सौम चन्द्रिका
सौम चन्द्रिका गरल गरल हुआ वदन सुधाविहीन सिंधु मन। जल रहा नयन नयन धुआं धुआं धरा गगन।। स्वार्थ छद्म से यहाँ चिनी गई इमारतें मूक प्राणियों के कत्ल से सजी इबादतें नाम पर विकास के हरा भरा भी कट रहा वक्ष भूमि का लहूलुहान जैसे फट रहा कर्णभेदती बिगाड़ती रही ध्वनि: पवन मूल से उखड़…