कजाकी

कजाकी मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सहज सरल किन्तु असाधारण व्यक्तित्व के मालिक थे. वे अपनी हर कहानी को पहले अंग्रेजी में लिखते, उसके बाद उसका अनुवाद हिंदी और उर्दू में करते इस तरह तीनों भाषाओँ पर उनकी बराबर से पकड़ थी. उन्होंने अपने जीवन की साधारणता की और इंगित करते हुए कहा था की “मेरा…

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नहान

नहान नहान…! ट्रैन के डब्बे की उमसभरी घुटन से जानकी बेहाल थी। रह रहकर पसीने और कडवे तेल का मिला जुला भभका आता और नथुनों में समा जाता। यह तो कहो उसे और विशम्भर जी को खिड़की के पास वाली सीट मिल गयी थी। बाहर से आती ताज़ी हवा से कुछ राहत थी। भीतर तो…

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कील

कील बाहर खिली – खिली धूप को देखते ही उसका मन बाहर जाने को मचल उठा ।उसने अपने पैटीओ से बाहर गार्डन में देखा पेड़ भी शांत थे लगता था वह भी चमकती धूप का आनन्द ले रहे थे । धूप से घास पर पड़ी ओस भी यूँ चमक थी मानो प्रकृति ने चमकते हीरों…

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तेंतर

तेंतर महान साहित्यकार, समाजसेवी, युगदृष्टा, युगपुरुष प्रेमचंद जी का जन्म ३१ जुलाई सन १८८० में बनारस के पास मगही गाँव में हुआ था. बचपन का नाम धनपत राय था. घोर गरीबी, सौतेली माँ के दुर्व्यवहार और  पिता की अकाल मृत्यु ने उन्हें तोड़ दिया. बमुश्किल मैट्रिक की परीक्षा दे सके. प्रतिकूल परिस्थियां भी उनके साहित्य…

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 चूड़ी वाले हाथ   

 चूड़ी वाले हाथ      रायदा….. 25 या 30 खपड़ैली झोपड़पट्टी वाला, शहरी चमक दमक से दूर, अशिक्षा और अज्ञानता की बेडि़यों में जकड़ा हुआ एक बेहद छोटा सा गाँव……. सरकारी कागजों में इस गाँव के हर घर में बिजली आ चुकी है, लेकिन सरपंच जी का घर छोड़, सभी घरों में आज भी लालटेन ही…

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नयी दिशा

नयी दिशा धूप-गुगुल के सुगंध से सुवासित और स्त्रियों के शुभ मंगल गान से गुंजायमान था हरिपुर गांव का वातावरण। लाल-पीली साड़ियों में स्त्रियाँ, धोती-कुर्ते में पुरुष और रंग-बिरंगे परिधानों में सजे बच्चे-बच्चियाँ उत्सव सा माहौल बना रहे थे,उनके परिधान सुख-समृद्धि की गवाही दे रहे थे।सब के चेहरे से संतुष्टि और खुशी झलक रही थी।अवसर…

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कलम के सिपाही

कलम के सिपाही सादर नमन महान उपन्यासकार, कथाकार धनपत राय को। कालजयी कथाकार मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं का संसार इतना बृहत् है कि उस में डुबकी लगाकर उनकी किसी रचना विशेष को चुनना अनंत गहरे सागर में मोती चुनने के समान है। ‘कलम के जादूगर’की जादूगरी में से यदि किसी एक कृति को चुनने को…

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संस्कार

संस्कार वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीर पराई जाने रे.. नरसी मेहता का भजन नेपथ्य में कहीं चल रहा था । ” पर दु:खे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे..” सरला बेन भी साथ में गुनगुनाने लगीं । मिहिका सामने बैठी अपनी वृद्धा विधवा माँ के चेहरे की रुहानियत और मासूमियत को…

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सूरदास

सूरदास हिंदी – उर्दू साहित्य के विराट नभ पर दिवाकर सा दैदीप्यमान एक नाम – मुंशी प्रेमचंद । प्रेमचंद एक ऐसे कथाकार थे जिन्होंने साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बनाते हुए , अपनी कहानियों और उपन्यासों में किसानों, दलितों, श्रमिकों की दयनीय स्थिति का और स्त्री शोषण का मार्मिक चित्रण किया । उनकी…

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