सब जमींदोज है
सब जमींदोज है अब झील के शिकारे उदास हैं पानी का सैलाब तटबंधों को तोड़ लौट चुका सतह पर हर तरफ कीच पसरा हुआ है पर हालात सब तरफ बेतरतीब टूटने की निशानियां तटबंदी देह पर बेशुमार अनगिनत कब घाव भरें कौन जाने व्यवस्था चरमराई सबके सब्र बांध टूट चुके तुम एक बांध की व्यथा…