मानवता की ओर

मानवता की ओर जमशेदपुर की सबसे चर्चित चेहरों में से एक हैं बेहद ही खूबसूरत,हंसमुख मिलनसार,कर्मठ,संवेदनशील एवं दयालु इतनी की दिन रात समाज के उत्थान एवं कल्याण के लिए के पूर्ण रूप से समर्पित रहतीं हैं। आज हम मानवता की ओर में जानीमानी समाजसेविका, सांस्कृतिक कार्यकर्ता एवं साहित्यकार पूरबी घोष से बातचीत करेंगे जिससे हम…

Read More

शिक्षा बनाम साक्षरता

शिक्षा बनाम साक्षरता ‘शिक्षा ‘का संबंध ज्ञान से है और इसका क्षेत्र व्यापक है ।शिक्षा से तात्पर्य जीवन के लिए ज़रूरी सभी प्रकार के ज्ञान- अक्षर ज्ञान, व्यवहारिक, सामाजिक, नैतिक ,सांस्कारिक,चारित्रिक ज्ञान आदि से है। परंतु वर्तमान में शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित हो गया है ।शिक्षा का अर्थ साक्षरता समझा जाने लगा है…

Read More

जब टूट गया था बांध 

जब टूट गया था बांध  कहीं दूर आंखों की पुतलियों के क्षितिज के पार जब टूट गया था बांध उस रोज…. नमक… समुद्र हो गया था.. मन डूबा था अथाह जलराशि की सीमाहीन धैर्य तोड़ती सीमाएं एक सीप के एहसासों के कवच में जा समायी थी और जन्म हो गया था एक स्वेत बिंदु मोती…

Read More

वसीयत

वसीयत दिन – रात, सोते- जाते ,उठते- बैठते, एक ही ख्याल, एक ही बात , एक ही विचार, अपनी लाडली के नाम वसीयत में क्या करूँ ? क्या दूँ उसे जो उसकी मुस्कान सदाबहार बनी रहे ? क्या करूँ उसके नाम कि उसकी आँखों में बिजलियाँ चमकती रहें, क्या लिख दूँ जिसे पाकर वह सनातन…

Read More

रावण नश्वर नहीं रहा

रावण नश्वर नहीं रहा हाँ,नहीं है नश्वर रावण नहीं वह,मात्र प्रतीक है पुतलों में जिन्हें हम जलाते हैं। रावण! यत्र-तत्र-सर्वत्र है हममें और तुममें भी सब में मौजूद है पूरे ठाठ से ठहाके लगाते हुए अठ्ठास करते हुए हैरान मत होना सिर्फ मनुष्यों में है। हाँ ,रावण मनुष्यों में ही है चुकी, पशु तो पाश्विकता…

Read More

सौम चन्द्रिका

सौम चन्द्रिका गरल गरल हुआ वदन सुधाविहीन सिंधु मन। जल रहा नयन नयन धुआं धुआं धरा गगन।। स्वार्थ छद्म से यहाँ चिनी गई इमारतें मूक प्राणियों के कत्ल से सजी इबादतें नाम पर विकास के हरा भरा भी कट रहा वक्ष भूमि का लहूलुहान जैसे फट रहा कर्णभेदती बिगाड़ती रही ध्वनि: पवन मूल से उखड़…

Read More

हँसी बेगम बेलिया

  हँसी बेगम बेलिया ज़िद में ही मौसम ने हवाओं को छू लिया हरे-हरे पातों में हँसी बेगम बेलिया सड़कों पर चिड़ियाएँ पेड़ से नहीं उतरीं खाली पाँवों चलती धूप भी नहीं ठहरी साथ रहती समय के नहीं कुछ भी किया चाँदनी में भींगी पानी नाली नदियाँ रिश्ता ही बनाती है ये आती जो सदियाँ…

Read More

कोरा कागज

कोरा कागज सफेद गंदगी से कोसों दूर, दो मोटे तहों के बीच सहेज कर रखी, काली धब्बे स्याह से बची । कोरा कागज था सिर्फ कोरा। जमाने की गंदगी से महरूम था वह, रोडे हिचकोले को जानता नहीं था पहचानता नहीं था। अनगिनत लिखावटों से घिरा है अब वह। रंग रूप से अपना स्वरूप खो…

Read More

“राष्ट्रपिता”

“राष्ट्रपिता” किसने जाना था कि सत्य के प्रतीक बन जाओगे अहिंसा के मसीहा भारत की तकदीर बना जाओगे ! किसने समझा था तुम्हे एक दुबली सी काया देगा भारत को आजादी का स्वरुप ! आज नत हम भारतवासी तुम्हारी अद्भुत सीख को याद करे बापू समय के इस चक्र में संसार को समझना होगा संकल्प…

Read More

बापू की ओर

  बापू की ओर मिथ्या से सत्य की ओर घृणा से प्रेम और करुणा की ओर सांप्रदायिकता से भाईचारे की ओर हिंसा की बर्बरता से अहिंसा की संवेदना की ओर बर्बर भीडतंत्र से सत्याग्रह की ओर विलासिता से सच्चरित्रता की ओर उपभोक्तावाद से सादगी की ओर अंध औद्योगीकरण से कुटीर उद्योग की ओर पूंजी के…

Read More