मेरी कहानी

मेरी कहानी शाम का धुंधलका और एक सोलह साल की लड़की अपनी किताबों की दुनिया में खोई अपने को रानी झाँसी समझ रही थी तभी उसके कानों में पिता के शब्द पड़े जो माँ से कह रहे थे की ऐसा रिश्ता जल्दी नहीं मिलेगा ।माँ का जवाब था अरे अभी वो छोटी हैं और फिर…

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क्षितिज की लालिमा करे आह्वान”

“क्षितिज की लालिमा करे आह्वान” 15 अक्टूबर शरद पूर्णिमा कोजागरी लक्ष्मी पूजा के दिन बिहार के सहरसा जिले में जन्मी बच्ची को डॉक्टर ने हाथों में थामकर घोषणा की, “यह बच्ची बेहद विलक्षण, आगे चलकर पूरी दुनिया में नाम रोशन करेगी”। 2 वर्ष चार महीने की छोटी आयु में ही मां सीता के रूप झांकी…

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चुनौतियाँ हमसे बड़ी नहीं

चुनौतियाँ हमसे बड़ी नहीं मैं पुष्पांजलि मिश्रा जीवन के चार दशक पार करने के बाद जब अपने जीवन के बारे में सोचती हूँ तो इसे ईश्वर की कृपा मानती हूँ और भविष्य के लिए आशावादी हूँ ।ईश कृपा, माता-पिता व गुरु जनों का आशीष, अपनों के प्यार से सजे, नकारात्मकता और निराशा से दूर अपने…

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खिडक़ी से धूप

खिडक़ी से धूप जीवन हार्टबीट की तरह है, जब तक उतार चढ़ाव न हो सार्थकता नही रहती। भावनाओं को आकार देना स्कूली जीवन से ही हो गया था। लिखने से ज्यादा पढ़ने के शौक ने जुगसलाई सेवा सदन पुस्तकालय से बाधें रखा । मेरी कविता यूं ही गुमनामी के अंधेरों मे गुम हो गई होती…

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चलते रहने का नाम जीवन है

चलते रहने का नाम जीवन है जीवन के प्रति पॉजिटिव दृष्टिकोण, जीवन में चाहे जितने भी दुख आये,,,हमेशा हँसते रहने को कृतसंकल्प,,, जीवन हरपल इम्तहान लेती है,,,पर सफल होने का जज्बा, निराशा में भी आशा का दामन थामे रखना,,,हर परिस्थिति में एक शक्ति का अहसास रखना,,,संघर्षशीलता हर हालत में अपनी ताक़त स्वंय बन जाती है।अन्याय…

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कुछ ऐसा लिखूँ

कुछ ऐसा लिखूँ मेरा नाम डॉ.सरला सिंह है । मेरा जन्म पूर्वी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में कादीपुर तहसील के बलुआ नामक गाँव में क्षत्रिय कुल में हुआ । प्रारम्भिक शिक्षा कानपुर तथा गाँव दोनों जगह हुई । पिताजी व बाबा जी दोनों ही कानपुर में सी.ओ.डी. में नौकरी करते थे । वहीं बाबूपुरवा…

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जीवन का सफरनामा

जीवन का सफरनामा मेरे साहित्यिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु जीवन में भी जो प्रेरणापुंज हैं उनके लिए आज शब्दों के जरिये मन के हर कोने को खंगालकर जो भाव निकले उन्हें व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ। मेरा जन्म दुर्ग(छग) में हुआ लेकिन मेरे मां पापा गाँव में रहते थे, तब वहां अच्छे…

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समर्पित जीवन

समर्पित जीवन जब से होश संभाला स्वयं को शिक्षकों के बीच पाया | हिंदी के प्रखण्ड विद्वान्-दादा डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव राजेन्द्र कॉलेज छपरा के प्राचार्या थे जिन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र शैलेन्द्र की शादी हिन्दी स्नातकोत्तर की गोल्ड मेडलिस्ट वीणा से बिना कुण्डली देखे बिना उपजाति पूछे ,सिर्फ अंक पत्र देखकर की थी | शैलेन्द्र और…

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मंजिल मिलेगी, चुनैतियों के पार

मंजिल मिलेगी, चुनैतियों के पार बात पुरानी है, यही कोई साठ साल पहले की… मैं अपने घर की चुलबुली, सुन्दर, हँसने-हंसाने वाली सबकी लाड़ली गुडिया थी …मेरी बड़ी बहन मुझसे ठीक विपरीत, गंभीर, शान्त, पढ़ाकू …. एक दिन मेरे ताऊ जी ने मेरी बहन का मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से मुझसे कहा, “ज़रा अपना हाथ…

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स्मृति के पल

स्मृति के पल जब भी मैं अपने बचपन को याद करती हूँ तो अपने आपको एक ऐसे संसार से घिरा पाती हूँ जहाँ चारों और पत्र पत्रिकाओं, समाचार पत्रों की सुगंध बिखरी हुई रहती थी।बालभारती, पराग, चंपक,चंदामामा,नन्दन की लुभावनी दुनिया थी मेरे चारों ओर। समाचार पत्रों के बालजगत, पहेलियाँ मन को भरमा के रखती थीं।…

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