उदित सत्य का सूर्य
उदित सत्य का सूर्य झूठे नाम, झूठे मान, झूठी शान… आखिर बताओ बंधु मेरे… फिर सच की चाह क्यों…? और सच की राह क्या.. कहां, किस ओर…? झूठ और झूठे की… होती क्यों जयजयकार रे बंधु..! होती क्यों वाह वाह…! हाथ कंगन को लुभाती आरसी…, सच चीख चीख क्यों होता बेहाल…! है सारे अमीरखाने खजाने…