मानवता का शव
मानवता का शव इतिहास के खडंहरों,में क्षतविक्षत पडा है मानवता का शव… सदियों,का सन्नाटा.. और ..दिलों दिमाग पर गूंजतीं …भयानक चीखें… सरसराहट …दरकते रिश्ते क्रदंन कराहती रुहों का.. पुराने दिनो की आखों से बहती धार में… बताऔ..भविष्य की आँख में काजल सजाऊं कैसे??? दूर बहुत दूर ले आती कोकिला की आवाज़ किन्तू पास ..बहुत पास…..