“गृहस्वामिनी को वार्षिकोत्सव की शुभकामना”

“गृहस्वामिनी को वार्षिकोत्सव की शुभकामना”   वार्षिकोत्सव के संग आज़ हर घर पहुंची गृहस्वामिनी, साहित्य कर्म मानवता धर्म को समर्पित हमारी यह दैनंदिनी। महिलाओं की यह पत्रिका महिलाओं की यह सहगामिनी, महिलाओं द्वारा हीं है संचालित साहित्य समृद्धशालिनी।   सफर संघर्ष भरा शुरू हुआ था छ: बरस कहीं पहले, एक-एक कलम के सिपाही जोड़ काम…

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सम्पादकीय

सम्पादकीय सर्वप्रथम गृहस्वामिनी के सुधी पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं । ‘गतवर्ष के तजुर्बात हों ,उत्कर्ष में विश्वास हो , गतवर्ष तो एक अंत है,नव वर्ष शुभ शुरुआत हो।’ यह गृहस्वामिनी का आज़ादी विशेषांक है अतः आज़ादी पर ज्ञानवर्धक आलेख एवं सुन्दर कविताओं से यह अंक सुसज्जित है ,और हो भी क्यों न…

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शुभकामना संदेश

शुभकामना संदेश  जनवरी २०२०, आज से तीन वर्ष पूर्व गृहस्वामिनी परिवार ने अर्पणा संत जी के नेतृत्व में एक छोटा सा बीज डाला था। भयंकर कोविद महामारी अपनी चरम सीमा पर थी | पूरे विश्व में तबाही छाई थी | भारत भी अछूता न था | हर परिवार से कोई न कोई प्रियजन इस से…

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ज़िंदगी के रहस्य समेटे है “तिलिस्म”

ज़िंदगी के रहस्य समेटे है “तिलिस्म” साहित्यकार की सफलता इस बात में होती है कि वह अपने प्लॉट का चयन कितने विवेकपूर्ण ढंग से करता है, अपने कथा परिवेश का कितना सजीव वर्णन करता है, अपने पात्रों को कितना जीवंत बनाता है, और अपने उद्देश्य को अभिव्यक्त करने में कितना प्रभावी होता है। अगर हम…

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विरोधाभास की विलक्षणता: दिव्या माथुर

विरोधाभास की विलक्षणता: दिव्या माथुर जब पहली बार वातायन से जुड़ने वाली थी तो दिव्या जी से बात हुई, शब्दों में खरापन और स्नेह दोनों एक साथ थे, और ऐसा बहुत कम होता है।वैसे दिव्या जी के कई गुण हैं जो परस्पर विरोधाभास लिए प्रतीत होते हैं पर बहुत ही सरलता से उनमें समाहित हैं,चाहे…

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ज़हरमोहरा: उर्दू में अनुवादित दिव्या माथुर का कहानी संग्रह

ज़हरमोहरा: उर्दू में अनुवादित दिव्या माथुर का कहानी संग्रह दिव्या माथुर से तआरुफ़ गुज़िश्ता मई, 2015 में डॉ ज़ियाउद्दीन शकेब के माध्यम से हुआ। किसी हिन्दी कहानीकार को पढ़ने का यह पहला मौक़ा था; मुझे ये फ़ैसला करने में वक़्त नहीं लगा कि ये कहानियाँ उर्दू दुनिया तक भी पहुँचनी चाहिएँ। मुझे दिव्या जी की…

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झूठ झूठ और झूठ-झूठ के माध्यम से सच की तलाश

झूठ झूठ और झूठ-झूठ के माध्यम से सच की तलाश ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि कोई कवि या कवयित्री एक ही विषय को लेकर एक पूरा संग्रह ही रच डाले। दिव्या माथुर इस माने में एक अपवाद मानी जा सकती हैं, जिन्होंने ‘ख़याल तेरा’, ‘रेत का लिखा’, ‘11 सितम्बर – सपनों की…

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