उनको ना भूल पाएँगे

उनको ना भूल पाएँगे स्वतंत्रता के 75वें साल को मनाते हुए अचानक उन सबकी याद आना जरूरी है। उनके त्याग एवम्‌ बलिदान को कैसे भूल सकते हैं। उनकी जवानी को उन्होंने कुर्बान कर दिया। कर्नाटक राज्य में एक परम्परा का परिपालन किया जाता है जिसमें उन स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान दिया जाता है। उनको आमंत्रित…

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श्रीकृष्ण सरल : शहीदों का चारण

श्रीकृष्ण सरल : शहीदों का चारण श्रीकृष्ण सरल के नाम से बहुत से पाठक भले ही परिचित न हों, लेकिन स्वाधीनता संग्राम और क्रांतिकारियों में रुचि रखने वाला हर व्यक्ति उनके नाम से भली-भांति परिचित है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, अशफाक़ उल्ला खाँ, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों और शहीदों के अतिरिक्त…

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वीरांगना आजीजन बाई

वीरांगना आजीजन बाई आजादी की चेतना मनुष्य की मौलिक प्रवृत्ति है । स्वतंत्रता की पहली लड़ाईअट्ठारह सौ सत्तावन मे भाग लेने वाले असंख्य लोगो, किसानों, मजदूरों, फौजियों और सेनानायको के साथ ऐसे पेशे से जुड़े लोग, जिन्हें समाज में बहुत सम्मान जनक नहीं माना जाता है ,के भी सम्मिलित होने और आजादी की बलिवेदी पर…

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हमारी लड़ाई

हमारी लड़ाई नर्स आकर जब कुलवंती के कान में यह कहने लगी तो कुलवंती को मूर्छा आ गई| उसका पूरा शरीर कांपने लगा| … “यह क्या हुआ” कहते हुए वह थहरा कर बैठ गई | कुलवंती को दांत लग गया| नर्स अपना पूरा जोर लगा कर कुलवंती को पकड़ कर सामने पड़े ओसारे के पर…

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कजाकी

कजाकी मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सहज सरल किन्तु असाधारण व्यक्तित्व के मालिक थे. वे अपनी हर कहानी को पहले अंग्रेजी में लिखते, उसके बाद उसका अनुवाद हिंदी और उर्दू में करते इस तरह तीनों भाषाओँ पर उनकी बराबर से पकड़ थी. उन्होंने अपने जीवन की साधारणता की और इंगित करते हुए कहा था की “मेरा…

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नहान

नहान नहान…! ट्रैन के डब्बे की उमसभरी घुटन से जानकी बेहाल थी। रह रहकर पसीने और कडवे तेल का मिला जुला भभका आता और नथुनों में समा जाता। यह तो कहो उसे और विशम्भर जी को खिड़की के पास वाली सीट मिल गयी थी। बाहर से आती ताज़ी हवा से कुछ राहत थी। भीतर तो…

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कील

कील बाहर खिली – खिली धूप को देखते ही उसका मन बाहर जाने को मचल उठा ।उसने अपने पैटीओ से बाहर गार्डन में देखा पेड़ भी शांत थे लगता था वह भी चमकती धूप का आनन्द ले रहे थे । धूप से घास पर पड़ी ओस भी यूँ चमक थी मानो प्रकृति ने चमकते हीरों…

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तेंतर

तेंतर महान साहित्यकार, समाजसेवी, युगदृष्टा, युगपुरुष प्रेमचंद जी का जन्म ३१ जुलाई सन १८८० में बनारस के पास मगही गाँव में हुआ था. बचपन का नाम धनपत राय था. घोर गरीबी, सौतेली माँ के दुर्व्यवहार और  पिता की अकाल मृत्यु ने उन्हें तोड़ दिया. बमुश्किल मैट्रिक की परीक्षा दे सके. प्रतिकूल परिस्थियां भी उनके साहित्य…

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 चूड़ी वाले हाथ   

 चूड़ी वाले हाथ      रायदा….. 25 या 30 खपड़ैली झोपड़पट्टी वाला, शहरी चमक दमक से दूर, अशिक्षा और अज्ञानता की बेडि़यों में जकड़ा हुआ एक बेहद छोटा सा गाँव……. सरकारी कागजों में इस गाँव के हर घर में बिजली आ चुकी है, लेकिन सरपंच जी का घर छोड़, सभी घरों में आज भी लालटेन ही…

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