BASANT

BASANT (Spring)   Flowers during winter, Hide in earth’s cosy bed, Eager in summer for rebirth, Lifting their beautiful heads. Leaves and flowers, Just wait for the dark, wintry nights to go, And long bright sunny days to grow. Soon you see, in the months of, March April and May, Hazy mist and fog driven…

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लौ बन कर मैं जलती हूँ 

लौ बन कर मैं जलती हूँ      दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ दो हज़ार बाईस बस था जैसा भी था जैसे तैसे बीत गया कुछ अच्छा होने की आशा में ना जाने क्या क्या रीत गया पाँव पखारूँ अश्रू के गंगाजल से ,लो अब मैं चलती हूँ दीपक…

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फ़ातिमा शेख़

    फ़ातिमा शेख़ स्त्रियों की शिक्षा, उनके अधिकार एवं दलितों के पुनरुत्थान के लिए कार्य करनेवाली एक मज़बूत कड़ी के रूप में दक्षिण भारत की प्रथम मुस्लिम महिला राष्ट्रमाता फ़ातिमा शेख़ को शायद आज इतिहास भुला चुका है, लेकिन दलितों-पिछड़ों और गरीबों के दिलों में वो युगों-युगों तक जीवित रहेंगी। फ़ातिमा शेख़ सावित्रीबाई फुले…

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वे

वे   दो विपरीत  बहते छोरों को अचानक गठबंधन में बाँध दिया गया ऐसे, जैसे कोई हादसा अचानक हो जाए न प्यार था न परिचय बस दो अजनबी… न वो सूरज था न वो किरन न वो दिया था न वो बाती। न वो चाँद था और न वो चाँदनी एकदम विपरीत थे वे दोनों……

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विवेकानंद एक विचारक 

विवेकानंद एक विचारक  धर्म की गहराई को जानने के बाद उन्होंने विश्व में अध्यात्मिक क्रांति छेड़ दी। पश्चात जगत में सनातन धर्म वेदों तथा ज्ञान शास्त्र से विश्व को परिचित कराया। वर्षो से सनातन हिन्दू धर्म पर अनेकानेक आघात किये गए पर उसे समाप्त नहीं किया जा सका।क्योकि सनातन धर्म जीवन है । उन्होंने बताया…

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आया नया साल है/कैसे मैं कहूं आजाद वतन

        आया नया साल है आओ जरा झूमें गाएं आया नया साल है। खो गया है नेह राग ये बड़ा सवाल है, प्रीत जरा बांटिए जनता बेहाल है। द्वेष जरा छांटिए समाज का ये काल है, आओ जरा झुमें गाएं आया नया साल है।   कविता ही कामिनी को विषय बनाइए, दामिनी…

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मकर संक्रांति

मकर संक्रांति मकर राशि में कर प्रवेश रवि, ऊर्जा नवल धरे | जीवन के पावन आँगन रवि, मंगल ज्योति भरे | उत्तरायण जाए दिवाकर, ऋतु नव बदल रही | शिशिर गिराता पीत वसन है, मधु ऋतु मचल रही | मन में मंगल भाव लिए जन, पुण्य प्रताप वरें | जीवन के पावन आँगन रवि, मंगल…

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जाड़े में जनतंत्र

जाड़े में जनतंत्र   गठरी बांधे धूप की, जाड़े में जनतंत्र । शीतलहर में फूँकता,कुहरा जन में मंत्र।।   रैन निहारे बस्तियाँ, बंद घरों में योग। हाड़ कँपाती ठंड में, धूप कुतरते लोग।।   धुआँ रात रचता रहा,स्याही-स्याही रूप। शीत लहर में बैठकर,कुहरा बांचे धूप।।   शैल शिखर को चूम कर,लेकर हिम रैवार। मधुर मदिर…

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राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी

राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी शर्मसार हैं हम बापू , अंधे ,बहरे और गूँगे बन कर ही रह गए , क्याें न पड़ा हमारे कानों में किसान, मज़दूर और दलित का क्रंदन, क्याें न हम देख पाए निम्न वर्ग का शोषण, क्याें न हमने आवाज़ उठाई अत्याचार के ख़िलाफ़, क्याें हम सुषुप्ति में डूबे रहे बेख़बर,…

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