गृह दाह

गृह दाह हिंदी साहित्य के एक आधार स्तभं और अभिन्न अंग के रूप में मुंशी प्रेमचंद की ख्याति केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व भर में फैली है। अपने सरल, सहज और स्वाभाविक लेखन से उन्होंने जनमानस के हृदय पर भारत के समाज ,उसके संस्कार , रिवाजों , आदर्शों के साथ – साथ भावपूर्ण कथाओं…

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सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच “अरे !यह तो रजत है।”आश्चर्य से मीनू मैडम बोली।लाइब्रेरी में अखबार पढ़ते हुए उनकी नजर अखबार के प्रथम पृष्ठ पर बड़े अक्षरों में यूपीएससी का रिजल्ट और साथ में हाई रैंक कैंडिडेट का नाम फोटो के साथ छपी थी, वहां टिक गई। “यह देखो अपना रजत उसकी फोटो छपी है। इसी विद्यालय से…

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रंगभूमि

रंगभूमि प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत आदर्शात्मक रुझान से की थी। प्रेमचंद अपने संक्षिप्त रचना काल में कई मार्गों पर चले और कुछ दूर चलकर अगर उन्हें खटका होता था तो राह बदल लेते थे। सुधार वाद ,आदर्शवाद ,गांधीवाद और साम्यवाद यह सभी उनके मार्ग रहे। हिंदी कथा साहित्य को जीवन की यथार्थता और…

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नवसृजन

नवसृजन “प्रकृति जैसे बदला ले रही है” टेलीविजन पे उद्घोषिका बारबार यह वाक्य बोले जा रही थी। यह सुनकर नियति सोच में पड़ गई “क्या माँ अपने संतानों से बदला लेती है?” परंतु परिस्थिति ऐसी तो ज़रूर है कि माँ अपने संतानों को मिल रहे कुकर्मों के फल को सकपकाकर, मूकदर्शक बन देख रही है।…

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मोटेराम जी शास्त्री

मोटेराम जी शास्त्री कौआ चला हँस की चाल, अपनी भी भूल गया, प्रस्तुत पंक्ति ही जैसे आधार है मुंशी प्रेमचंद जी की हास्य कथा पंड़ित मोटेराम जी शास्त्री का। बड़े ही सरल एवं सहज भाव से इस पूरी कहानी को आकार दिया है मुंशी जी ने। बहुत ही कम पात्रों के साथ इस कहानी का…

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फ़रिश्ता

फ़रिश्ता सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई सुशीला काफ़ी कमजोर लग रही थी।परन्तु उसकी आँखों में एक अद्भुत चमक थी। वह अपने नवजात शिशु को जो बग़ल के पालने में लेटी थी , उसे ममता से भरी वात्सल्य से एकटक निहार रही थी।उसका पति हरिया उसके पास ही बैठा था।हरिया दिहाडी मज़दूर था। सुशीला…

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निर्मला

निर्मला मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास निर्मला का प्रकाशन१९२७ में हुआ था । यह उपन्यास मुझे बहुत ही ज़्यादा पसंद है। निर्मला उपन्यास बेमेल विवाह एंव दहेज प्रथा पर आधारित है।यह बेहद मार्मिक कहानी जो दिल को छू जाती है।यह एक प्रकार से मनोवैज्ञानिक उपन्यास है। मानस पटल पर एक छाप छोड़ देती…

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प्रेमचंद -युग प्रवर्तक

प्रेमचंद -युग प्रवर्तक प्रेमचंद उन साहित्यकारों में से हैं जिनकी रचनाओं से भारत के बाहर रहने वाले साहित्यप्रेमी हिंदुस्तान को पहचानते हैं। प्रेमचंद का साहित्य हमें सीखलाता है कि किस तरह क्रांतिकारी लफ्फेबाजी से बच कर सीधे सादे ढंग से जनता की सेवा करने वाला साहित्य रचा जा सकता है। अच्छी कहानी लिखने के लिए…

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नथ

नथ सकीना आफ़ताब से लिपट कर ,हिचकी ले लेकर रोये जा रही थी ,बड़ी-बड़ी पनियाई आंखें कमल पर गिरे ओस की बूंदों सी खूबसूरत लग रही थीं। आफ़ताब किसी छोटे से बच्चे की तरह सकीना को बाहों में भरे कभी उसके माथे को चूमता तो कभी उसकी बिखरी लटों को संवारते हुए उसे समझाने की…

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दूध के दाम

दूध के दाम प्रेमचंद साहित्य की समीक्षा करना थोड़ी जुर्रत की बात है! कहानी विधा के दूसरे उन्मेष काल के चमकते सितारे प्रेमचंद थे।कोई सोच भी नहीं सकता था कि किसी की लेखनी से कहानियों की ऐसी गंगा प्रवाहित होगी जिसमें भारतीय ग्रामीण समाज केंद्र में होगा और बरसों ये कहानियाँ समय की धारा में…

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