वरदान

वरदान निर्वाक है वाचक, लेखनी डरी हुई है, अंधेरा रात का दिन में भरी हुई है बहुतेरे प्रश्न उमड़ता, उत्तर मांगता हूँ, जड़ता विनाश को लेखनी दौड़ाना चाहता हूँ। गले में फंसी आवाजें जुबान दब रही है, आपसी भाई चारे की लाशें निकल रही हैं खुला आसमान सांस चाहता हूँ, लेखनी में जोर और बन्दूके…

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हिंदी का आधुनिक इतिहास

हिंदी का आधुनिक इतिहास हे मातृरुपेण हिंदी!! हमारी मातृभाषा, हम सब की ज्ञान की दाता हो, जब से हमने होश संभाला, तूने ही ज्ञान के सागर से, संस्कारों का दीप जलाया, भाषा से परिचय कराया, आन ,बान और शान हमारी, देश का अभिमान जगाती, हर गुरुजनों की शान हो तुम, उनकी कर्मभूमि हो तुम, जिसने…

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विश्व हिन्दी दिवस

विश्व हिन्दी दिवस हिन्दी माँ का दूध है , और हमारा पूत । सदा हमारे साथ है , मन भावों का दूत ।। निज भाषा अभिमान है ‌, यह भगवन वरदान । अंतस से है फूटता , नहीं भाव व्यवधान ।। मात तात सम पोसता , है वटवृक्ष समान । निज निजता का भाव दे…

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रश्मिरथी: राष्ट्रकवि की रचनाओं में मेरी अति प्रिय रचना

रश्मिरथी: राष्ट्रकवि की रचनाओं में मेरी अति प्रिय रचना युगधर्मा, शोषण के विरुद्ध विद्रोह को अपनी कलम की वाणी बनाने वाले , जीवन रस को ओज और आशावादिता से पूरित करने वाले, सौंदर्य और प्रेम के चित्र को भी अपने कलम की कूची से रंगने वाले रामधारी सिंह ‘दिनकर’  हिन्दी के एक प्रमुख राष्ट्रवादी एवं प्रगतिवादी…

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शब्द सुमन: राष्ट्रकवि के चरणों में

शब्द सुमन: राष्ट्रकवि के चरणों में “मुझे क्या गर्व हो ,अपनी विभा का, चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं। पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी, समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं।” कौन है ऐसा स्वपरिचय देता हुआ? अरे वह तो ,सरस्वती का वरद पुत्र, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ नाम जिसका हुआ। ‘राम’ को धारण करने…

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हिंदी दिवस के जन्मदाता

हिंदी दिवस के जन्मदाता गत वर्ष गृहस्वामिनी में मेरा एक संस्मरण प्रकाशित हुआ स्वर्गीय व्यौहार राजेंद्र सिंह से जुड़े , उनके साथ कुछ पल रेलवे प्लेटफॉर्म पर एक छोटी सी मुलाकात के रूप में । आज उनके ही पौत्र डॉ व्यौहार अनुपम सिन्हा , जो मेरी छोटी बुआ का मंझला बेटा काका जी( श्री राजेंद्र…

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सोंधी मिट्टी का बिहार

सोंधी मिट्टी का बिहार दिशा – दिशा में लोकरंग का तार-तार है, महका-महका सोंधी मिट्टी का बिहार है ………………………………………… कहीं गूंजते आल्हा ऊदल के अफसाने, कजरी, झूमर और फगुआ के मस्त तराने, चौपालों में चैता घाटों की बहार है। उपर्युक्त बिहार गीत की रचयिता डाॉ शांति जैन ने अपनी रचना के माध्यम से एक आम…

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हिंदी चालीसा

हिंदी चालीसा श्रेष्ठ, सुगढ़, सुखदायिनी, हिंदी सुहृद, सुबोध, सरल, सबल, सुष्मित, सहज, हिंदी भाषा बोध। नित-प्रति के व्यवहार में, जो हिंदी अपनाय, ’सरन’ सुसत्साहित्य का सो जन आनंद पाय। जय माँ हिंदी, रुचिर भारती, सुकृत कृतीत्व सुपथ संवारती। १. रचनाकारों के मन भाती, सत्साहित्य की ज्योति जगाती। २. जगमग ज्योतित करे हृदय को, हुलसित-सुरभित करे…

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समय

समय आदिकाल से भविष्य का चक्र। हर होने से, न होने का नियम, जो है उसके ख़त्म होने का संयम । अदि, अंत, अनंत। देव, मानव,पाताल लोक का विभाजन, सागर मंथन भेद से सर्व लोक समीकरण ।। युग निर्माण, समाज परिवर्तन । सत्य,त्रेता, द्वापर से कलि का बदलाव, रामराज्य में सीताहरण, कलि में सती का…

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बर्फीले  मौसम  में  हृदय  की  ऊष्णता

बर्फीले  मौसम  में  हृदय  की  ऊष्णता बात सन १९८६  की है। जनवरी का महीना था।अब तो बहुत वर्षों से इंग्लैंड में बर्फबारी हुई ही नहीं है। हफ्ते या दो हफ्ते हलकी फुलकी बर्फ गिरी भी तो दो चार दिन में गायब हो गयी।मौसम बदल गए हैं। नदियों के स्रोत पिघलने लगे हैं।इस बार इंग्लैंड में…

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