आ लौट के आ…

आ लौट के आ… उफ्फ बारह बज गये। एक लम्बी सांस ले उसने लैपटॉप शट ऑफ किया और दोनो हाथ ऊपर कर उंगलियां एक –दूसरे में फंसा चटका दीं। चटर- चटर की आवाज के साथ ही एक पुरानी याद कहीं भीतर कुनमुनाई और दादी का सफेद बालों से घिरा ममतालू चेहरा हवा में उभर आया।होती…

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उम्मीद की टिमटिमाती लौ

उम्मीद की टिमटिमाती लौ हुक्का चिलम बनवा लो , गले का हार बनवा लो , हाथ की घडी़ बनवा लो…… चिल्लाते हुए दढ़ियल बाबा हर उस जगह ज़रा दर और ठहर जातें , जहाँ बच्चे खड़े होते थें । ” घर के बड़े चिढ़ कर कहतें … … ये लो जी , आज फिर आ…

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आरोहण

आरोहण उस दिन पता नहीं मैं किस कार्य से कार्यालय की ओर गई थी । ऐसे अमूमन मैं कक्षाओं में ही उलझी रहती हूँ और कार्यालय की ओर जाना संभवतः तभी हो पता है – जब तक मुझे कोई आवश्यक कार्य न आन पड़े । बहुत याद करने पर भी उस दिन कार्यालय की ओर…

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सब माया है

सब माया है वह अकेला रह गया था। सोने के पिंजरे और सोने की कुर्सी पर बैठा ‘अकेला आदमी’। वह हमेशा से अकेला नहीं था। अपने भरे पूरे परिवार में पांच बहनों के बीच इकलौता भाई सबका लाड़ला था। पिता थोड़े कड़क स्वभाव के थे, सो बच्चों और पिता के बीच हमेशा एक कम्युनिकेशन गैप…

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योगेश

योगेश उसकी अक्सर याद आती रहती है। बल्कि शायद हमेशा ही वह मेरे जेहन में रहता है। मेरा चपरासी था। यूँ कहिये कि मेरा अभी-अभी चपरासी हुआ था। हुआ यूँ कि मैंने अपने स्थायी चपरासी को कई बार अचानक मेरे ऑफिस के सोफे पर लेटे देख लिया था और एक बार तो मेरे ही सोफे…

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नज़रिया

नज़रिया   कोरोना काल में समय कैसे गुजर जाता है पता ही नही चलता, एक दिन नीलू ने सोचा कि क्यों ना आज सुबह सुबह माया दीदी से बात की जाये ,फोन उठाया –दीदी कैसे हो,जीजाजी कैसे है,आपके शहर में कोरोना की स्थिति कैसी है? माया –अरे साँस तो लेने दो,कितने सवाल करोगी?? हम सब लोग…

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तिरस्कार

तिरस्कार टैक्सी जा कर बड़े से गेट के सामने रूक गई। दरवाजा खोल कर आशा बाहर निकली उस के पीछे दोनों छोटे बच्चें। आशा ने टैक्सी का किराया चुकाया, बैग कंधे पर डाला और दोनों बच्चों का हाथ पकड़ कर गेट के सामने आ खड़ी हुई। दरबान ने देखा तो सलाम किया फिर सिर झुका…

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अपराधी कौन?

अपराधी कौन?   “ले जाओ इसे। तुरंत उठाओ।” डॉ. साहब ने आदेश दिया। सिस्टर ने सहम कर पूछा “रामा को बुला लाऊँ ? बातचीत सुनाई तो दे रही थी पर समझ नही सकी शीला। वह अर्ध बेहोशी में थी।एक गूँज सी आवाज़ ही सुनाई पड़ी। ” हाँ ले तो वहीं जायेगा,पर,अभी नहीं। अभी नर्सरी में…

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कासे कहूं अपने जिया की

कासे कहूं अपने जिया की   हल्की हल्की सावन की रिमझिम फुहारें पड़ रही थी, मौसम बहुत खुशगवार था । नीता का मन चाय पीने का हो रहा था पर अपने लिये चाय बनाने में आलस आ रहा था इसलिये बैठकर अखबार पढ़ने लगी, हालांकि अखबार में कुछ पढ़ने के लिये होता ही कहाँ है…

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गीली हुई क़िताब

गीली हुई क़िताब आज सारे घर में सुबह से ही किसी उत्सव सा माहौल था। आखिर घर भर के आँखों के तारे गोलू बाबू अरे.. नहीं भाई माफ़ करना … श्रीमान चिन्मय नीलकंठ जोशी आज पहली बार विद्यालय जो जा रहे है। वैसे उन्हें घर में ही दादी ने कई श्लोक पथ करवा दिए थे।…

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