सिवाय आकाश के
सिवाय आकाश के तुम मेरे पर कुतर देना चाहते हो चाहते हो मुझे मेरा आकाश न मिले तुम चाहते हो कि मैं तेरे पिंजरे में बंद होकर रहूँ तेरे सिखाए बोली-बात न भूलूँ मत बिगड़े तुम्हारी कोई व्यवस्था बहलता रहे तुम्हारा मन भी होती रहे तुम्हारी सेवा बराबर मगर अब मुझे भी नहीं दिखाई दे…