सिवाय आकाश के

सिवाय आकाश के तुम मेरे पर कुतर देना चाहते हो चाहते हो मुझे मेरा आकाश न मिले तुम चाहते हो कि मैं तेरे पिंजरे में बंद होकर रहूँ तेरे सिखाए बोली-बात न भूलूँ मत बिगड़े तुम्हारी कोई व्यवस्था बहलता रहे तुम्हारा मन भी होती रहे तुम्हारी सेवा बराबर मगर अब मुझे भी नहीं दिखाई दे…

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अब न सहूँगी

अब न सहूँगी मारपीट अब बहुत हो गई ओछी हरकत अब न सहूँगी खौफ़ दिया क्रूर कर्मों से भँडास निकाली जी भर कर रोई मैं चुपचाप अकेले करवट बदली रात-रात भर पर न बहाऊंगी सावन अब बिजली बन कर कड़कूँगी मैं वार किया तो चुप न रहूँगी मारपीट अब बहुत हो गई ओछी हरकत अब…

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आदमी आदमखोर हो गया।

आदमी आदमखोर हो गया। आदमी आदमी न रहा, आदमखोर हो गया। लग गई उसे खून की लत ये जहां में शोर हो गया। सब भूला ताई दादी, सब भूला बहना अम्मा। मर गई इंसानियत, हो गया आज निकम्मा। गली मुहल्ला चलना मुश्किल हुआ, शहर देहात का एक ही हाल हुआ। बोल उठा जिया ये क्या…

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नया सूरज

नया सूरज चारों तरफ है फैला अनजानी आशंकाओं का घना कोहरा रुक गया जीवन बंदिशों के घेरे में आओ गढ़ें एक नया सूरज जिसकी रश्मियों के तेज में हो जाए भस्म सभी डर न रहे कोई बेटी अजन्मी रात के अंधेरे में कुचलने से बच जाए सुनहरी धूप न मसल पाए कोई उभरती कली को…

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कितनी और कैसी: आजादी ?

कितनी और कैसी:: आजादी ? आधी आबादी की आजादी कैसी और कितनी? इस पर हमेशा बात होती रहती है। कानूनी और संवैधानिक फ्रेम में सब कुछ बहुत आदर्श लगता है। समानता, स्वतंत्रता, और न्याय पाने के अधिकार सभी के लिए हैं। न्यायपालिका से संरक्षित भी हैं।लेकिन क्या स्त्री क्या पुरुष, दोनों के लिए ये किताबी…

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कलियों को सुरभित होने दो

कलियों को सुरभित होने दो बीत गए पचहत्तर वर्ष देश को आजाद हुए, आ गया आजादी का अमृत महोत्सव काल। पर क्या सच में आजाद हुई आधी आबादी, क्या उसका भी चल रहा है स्वर्णिम काल? किया विचार किसी ने इस पर भी कभी? क्या सच में उन्नत हो रहीं नारी सभी अभी? आए दिन…

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लड़कियों की

लड़कियों की इन हाशियों से ऐसी निस्बत है लड़कियों की सूखे गले से गाना, आदत है लड़कियों की   तुम भेड़ियों से बद्तर, पर लूट न सकोगे किसने कहा बदन से, इज़्ज़त है लड़कियों की   पज़ तालिबानी फ़तवे, ज़द रूहें इंक़लाबी ज़ुल्मात में चमकना, ताक़त है लड़कियों की   इक ख़ुशगवार आँगन, दो फूल…

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मेरी भूलों को कर दो माफ

मेरी भूलों को कर दो माफ तुम्हारे प्रेम में आकंठ डूबी थी मैं , कभी किसी बात पर रुठी न थी मैं, तुमने मेरे पंख काट कर सहेज दिये थे , बिना पंखों के भी खुश थी मैं तुमने कहा था कि पहले तुम गगन छू लोगे , अपने सपने पूरे कर लोगे , मैंने…

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कड़ियाँ

कड़ियाँ सात वर्षों के बाद इस जगह से मेरी विदाई हो रही थी। हिन्‍दी टीचर के रूप में यह मेरी पहली पोस्टिंग थी। जिन बच्‍चों को मैंने नौ-दस साल में देखा था, अब वो बड़ी हो गई थीं। आभा और करूणा ने विदाई पर कुछ कहा नहीं, एक लिफाफा पकड़ा दिया, पहले की यादें ताजा…

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