूलों का बगीचा है, जिनकी शाब्दिक अभिव्यक्ति में शांति का संदेश है, जिनकी कलम किसी अदृश्य को सदृश्य से जोड़ती है, जिनकी भावाभिव्यक्ति में उन्मुक्त कंठ की जादूगरी है , जिनके शब्दों में खो जाता है सुनने वाले का मन ऐसे स्वनाम धन्य है आदरणीय शांति…

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ओ नरभक्षी

ओ नरभक्षी 1. ओ विषाणु, सुन, तुझे रक्त चाहिए आ, आकर मुझे ले चल मैं रावण-सी बन जाती हूँ हर एक साँस मिटने पर ढेरों बदन बन उग जाऊँगी तू अपनी क्षुधा मिटाते रहना पर विनती है जीवन वापस दे उन्हें जिन्हें तू ले गया छीनकर मैं तैयार हूँ आ मुझे ले चल। 2 ओ…

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मैं बुद्ध नहीं होना चाहती

मैं बुद्ध नहीं होना चाहती बुद्ध हो सकती थी मैं—- पर मैंने पति को भगवान मान लिया उसकी चाह, उसकी ख़ुशी को अपना सम्मान मान लिया छोड़ दूँ नवजात को ,रात सुनसान , है अंधेरा तू माँ कहलाने लायक़ नहीं , हृदय पाषाण है तेरा बूढ़े सास ससुर , जिनकी सेवा का मिला था उपदेश…

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मैं “बुद्ध” न बन पाई

मैं “बुद्ध” न बन पाई आसान था तुम्हारे लिए सब जिम्मेदारियों से मुहँ मोड़, बुद्ध हो जाना , क्यूंकि पुरुष थे तुम। एक स्त्री होकर बुद्ध बनते, तो जानती मैं । जिस दिन “मैं” के अन्तर्द्धन्द पर विजय मिल जाएगी निर्वाण की राह भी बेहद सुगम हो जाएगी। सब त्याग कर तुमने उस “मैं” पर…

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तुम लौट आओ

तुम लौट आओ हे बुद्ध तुम लौट आओ क्योंकि तुमने कहा था “ईर्ष्या या घृणा को प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है” पर असंवेदनशील आत्माओं के साथ जी रही मानव जाति भूल चुकी है किसी से भी निःस्वार्थ प्रेम करना लौटकर अब तुम प्रेम क्या है इन्हें फिर से याद दिलाओ हे बुद्ध…

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मेरे अंतस के बुद्ध

मेरे अंतस के बुद्ध बुद्ध ना सिर्फ कपिलवस्तु में थे और ना ही मात्र कुशीनारा में, बल्कि वो तो सदैव से ही साधनारत थे मेरे भी मन की सुप्त गुफाओं में, क्योंकि महसूस करती हूं मैंने भी अक्सर वो असहनीय वेदना जो बूढ़े , बीमार और लाचार को देख कर उमड़ती है, गरीबों की दयनीयता…

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बुद्ध

बुद्ध “बुद्धं शरणं गच्छामि ऽऽऽ, धममं शरणं गच्छामि ऽऽऽ, संघं शरणं गच्छामि ऽऽऽ॥” महलों में पाया जन्म भोगी विलासी ना बने बुद्ध थे वे, सब त्याग वनवासी हो चले। बैठ वर्षों तप किया आत्मज्ञान प्रज्ज्वलित हुआ बोधिवृक्ष की छाया में बुद्ध वचनों से शिष्यों का उद्धार हुआ। उपदेश से उनके प्रभावित हो त्याग हिंसा की…

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आओ बुद्ध हो जाएं

आओ बुद्ध हो जाएं आओ बुद्ध हो जाएं क्षण भर के लिए उतारकर बोझ संबोधनों का,जिम्मेदारियों का,ओढ़ ले पलभर के लिए उन्मुक्तता उस विहंग भाँति जो बेशक़ उड़ान भरता है अपने नीड़ ख़ातिर विस्तृत आसमाँ में…!! माना बुद्ध होना आसान नही हम स्त्रियों को,नही त्याग सकती वे अपने निर्वाण हेतु घर की दहलीज़, एकांतवास नही…

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सिद्धार्थ यशोधरा और बुद्ध

सिद्धार्थ यशोधरा और बुद्ध जाना तय था मेरा … पर जब उसे देखता तो , मन ठहर जाता था।। किस अवलम्बन पर छोड़कर जाता उसे, वो जो मुझ में अपना सारा संसार देखती थी, फिर उसका सहारा आ गया ..उसका ‘पुत्र’ जानता था अब उस में व्यस्त हो जाएगी, जीवित रह पाएगी मेरे बिना भी…

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