ज़िंदगी के रहस्य समेटे है “तिलिस्म”

ज़िंदगी के रहस्य समेटे है “तिलिस्म” साहित्यकार की सफलता इस बात में होती है कि वह अपने प्लॉट का चयन कितने विवेकपूर्ण ढंग से करता है, अपने कथा परिवेश का कितना सजीव वर्णन करता है, अपने पात्रों को कितना जीवंत बनाता है, और अपने उद्देश्य को अभिव्यक्त करने में कितना प्रभावी होता है। अगर हम…

Read More

विरोधाभास की विलक्षणता: दिव्या माथुर

विरोधाभास की विलक्षणता: दिव्या माथुर जब पहली बार वातायन से जुड़ने वाली थी तो दिव्या जी से बात हुई, शब्दों में खरापन और स्नेह दोनों एक साथ थे, और ऐसा बहुत कम होता है।वैसे दिव्या जी के कई गुण हैं जो परस्पर विरोधाभास लिए प्रतीत होते हैं पर बहुत ही सरलता से उनमें समाहित हैं,चाहे…

Read More

ज़हरमोहरा: उर्दू में अनुवादित दिव्या माथुर का कहानी संग्रह

ज़हरमोहरा: उर्दू में अनुवादित दिव्या माथुर का कहानी संग्रह दिव्या माथुर से तआरुफ़ गुज़िश्ता मई, 2015 में डॉ ज़ियाउद्दीन शकेब के माध्यम से हुआ। किसी हिन्दी कहानीकार को पढ़ने का यह पहला मौक़ा था; मुझे ये फ़ैसला करने में वक़्त नहीं लगा कि ये कहानियाँ उर्दू दुनिया तक भी पहुँचनी चाहिएँ। मुझे दिव्या जी की…

Read More

झूठ झूठ और झूठ-झूठ के माध्यम से सच की तलाश

झूठ झूठ और झूठ-झूठ के माध्यम से सच की तलाश ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि कोई कवि या कवयित्री एक ही विषय को लेकर एक पूरा संग्रह ही रच डाले। दिव्या माथुर इस माने में एक अपवाद मानी जा सकती हैं, जिन्होंने ‘ख़याल तेरा’, ‘रेत का लिखा’, ‘11 सितम्बर – सपनों की…

Read More

दिव्या माथुर की रचनाओं पर प्रतिष्ठित लेखकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाएं

दिव्या माथुर की रचनाओं पर प्रतिष्ठित लेखकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाएं दिव्या की कहानियों में एक तरफ़ औरत की परजीविता और यथस्थिति का यथार्थ है तो दूसरी तरफ़ संस्कार जनित संवेदनाएं। उनके लेखन में कहीं भी कथ्य या भाषा का आडम्बर नहीं है। अपने देश से दूर रहते हुए भी उनके पास भारतीय यथार्थ और संस्कार…

Read More

यथा नाम तथा गुण

यथा नाम तथा गुण दिव्या जी से मेरा परिचय भले ही ऑनलाइन मोड का हो पर वे बहुत आत्मीय हैं। उनके अनेक अनेक रूप हैं, वे एक साथ एकोअहम बहुस्याम हैं। कवि, रचनाकार, संपादक, आयोजक, अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, कम शब्दों मे गहरी और गंभीर बात कह जाने वाली, हीरे की माफ़िक हैं, रहिमन हीरा…

Read More

पंगा: जीवन का व्यर्थता बोध

पंगा: जीवन का व्यर्थता बोध ‘यह हीनता, अपर्याप्तता और असुरक्षा की भावनाएँ हैं जो व्यक्ति के अस्तित्व के लक्ष्य को निर्धारित करती हैं।’ – एल्फ़्रेड एडलर ‘नया ज्ञानोदय’ के जुलाई २००८ में प्रकाशित दिव्या माथुर की कहानी ‘पंगा’ पहले भी पढ़ी थी, अच्छी लगी थी। दोबारा पढ़ते हुए उसके कुछ अनछूए पहलुओं पर ध्यान गया।…

Read More

दिव्या माथुर: मेमेन्तो मोरी

दिव्या माथुर: मेमेन्तो मोरी ब्रिटेन में रहने वाली प्रवासी भारतीय हिन्दी लेखक सुश्री दिव्या माथुर से हमारी पहली मुलाक़ात सितम्बर 1999 में हुई थी, जब मैं मास्को विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफ़ेसर बोरिस जाखारयिन के साथ छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने के लिए लन्दन गई थी। दिव्या जी ने बड़ी हार्दिकता के साथ…

Read More